बेफिक्री से रात ढलती हुई,
आसमान तारों की चादर ओढ़े,
स्वयं पर गर्वित,
शांत कोसो दूर तक,
सारी धरा की ओढ़नी बना हुआ,
दूर धरा पर निहारता,
टिमटिमाते जुगनुओं सी,
अनगिनत घरों में जलती रोशनी,
ताक रहा शांत एकदम चुप्पी साधे,
सुन रहा संगीत की मधुर ध्वनि,
तालियों की मंद-मंद थाप,
झांझर की,चूड़ियों की छन-छन खन-खन
बाँहों में बाहें,
किकली करती परांदों में घूमती,
तितलियों सी लड़कियाँ,
दूसरी तरफ हलवाई का शोर,
हाथ थोड़ा जल्दी चलाया करो !
अभी कितनी मिठाइयाँ बननी हैं,
पैक होनी हैं..!
लगे हो सारे थिरकने ।
खुशियों से भरे चेहरे,
खिलखिलाती सी हवा,
पिताजी भैया की फ्लाइट,
क्यों डिले हो गई ?
क्या पूरा कश्मीर भाभी के साथ,
यहाँ उठा कर लाएँगे ?
आप पता कीजिए ना फोन लगाइए ना,
उन्हें भी यह शादी का माहौल छोड़कर,
अभी वक्त मिला था घूमने का,
पता है मिस कर रही हूँ मैं,
अपने भतीजों को..!
रोएँगे बाद में कि,
लाडली बुआ चली गई छोड़कर
नहीं का स्वर पिताजी के मुख से,
तीव्रता से निकला… अभी नहीं,
कल पहुंच जाएँगे ना,
धीरज धर लाडो ।
वह मेरा बेटा है,
जरूर समय पर सारी रस्में पूरी करेगा,
तू चिंता ना कर ।
मौन आसमाँ निशब्द-सा,
ज्यों अंधेरी रात में उसने,
सब भांप लिया था कि,
लाडो तेरा भाई, जिसने
कई अरमान सजाए थे,
तेरी विदाई तक के,
वह अपनी जग से होने वाली विदाई से,
अनभिज्ञ …..था !!
सिंदूरी जीवन बहना का,
सजने से पहले न पता था कि,
वह स्वयं किसी की मांग का,
सिंदूर ना रह सकेगा…..

अध्यापिका, लेखिका, मोटिवेशनल स्पीकर