व्यक्ति से समाज और समाज से राष्ट्र की ओर विचार-यात्रा
डॉ. सुजाता दास ‘मीठी‘ द्वारा रचित ‘अर्घ्य दान की तृप्ति’ लेखिका के भाव, विचार और वैचारिक प्रतिबद्धता का अनूठा संग्रह है। यह मात्र लेखों का संकलन नहीं है, बल्कि यह मनुष्य और समाज के बीच प्रवाहित उन संवेदनाओं का अभिलेख है जो सामान्यतः हमारे दैनिक अनुभवों में होती तो हैं, मगर अभिव्यक्ति की प्रतीक्षा में दबकर रह जाती हैं। इस कृति में लेखिका ने अपने विचारों को पाठकों तक उसी प्रकार पहुंचाया है, जैसे सूर्य अर्घ्य दान से तृप्त होता है—मन की पूर्णता, कृतज्ञता और शांत संतुष्टि के साथ।
डायमंड पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक अर्घ्य दान की तृप्ति जिसके लेखिका डॉ. सुजाता दास ‘मीठी‘ है उनकी कृति की प्रस्तावना और भूमिका में लेखिका ने जिस भाव के साथ “अर्घ्य” और “तृप्ति” के बीच का दार्शनिक संबंध स्थापित किया है, वह अत्यंत प्रभावशाली है। सूर्य को ऊर्जा, प्रकाश और चेतना का स्रोत मानकर समाज को सूर्य के स्वरूप में देखना तथा उन विषयों पर विचार-आलेखन करना जो समय के साथ उष्ण होकर सामाजिक विकृतियों का कारण बनते हैं, इस दृष्टिकोण से लेखिका की संवेदनशीलता और समाज के प्रति उत्तरदायित्व का परिचय मिलता है। इस विवेचन के माध्यम से पाठक को तुरंत यह अनुभव होता है कि यह लेखन मात्र बौद्धिक अभ्यास नहीं है, बल्कि आत्मानुभूत साहित्य है।

कहा जाता है कि लेखिका वह है जो देखता सबके समान है, पर सोचता सबके अलग; और इस दृष्टिकोण से देखें तो डॉ. सुजाता दास ‘मीठी‘ का चिंतन एक दार्शनिक सामाजिक दृष्टि का परिचायक है। देशप्रेम, अनुशासन, समय-प्रबंधन, नारी सशक्तिकरण, शोर-प्रदूषण, प्रतिस्पर्धा, डिजिटलीकरण—ये सभी विषय हमारे समय के ही नहीं, बल्कि हमारे सामाजिक मानस की पड़ताल के भी विषय हैं। ये आलेख पाठक के मन में विचारों की लहर उठाते हैं और व्यक्ति को अपने आचरण, व्यवहार तथा सामाजिक उत्तरदायित्व पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करते हैं।
कृति की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सहज भाषा और स्पष्ट भावाभिव्यक्ति है। लेखिका अपनी बात को जटिल शास्त्रीय तर्कों से नहीं, बल्कि सादे उदाहरणों से समझाती हैं। भीतर से निकला हुआ अनुभव जब शब्द लेता है तो वह सीधे पाठक के हृदय में उतरता है—इस पुस्तक में इस अनुभव को बार-बार महसूस किया जा सकता है।
लेखिका की पृष्ठभूमि—एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी होने का अनुभव—उनके लेखन में एक संतुलित अनुशासन और सामाजिक समझ के रूप में परिलक्षित होता है। समाज के विविध वर्गों से प्रत्यक्ष संपर्क तथा व्यवहारिक जीवन का अनुभव उनके चिंतन में गहराई और वास्तविकता प्रदान करता है। ऐसा विरल ही देखने को मिलता है कि प्रशासनिक सेवा में कार्यरत व्यक्ति सामाजिक दर्शन और रचनात्मक साहित्य के क्षेत्र में इतनी परिपक्वता के साथ योगदान दे।
पुस्तक की एक और उल्लेखनीय शक्ति है उसमें निहित ‘अंतःकथा’—चाहे वह आकाशवाणी रायपुर में प्रसारण का प्रसंग हो, चिंतन कार्यक्रम की स्वीकृति हो, या लेखिका द्वारा अपने भाई, गुरुजन और शुभचिंतकों के प्रति आभार व्यक्त करना—ये सब भाग पाठक को लेखिका के निजी संसार से जोड़ते हैं और इस कृति को भावनात्मक संप्रेषण की ऊँचाई तक पहुँचाते हैं। पुस्तक के कुछ अंश आत्मकथात्मक से लगते हैं, लेकिन वे आत्माभिव्यक्ति से अधिक प्रेरक हैं, आत्मप्रचार से अधिक आत्मविकास की दिशा में हैं।
कृति में सम्मिलित विषयों का विन्यास पाठक को क्रमशः एक यात्रा पर ले जाता है—पहले व्यक्ति और परिवार की भावनात्मक संरचना, फिर सामाजिक चरित्र, और अंततः राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना की ओर। विशेष रूप से “देश प्रेम”, “गुरु”, “भारतीय पर्व”, “प्रतिस्पर्धा”, “जीवन की सार्थकता” जैसे अध्याय भारतीय सामाजिक संरचना की मूलभूत भावनाओं का अत्यंत सुंदर प्रतिबिंब हैं।
इस पुस्तक की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि यह केवल समस्या का संकेत नहीं करती, बल्कि अंत में समाधान की ओर भी दृष्टि देती है। लेखिका शिकायत नहीं करतीं, वह संवाद प्रस्तावित करती हैं; वह निराशा नहीं, आशा बोती हैं; वह अंधकार का वर्णन नहीं, प्रकाश की ओर संकेत करती हैं। यह दृष्टिकोण सामाजिक साहित्य में विशेष महत्व रखता है।
समीक्षा के अंत में यह कहना उचित होगा कि ‘अर्घ्य दान की तृप्ति’ अपने समय की महत्वपूर्ण पुस्तक है। जो पाठक मननशील लेखन पढ़ना पसंद करते हैं, जिनके लिये साहित्य केवल मनोरंजन नहीं बल्कि आत्म चिंतन का साधन है, उन सबके लिए यह कृति अवश्य पठनीय है। यह पुस्तक मन को उद्वेलित करती है, संवेदनाओं को जागृत करती है और जीवन तथा समाज के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करने की प्रेरणा प्रदान करती है।
निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि इस पुस्तक में संकलित आलेख भारतीय समाज के मध्यस्थ संवाद का जीवंत प्रतिरूप हैं और डॉ. सुजाता दास ‘मीठी‘ इस संवाद की महत्वपूर्ण और सशक्त स्वर हैं। यह कृति पाठकों को न केवल तृप्ति प्रदान करती है, बल्कि उनके भीतर कुछ नया सोचने और समाज के प्रति एक जिम्मेदार दृष्टिकोण विकसित करने की दिशा में भी प्रेरित करती है।
पुस्तक: अर्घ्य दान की तृप्ति
लेखिका: डॉ. सुजातादास ‘मीठी‘
प्रकाशक: डायमंड पॉकेट बुक्स



