वाराणसी में चल रहे काशी–तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत शिक्षा मंत्रालय ने एक अभिनव पहल ‘तमिल करकलाम’ यानी ‘आइए तमिल सीखें’ को लागू किया है। इस पहल के तहत जिले के 50 विद्यालयों में तमिल भाषा की कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं। इससे उत्तर भारत के छात्रों को दक्षिण भारत की समृद्ध भाषा और संस्कृति को समझने का अवसर मिल रहा है। कार्यक्रम में तमिलनाडु से विशेष रूप से आए 50 प्रशिक्षित शिक्षक भाग ले रहे हैं, जिन्हें विभिन्न सरकारी, निजी और कॉन्वेंट स्कूलों में नियुक्त किया गया है।

इन कक्षाओं में माध्यमिक, बेसिक और निजी स्कूलों के छात्र–छात्राएँ सम्मिलित हो रहे हैं। तमिल शिक्षक दो पालियों में संबंधित विद्यालयों में पहुँचकर छात्रों को तमिल भाषा का प्रारंभिक ज्ञान दे रहे हैं। कक्षाओं में तमिल वर्णमाला, स्वर, व्यंजन, उच्चारण और भाषा के दैनिक उपयोग वाले वाक्यों की शिक्षा दी जा रही है। छात्रों को यह भी बताया जा रहा है कि सामान्य परिचय, दैनिक बातचीत और व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले तमिल वाक्य किस प्रकार बोले और लिखे जाते हैं। जैसे—मेरा नाम…, आप कहाँ पढ़ते हैं, आप कौन हैं, आदि वाक्यों का उच्चारण और अर्थ समझाया जा रहा है।
कार्यक्रम के दौरान कई विद्यालयों में विशेष सत्र भी आयोजित किए जा रहे हैं। बंगाली टोला इंटर कॉलेज में लगभग दो घंटे के विशेष सत्र में छात्रों को तमिल भाषा लिखना और बोलना सिखाया गया। छात्रों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और इसे उपयोगी बताते हुए कहा कि काशी में तमिलनाडु से आने वाले पर्यटकों से संवाद स्थापित करने में यह भाषा सहायक सिद्ध होगी। छात्रों ने यह भी कहा कि यदि उन्हें तमिल समझ आ जाएगी तो वे पर्यटकों से सहजता से बातचीत कर पाएँगे और उनकी संस्कृति के बारे में अधिक जान सकेंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर आयोजित काशी–तमिल संगमम् देश के उत्तर और दक्षिण को जोड़ने वाला एक अनूठा सेतु बन गया है। प्रतिभागियों का कहना है कि यह कार्यक्रम ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना को सजीव रूप में सामने लाता है। यह केवल सांस्कृतिक संगम नहीं, बल्कि भाषाई, बौद्धिक और सामाजिक सहभागिता का सशक्त माध्यम बन रहा है।
इस वर्ष 2 दिसंबर से प्रारंभ हुआ यह दो सप्ताह का कार्यक्रम तमिलनाडु और काशी के रिश्तों को नई ऊर्जा प्रदान कर रहा है। इसमें तमिलनाडु से आए 1,400 से अधिक प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं। सात विभिन्न श्रेणियों—छात्र, शिक्षक, लेखक, मीडिया प्रतिनिधि, कृषि और संबद्ध क्षेत्र से जुड़े लोग, पेशेवर, शिल्पकार, महिलाएँ और आध्यात्मिक विद्वान—इस आयोजन में सम्मिलित हैं। यह व्यापक भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि भारत की भाषाई विविधता न केवल सांस्कृतिक विरासत की धारक है बल्कि संवाद, सहयोग और राष्ट्रीय एकता की आधारशिला भी है।
काशी–तमिल संगमम् 4.0 के अंतर्गत ‘तमिल करकलाम’ कार्यक्रम आने वाले समय में छात्रों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि बहुभाषी ज्ञान आज वैश्वीकरण के दौर में संवाद क्षमता को बढ़ाता है, रोजगार के अवसरों को विस्तारित करता है और सांस्कृतिक समझ को मजबूत बनाता है। इस दिशा में शिक्षा मंत्रालय का प्रयास भारत की भाषाई विविधता को सम्मान और स्वीकृति देने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।