आत्मनिर्भर भारत की ओर अग्रसर भारतीय औषध उद्योग: गुणवत्ता, नवाचार और वैश्विक नेतृत्व का संगम

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भारत की औषध विभाग, जो रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन कार्यरत है, देश में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने, अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करने तथा अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को निभाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मेक इन इंडिया के दृष्टिकोण को अपनाते हुए, यह विभाग भारत को दवाओं का सबसे बड़ा और भरोसेमंद वैश्विक आपूर्तिकर्ता बनाने की दिशा में अग्रसर है।

भारत: विश्व का भरोसेमंद वैक्सीन आपूर्तिकर्ता

भारत पिछले कई वर्षों से यूनिसेफ का सबसे बड़ा वैक्सीन आपूर्तिकर्ता रहा है, जो वैश्विक मांग का 55% से 60% हिस्सा प्रदान करता है। विशेषकर डीपीटी, बीसीजी और खसरे के टीकों की आपूर्ति में भारत ने क्रमशः 99%, 52% और 45% तक की मांग पूरी की है। यह भारत की विश्वसनीयता और गुणवत्ता का प्रतीक है।

भारतीय औषध उद्योग: एक समग्र दृष्टिकोण

चिकित्सा उपकरणों का विकासशील क्षेत्र

भारत में चिकित्सा उपकरण क्षेत्र न केवल स्वास्थ्य सेवाओं का आधार है, बल्कि यह एक बहु-विषयक, नवाचार आधारित उद्योग भी है। इसमें विद्युत-चिकित्सा उपकरण, प्रत्यारोपण, सर्जिकल उपकरण, डिस्पोजेबल और इन विट्रो डायग्नोस्टिक्स जैसे विविध घटक शामिल हैं। यह क्षेत्र पूंजी-प्रधान है और इसमें लगातार तकनीकी अद्यतन और स्वास्थ्य कर्मियों के प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

विदेशी निवेश से मिल रही गति

वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल से दिसंबर तक, भारत में फार्मास्युटिकल्स और चिकित्सा उपकरणों में 11,888 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) हुआ है। इसके अलावा, 7,246.40 करोड़ रुपये के 13 ब्राउनफील्ड परियोजनाओं को स्वीकृति मिली है, जिससे भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र को वैश्विक मानकों पर मजबूती मिली है।

आत्मनिर्भरता की दिशा में पीएलआई योजनाएं

उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं आत्मनिर्भर भारत के विजन को मूर्त रूप देने में सहायक सिद्ध हो रही हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना, निवेश आकर्षित करना और वैश्विक प्रतिस्पर्धा को सशक्त करना है।

फार्मास्युटिकल्स के लिए पीएलआई योजना

15,000 करोड़ रुपये की इस योजना के अंतर्गत 55 कंपनियों को छह वर्षों के लिए प्रोत्साहन दिया जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत जटिल जेनेरिक, बायोफार्मास्युटिकल्स, ऑटोइम्यून और कैंसर रोधी दवाओं जैसे उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसे तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है:

  • श्रेणी 1: बायोफार्मा, जीन थेरेपी, जटिल एक्सीपिएंट्स
  • श्रेणी 2: एपीआई, केएसएम, डीआई
  • श्रेणी 3: कैंसर, हृदय, मधुमेह व ऑटोइम्यून दवाएं

बल्क ड्रग्स के लिए पीएलआई योजना

इस योजना का उद्देश्य 41 चिन्हित थोक दवाओं के उत्पादन को बढ़ावा देना है। अब तक 48 परियोजनाएं स्वीकृत की जा चुकी हैं, जिनमें से 34 परियोजनाएं शुरू भी हो चुकी हैं। इसमें पेनिसिलिन-जी (काकीनाडा) और क्लावुलैनिक एसिड (नालागढ़) जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं शामिल हैं।

चिकित्सा उपकरणों के लिए पीएलआई योजना

3,420 करोड़ रुपये की योजना के अंतर्गत उच्च स्तरीय चिकित्सा उपकरणों जैसे रेडियोलॉजी, इमेजिंग और कैंसर देखभाल के क्षेत्र में उत्पादों को बढ़ावा दिया जा रहा है। इसमें दो श्रेणियों के तहत कंपनियों को 5% प्रोत्साहन दिया जाता है।

बल्क ड्रग पार्क: आत्मनिर्भरता की आधारशिला

मार्च 2020 में शुरू की गई बल्क ड्रग पार्क योजना का उद्देश्य विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचा तैयार कर उत्पादन लागत कम करना और देश को आयात पर निर्भरता से मुक्त करना है। गुजरात, हिमाचल प्रदेश और आंध्र प्रदेश में पार्कों की स्थापना के लिए केंद्र सरकार ने प्रत्येक को 1,000 करोड़ रुपये तक की सहायता स्वीकृत की है।

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP)

सस्ती, प्रभावी और गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाओं की जन-सुलभता सुनिश्चित करने हेतु प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना एक क्रांतिकारी कदम है। इस परियोजना के अंतर्गत:

  • जनता को जेनेरिक दवाओं के लाभों के बारे में जागरूक करना
  • सरकारी अस्पतालों में जेनेरिक नुस्खों को प्रोत्साहन
  • ग्रामीण व वंचित क्षेत्रों तक पहुँच बढ़ाना

8 अप्रैल 2025 तक देश में 15,479 जन औषधि केंद्र कार्यरत हैं।

फार्मास्यूटिकल्स उद्योग सुदृढ़ीकरण योजना (SPI)

500 करोड़ रुपये की यह योजना 2021-22 से 2025-26 तक लागू है, जिसका उद्देश्य औद्योगिक संरचना को मजबूत करना और उत्पादन में नवाचार लाना है।

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