स्ट्रोक- सर्दियों में एक बड़ा खतरा

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स्ट्रोक के ज्यादातर मामले ठंड के मौसम में ही होते हैं

डॉ.पुनीत राणा
वरिष्ठ सलाहकार
न्यूरोलॉजी विभाग
यथार्थ सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, ग्रेटर नोएडा

  • यह पूरा साल सभी के लिए आश्चर्यजनक रहा है और विशेषकर उत्तर भारत में सर्दियों का जल्दी शुरू होना भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है। वहीं दिल्ली एनसीआर में तापमान का स्तर गिरने के साथ बढ़ते प्रदूषण ने कई बीमारियों को बुलावा दिया है। हर साल यह देखा गया है कि, गिरता तापमान हृदय रोगों के मामलों में वृद्धि का कारण बनता है, जिसमें स्ट्रोक सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है। ब्लॉकेज के कारण होने वाला स्ट्रोक पैरालिसिस या ब्लीडिंग का कारण बनता है। स्ट्रोक के ज्यादातर मामले ठंड के मौसम में ही होते हैं। यह एक बड़ी समस्या है, जिसे मृत्युदर का तीसरा सबसे बड़ा कारण माना जाता है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, लगभग 4 में से एक व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी स्ट्रोक का शिकार अवश्य बनता है।
  • गर्मियों में अपने देश में यह देखने में आया है कि स्ट्रोक के मरीज सर्दियों की तुलना में कम आते है। सर्दियां शुरू होते ही स्ट्रोक की मरीजों की संख्या लगभग 35 तक बढ़ जाती है। जापान, कोरिया, अमेरिका और चीन में किए गए कई अध्ध्यन भी यही बताते हैं कि स्ट्रोक का खतरा ठंड में ज्यादा होता है। विभिन्न अध्ध्यन बताते हैं कि, बहुत अधिक ठंड की स्थिति में स्ट्रोक अटैक का खतरा 80 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। ऐसा खासकर तब होता है जब तापमान 15 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है। इस बीमारी की रोकथाम अति आवश्यक है। ऐसा नहीं होने पर यह बीमारी कई और घातक बीमारियों का कारण बन सकती है।
  • स्ट्रोक- सर्दियों में एक बड़ा खतरा
  • विभिन्न आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल औसतन लगभग 15 लाख मरीजों पर किसी न किसी प्रकार का स्ट्रोक अटैक पड़ता है। उनमें से लगभग एक-तिहाई मरीज स्ट्रोक संबंधी विकलांगता के साथ रह जाते हैं। इसलिए यह हम सभी के लिए जानना जरूरी है कि सर्दियों में स्ट्रोक का खतरा दुगना क्यों हो जाता है? इसका सबसे बड़ा कारण सर्दियों में नसों का संकुचित होना हो सकता है, जो ब्लड प्रेशर को बढ़ाता है। इसका मतलब यह है कि खून को पूरे शरीर तक पहुंचाने के लिए उसे पूरी ताकत के साथ पंप करना होगा। यही स्ट्रोक का सबसे बड़ा कारण बनता है।
  • इसके अलावा, सर्दियों में कोलेस्ट्रॉल स्तर सहित हमारे शरीर के रसायनिक संतुलन में विभिन्न बदलाव आते हैं, जो क्लॉटिंग का खतरा बढ़ाते हैं। सर्दियों में आमतौर पर शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है, जो वजन बढ़ने का कारण बनता है और मोटापा स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाता है। मोटापा सर्दियों में स्ट्रोक के खतरे को लगभग 11 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
  • इसकी एक नई चुनौती कोविड है, जिसका दुनिया हर संभव तरीके से सामना करने में लगी है। अध्ध्यन बताते हैं कि कोविड स्ट्रोक के खतरे को बढ़ाता है। कई बार कोविड का मरीज स्ट्रोक से भी ग्रस्त हो सकता है। ऐसे मरीजों में नसों में बदलाव स्ट्रोक का कारण बनता है। जो मरीज कोविड से गंभीर रूप से ग्रस्त हैं, उनमें क्लॉटिंग का खतरा रहता है। अब ऐसे में, सर्दी और कोविड विशेषकर प्रदूषण के साथ मिलकर देश की आबादी को एक बड़े और घातक संकट में डाल रहे हैं। इस साल ठंड जल्दी शुरू हो गई है डायबिटीज, उच्च-रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रॉल से ग्रस्त और 65 वर्ष से अधिक लोगों में इसका खतरा ज्यादा है।
  • हालांकि, स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है लेकिन जो लोग हृदय रोगों, उच्च-रक्तचाप और मोटोपा से ग्रस्त हैं, धूम्रपान करते हैं और बुजुर्गों को ठंड के मौसम में बीमार न पड़ने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि उनमें स्ट्रोक खतरा बहुत ज्यादा होता है। यहां तक कि उनमें हृदय रोग से भी मरने की संभावना बहुत ज्यादा होती है।
  • सर्दियों में स्ट्रोक के खतरे को कैसे कम करें?
  • स्ट्रोक और अन्य हृदय रोगों की रोकथाम के लिए विशेषकर सर्दियों में नियमित रूप से ब्लड प्रेशर की जांच करना जरूरी है। ब्लड प्रेशर में हल्के बदलाव होने पर भी डॉक्टर से अवश्य संपर्क करें। डॉक्टर की सलाह के बिना दवाइयों में कोई बदलाव न करें।
  • इस मौसम में खुद को गर्म रखें और बहुत अधिक ठंड से बचें क्योंकि ज्यादा ठंड के एक्सपोजर के बाद कई दिनों तक स्ट्रोक का खतरा बना रहता है। कोविड और बढ़ते प्रदूषण की समस्या को ध्यान में रखते हुए, सभी के लिए शारीरिक रूप से सक्रिय रहने और डाइट में अचानक बदलाव न करने की सलाह है। स्ट्रोक, ठंड और प्रदूषण का संबंध और अच्छे से समझने के लिए भारत में बड़ी आबादी आधारित अध्ध्यन करने की आवश्यकता है। व्यक्तिगत अनुभव के अनुसार, ठंड के मौसम में हम कई मरीजों को ब्रेन हेमरेज से जूझते देखते हैं।

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