विदा तीर्थराज प्रयाग! फिर मिलेंगे अगले साल

फाल्गुन कृष्ण पक्ष तृतीया, पिंगल नाम विक्रम संवत्सर 2081। अपना कल्पवास पूर्ण कर घर वापसी के लिए प्रस्थान का दिन। मां गंगा की वात्सल्य धारा में सतत अवगाहन के बिछोह-विराम का दिन और प्रयागराज की छांव से अलग होने का दिन। गंगातट की रेती पर लघु भारत के दर्शन से विलग होने का दिन। तीर्थराज प्रयागराज में कल्पवास का एक मास कब बीत गया, पता ही नहीं चला। समय की पीठ पर जैसे पंख उग आए हों, उड़ता चला गया। छोड़ गया तो बस मन के भोजपत्र पर अंकित मधुर स्मृतियां, हृदय में गंगाजल के सिंचन से उगे नेह-प्रेम के कोमल अंकुर, तीर्थ पुरोहित परिवार की आत्मीयता की उर्वर नम भूमि में  उपजा मृदुल सम्बंधों का छतनार कदम्ब कल्पतरु।

पुष्ट हुआ है संकल्प से सिद्धि का मानस, विस्तृत हुआ है भक्ति के आधार मन का आकाश। उज्वलतर हुआ है आस्था और श्रद्धा के प्रकाश का फैलाव। गहरा हुआ मानवीय सम्बंधों की आत्मीयता, मधुरता एवं विश्वास का शीतल कूप। मस्तिष्क में प्रकट हुआ वसुधैव कुटुम्बकम् का सम्यक् अर्थबोध। समाज व्यवहार में समावेशित होने लगे सहकार एवं समन्वय, सहानुभूति एवं समानुभूति, सह-अस्तित्व, सामंजस्य एवं सामूहिकता, संवेदना, शांति एवं सख्य भाव के सहज सनेही सूत्र। अधिक दैदीप्यमान हुआ सनातन संस्कृति का गौरव किरीट।

अपना सभी सामान यथा – गद्दे-रजाई, कम्बल, भोजन बनाने के बर्तन, गैस चूल्हा और सिलेंडर, अपनी पुस्तकें-लेखनी और डायरी, शेष खाद्य सामग्री आदि बोरियों एवं गत्तों में भरकर बांधा जा चुका है, अच्छी तरह टेप भी लगा दिया है। कुर्सी पर बैठे हुए बीते एक महीने में कल्पवास अवधि में मां गंगा में लगाई डुबकियों से उपजी लहरों को उर-सिंधु में सहेज रहा हूं। गुजर गये समय की पुस्तक के पृष्ठ पलट रहा हूं जिनमें कल्पवास के मनोहारी चित्र अंकित हैं। कुर्सी से नीचे उतर चमकती रेणुका को दोनों मुट्ठियों में उठा हथेलियों को जोड़ फैला दिया हूं, रेत के फलक पर चमकीलें कणों में स्मृतियों का इंद्रधनुष उगने लगा है।

जीवन में यह पहला अवसर था कि हम पति-पत्नी एक साथ एक महीने के लिए आध्यात्मिक साधना के लिए घर से बाहर निकले हों। कल्पवास करने के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी। नवम्बर की एक शाम अचानक मन में विचार-भाव का अंकुरण हुआ कि क्यों न कल्पवास कर लें। विचार-सरिता की धारा पत्नी वंदना जी की ओर मोड़ दी तो वह सहर्ष साथ चलने को तैयार हो इस कल्पवास तप यज्ञ हेतु समिधा-सीधा जुटाने में जुट गईं। पर कहां रहेंगे, ज्ञात नहीं था तो एक दिन सुबह निकल लिए प्रयागराज। संगम स्नान कर अपने गांव बल्लान के पंडा माधौप्रसाद पंडा, लालटून का झंडा के वंशज आशीष पंडा जी से सम्पर्क किया और एक टेंट एवं शौचालय का प्रबंध हो गया। हृदय में खुशियों का उजाला चमकने लगा। 

 समय आने पर सभी आवश्यक वस्तुओं का प्रबंध कर हम दोनों ने एक लोडर में सामान लाद 11 जनवरी की दुपहर कल्पवास हेतु प्रस्थान किया। प्रयागराज पहुंचते 4 बजे गया। जगत् को जीवन देने वाला सूरज अपनी किरणें समेटने लगा। नैनी से होते नये पुल पर वाहनों की लम्बी कतारें मानों हमारे धैर्य की परीक्षा लेने को व्यग्र थीं। आखिर दो घंटे जाम से जूझते हम नागवासुकी मंदिर से होते हुए नेत्र कुम्भ का पांडाल पार कर तिरुपति बाला जी मंदिर को प्रणाम कर दिव्य प्रेम मिशन के पांडाल के सामने की सड़क के मुहाने पर तीन लोटों के एक निशान को देखते अपने टेंट पहुंच सारा सामान उतार हाथ-मुंह धो भोजन कर सो गये। अगली सुबह जगकर बाहर दूकान से चाय-पकौड़े लिए और फिर सामान व्यवस्थित करने में लग गये। हम दो व्यक्तियों के लिए यह एपी नामक तम्बू बहुत बड़ा था। कहां पर भोजन पकाने हेतु चूल्हा रखें, किधर पूजा घर और कहां पर बर्तन धोने की जगह बनायें तथा किधर शयन कक्ष हो, यह सोचने और तय करने में बहुत समय लग गया। सबसे पहले रेत के ऊपर पुआल बिछाया गया, फिर बरसाती। दो घंटे की मेहनत का सुफल एक व्यवस्थित आवास के रूप में सामने था।

