प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने देश में चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को 15,034 करोड़ रुपये के निवेश से मौजूदा सरकारी कॉलेजों और अस्पतालों में 10,023 नई मेडिकल सीटों को मंजूरी दी। यह निर्णय आने वाले पांच वर्षों में 75,000 नई मेडिकल सीटों के सृजन के व्यापक लक्ष्य की दिशा में एक बड़ा कदम है।
प्रधानमंत्री मोदी ने इस अवसर पर कहा, “केंद्र प्रायोजित योजना के तीसरे चरण को मंजूरी मिलने से स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा सीटों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होगी। इससे हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को मजबूती मिलेगी और यह सुनिश्चित होगा कि भारत के हर हिस्से में कुशल डॉक्टर उपलब्ध हों।”
भारत की चुनौती: 1.4 अरब लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा
भारत 1.4 अरब की जनसंख्या के साथ सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने की चुनौती का सामना कर रहा है। प्रशिक्षित डॉक्टरों और विशेषज्ञों की कमी के कारण दूरदराज के ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ों नागरिकों को अभी भी गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं।
इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए सरकार ने चिकित्सा शिक्षा के बुनियादी ढांचे के अभूतपूर्व विस्तार की रणनीति अपनाई है।

नई पहल: 10,023 सीटों की मंजूरी, 15,034 करोड़ का निवेश
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत योजना के अनुसार, 5,000 स्नातकोत्तर (PG) और 5,023 स्नातक (MBBS) चिकित्सा सीटें 2028-29 तक मौजूदा सरकारी कॉलेजों और अस्पतालों में जोड़ी जाएंगी। इस विस्तार के लिए कुल 15,034 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, जिसमें से:
| घटक | राशि (₹ करोड़) | प्रतिशत |
|---|---|---|
| केंद्र सरकार का हिस्सा | 10,303.20 | 68.5% |
| राज्य सरकारों का हिस्सा | 4,731.30 | 31.5% |
| कुल निवेश | 15,034 | 100% |
- प्रति सीट औसत निवेश: ₹1.5 करोड़
- समय अवधि: 2025-26 से 2028-29
बीते दशक में ऐतिहासिक वृद्धि
भारत ने पिछले दस वर्षों में चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है।
| सूचकांक | 2013-14 | 2025-26 | वृद्धि (%) |
|---|---|---|---|
| मेडिकल कॉलेजों की संख्या | 387 | 808 | 109% |
| MBBS सीटें | 54,348 | 1,23,700 | 127% |
| स्नातकोत्तर सीटें | 17,844 | 43,041 | 144% |
प्रधानमंत्री स्वास्थ्य सुरक्षा योजना के तहत देश में 22 नए एम्स संस्थानों की स्थापना को मंजूरी दी गई है, जिससे सस्ती और सुलभ तृतीयक स्वास्थ्य सेवा का विस्तार हुआ है।
नए नियम: संकाय नियुक्तियों और शिक्षा ढांचे में सुधार
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने जुलाई 2025 में “चिकित्सा संस्थान (संकाय योग्यता) विनियम, 2025” अधिसूचित किए, जिनका उद्देश्य शिक्षण संकाय के पूल को व्यापक बनाना और सीटों के विस्तार को सुगम बनाना है।
प्रमुख सुधार इस प्रकार हैं:
- गैर-शिक्षण सरकारी अस्पताल (220+ बिस्तरों वाले) अब शिक्षण संस्थान के रूप में नामित किए जा सकते हैं।
- 10 वर्षों के अनुभव वाले विशेषज्ञ अब एसोसिएट प्रोफेसर बन सकते हैं, जबकि 2 वर्षों के अनुभव वाले विशेषज्ञ सहायक प्रोफेसर नियुक्त हो सकते हैं, बशर्ते वे 2 वर्षों में BCBR कोर्स पूरा करें।
- NBEMS-मान्यता प्राप्त संस्थानों में 3 वर्ष का अनुभव रखने वाले वरिष्ठ सलाहकार प्रोफेसर पद के पात्र होंगे।
- नए मेडिकल कॉलेज अब एक साथ MBBS और PG दोनों पाठ्यक्रम शुरू कर सकते हैं।
- माइक्रोबायोलॉजी और फार्माकोलॉजी विभाग अब MSc-PhD योग्यताधारी संकाय नियुक्त कर सकते हैं।
- सुपर स्पेशियलिटी योग्यता वाले संकाय को अब औपचारिक रूप से संबंधित विभागों में नामित किया जा सकता है।
लाभ और प्रभाव: स्वास्थ्य सेवा के नए युग की शुरुआत
यह ऐतिहासिक निर्णय केवल सीटों के विस्तार तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका व्यापक सामाजिक और आर्थिक प्रभाव होगा। प्रमुख लाभ इस प्रकार हैं:
- इच्छुक मेडिकल छात्रों के लिए चिकित्सा शिक्षा के अवसरों में वृद्धि।
- चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और वैश्विक मानकों के अनुरूप उन्नयन।
- भारत को किफायती स्वास्थ्य सेवा का वैश्विक केंद्र बनाने की दिशा में तेजी।
- ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा की सुलभता।
- प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लाखों नई नौकरियों का सृजन।
- स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच में सुधार से सामाजिक-आर्थिक विकास को बल।
- राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे का समान वितरण।
भविष्य की दिशा: किफायती और सुलभ स्वास्थ्य सेवा की ओर
भारत सरकार का यह कदम केवल वर्तमान की जरूरतों को पूरा करने के लिए नहीं, बल्कि भविष्य के लिए भी एक मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण की दिशा में है। विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी समुदायों के लिए यह पहल गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच सुनिश्चित करेगी और भारत को वैश्विक चिकित्सा केंद्र के रूप में स्थापित करने में मदद करेगी।