पौष पूर्णिमा 13 जनवरी से कल्पवास का मानसिक संकल्प ले साधनारत हुए। हमारे बाड़े में 25 से अधिक तम्बू थे, अधिकांश में कल्पवासियों का डेरा था। शेष प्रतीक्षारत थे 29 जनवरी मौनी अमावस्या में आने वाले श्रद्धालुओं के स्वागत अभिनन्दन के लिए। अमावस्या के एक दिन पहले से ही तीर्थयात्री आने लगे।  तम्बू आबाद होने लगे और चहल-पहल हल्ला-गुल्ला, हंसी-ठहाकों से परिसर गूंजने लगा तो संध्या वंदन, भजन आरती के स्वर ढोलक-मंजीरा एवं एकतारा की संगत में वातावरण में जीवन रस घोलने लगे। 

एक महीने की यह आध्यात्मिक यात्रा इतनी सहज, संतुष्ट, आनंदमय एवं आत्मीयतापूर्ण रही कि आज मां गंगा स्नान से वापस आते समय हम पति-पत्नी रो पड़े। पहले भी कितनी गंगा स्नान किया होगा, किंतु केवल एक पवित्र नदी के रूप में। पर आज महसूस हुआ कि हम मां की गोद में थे। वही हमें नहला रही थी। गंगा नदी नहीं है, साक्षात् जीवनदायिनी मां है, वात्सल्यमयी मां। यहां से जाते समय कंठ मां गंगा से प्राप्त अथाह आशीर्वाद तथा तीर्थ पुरोहित पंडा जी के परिवार से मिले अपनेपन की आर्द्रता से अवरुद्ध हैं, आभार प्रकटन को शब्द मुख से बाहर नहीं आ पा रहे। पलकें नयनों से बहने को आतुर चक्षुजल धार को रोकने में असमर्थ हो रही हैं। विदा की यह वेला एक ओर अपने घर पहुंचने की खुशी का नीर है तो मां गंगा और तीर्थ पुरोहित परिवार से दूर होने की व्यथा पीर भी। एक-एक पल युग सा लग रहा है। लगता है काल पुरुष ठहर कर दो अपरिचित परिवार के मिलन पश्चात् विछोह तथा ममतामयी मां गंगा से पुत्र के अलगाव का कारुणिक-मार्मिक दृश्य अपनी आंखों में हमेशा के लिए कैद कर लेना चाहता हो जैसा कि कभी त्रेतायुग में चित्रकूट में मां मंदाकिनी तट पर श्रीराम-भरत मिलाप के समय किया होगा। 

वाहन में पूरा सामान लादा जा चुका है, हम भी बैठ गये हैं। वाहन रेत पर बिछी चकर प्लेटों के पथ पर सरकने लगा है। इस पावन भूमि के कण-कण को श्रद्धा पूर्वक प्रणाम कर विदा ली। आंखों से अविरल वारिधारा बह निकली मानो तीर्थ पुरोहित का खाया गया नमक नेत्रों से नेहजल बन वापस उनके पास पहुंच हमें उऋण करना चाहता हो, किंतु प्रेम-भक्ति में ऋण-उऋण कहां। वाहन में पीछे बैठे हम दोनों देख रहे हैं कि तीर्थ पुरोहित का परिवार भी अपनी आंखें पोंछ रहा है, पर अश्रु हैं कि रोके रुक नहीं रहे। बेटी तिथि मां के कंधे पर सिर रखे आंसू पोंछ रही है।  पंडा जी श्याम भैया के अस्फुट शब्द कर्ण गह्वर से टकरा रहे हैं, “ऐसे तीर्थयात्री बड़े भाग्यशाली पंडा को मिलते हैं।

ईश्वर इनको हमेशा खुश रखें।” ये शब्द मानो हमारे कल्पवास का प्रमाण-पत्र बन गये और हमने पारितोषिक समझ हृदयस्थ कर लिया है। अम्बर के पश्चिमांचल में सूरज अपने घर जा रहे हैं और हम भी; एक नवजीवन, नवल ऊर्जा, नव विश्वास, नवीन चेतना के साथ सम्पूर्ण होकर। गोधूलि वेला पश्चात् अंतरिक्ष के नीले वितान में कृष्णपक्ष की तृतीया का चंद्र मेरी कन्या राशि में संचरण कर रहा है। विदा तीर्थराज प्रयाग! अगले साल माघ मेले में फिर मिलेंगे। हमें बिसराना नहीं। तुमसे मिलने अवश्य आएंगे क्योंकि तुमसे मिलना स्वयं से मिलना है, पिंड का ब्रह्माण्ड से मिलना है। 

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »