-डॉ. भीमराव अम्बेडकर जयन्ती- 14 अप्रैल, 2025-
डॉ. भीमराव अम्बेडकर भारत की परिस्थितियों को एक संतुलित, भेदभावरहित, समानता एवं समतामूलक समाज की निगाह से देखते रहे एवं दलित जाति के साथ जुड़े सामाजिक और आर्थिक भेदभावों को समाप्त करने के लम्बा संघर्ष किया। इस महान् क्रांतिकारी महायोद्धा की जन्म जयन्ती का अवसर न केवल उनके जीवन और संघर्षों को याद करने का मौका है, बल्कि न्याय, सामाजिक समानता और मानव अधिकारों के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करने का अवसर भी है। डॉ. अंबेडकर एक महान समाज सुधारक, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, विधिवेत्ता और भारतीय इतिहास के सबसे प्रभावशाली व्यक्तित्वों में से एक थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, डॉ. अंबेडकर को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

उन्होंने भारतीय संविधान को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समतावादी दस्तावेज के रूप में तैयार किया। संविधान में उन्होंने सामाजिक न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को मूल आधार बनाया। उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की ताकि उन्हें समान अवसर मिल सके। उनका यह कार्य भारत के सामाजिक ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के महू में एक गरीब अस्पृश्य परिवार में हुआ था। एक अस्पृश्य परिवार में जन्म लेने के कारण उनको अपना बचपन कष्टों में बिताना पड़ा। संघर्ष एवं कष्टों की आग में तपकर उन्होंने न केवल स्वयं का विकास किया वरन भारत के समग्र विकास का वातावरण निर्मित किया। वे नई मानव सभ्यता एवं संस्कृति के प्रेरक एवं पोषक थे। मनुष्य सदैव सत्य की तलाश में निरन्तर प्रयासरत रहा है और ऐसे ही समस्त जातिगत भेदभाव एवं असामनता पर प्रहार करने एवं उनको नेतृत्व देने के लिये डॉ. अम्बेडकर को याद करना एक आदर्श एवं संतुलित समाज निर्माण के संकल्प को बल देना है। डॉ. अंबेडकर ने केवल सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में ही नहीं बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी बहुत अहम भूमिका निभाई।
वे हमारे युग के महानतम नायक थे, उनके क्रियाकलापों में किंचित मात्र भी स्वार्थ नहीं था। बहु-भाषाविद्, धर्म दर्शन के विद्वान और समाज सुधारक बाबा साहेब ने भारत में अस्पृश्यता और सामाजिक असमानता के उन्मूलन के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। डॉ. अंबेडकर ने समाज में फैली जातिगत असमानता और छुआछूत के विरुद्ध व्यापक आंदोलन चलाए। उन्होंने महाड तालाब सत्याग्रह और कालाराम मंदिर प्रवेश आंदोलन जैसे ऐतिहासिक आंदोलनों का नेतृत्व किया। इन आंदोलनों का उद्देश्य यह था कि दलितों को सार्वजनिक स्थानों, मंदिरों, और संसाधनों पर समान अधिकार मिले।
बाबा साहेब के नाम से दुनियाभर में लोकप्रिय डॉ. भीमराव अम्बेडकर समाज सुधारक, दलित राजनेता, महामनीषी, लोकनायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, पत्रकार, समाजसेवी एवं धैर्यवान व्यक्तित्व होने के साथ ही विश्व स्तर के विधिवेत्ता व भारतीय संविधान के मुख्य शिल्पकार थे। डॉ. अम्बेडकर विलक्षण एवं अद्वितीय प्रतिभा के धनी थे, उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता, प्रचंड संग्रामी स्वभाव का मणिकांचन मेल था। वे अनन्य कोटि के नेता थे, जिन्होंने अपना समस्त जीवन समग्र भारत की कल्याण-कामना, संतुलित समाज रचना में उत्सर्ग कर दिया। खासकर भारत के अस्सी प्रतिशत दलित सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त थे, उन्हें इस अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. अम्बेडकर का जीवन संकल्प था। वे भारतीय राजनीति की एक धुरी की तरह थे, जो आज दुनियाभर के लिये एक अत्यंत महत्वपूर्ण दलित मसीहा एवं संतुलित समाज संरचना के प्रेरक महामानव है।

डॉ. अम्बेडकर धार्मिक विचारों के व्यक्तित्व थे, सन् 1956 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। डॉ. अम्बेडकर की बढ़ती लोकप्रियता और जन समर्थन के चलते उनको 1931 में लंदन में आयोजित दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। 1936 में उन्होंने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की जो 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों में 15 सीटें जीतने में सफल रही। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘जाति के विनाश’ भी 1937 में प्रकाशित की जो उनके न्यूयॉर्क में लिखे एक शोधपत्र पर आधारित थी। इस लोकप्रिय पुस्तक में अम्बेडकर ने हिंदू धार्मिक नेताओं और जाति व्यवस्था की जोरदार आलोचना की थी। उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लोगों को गांधीजी द्वारा रचित शब्द हरिजन पुकारने के कांग्रेस के फैसले की भी कड़ी निंदा की थी। वे सच्चे अर्थों में एक महान क्रांतिकारी युगपुरुष थे, जिनके जीवन का सार है कि क्रांति लोगों के लिये होती है, न कि लोग क्रांति के लिये होते हैं।
डॉ. अम्बेडकर ने विज्ञान और तकनीक के जरिये देश के विकास का सपना देखा था। बाबासाहब नई तकनीक के इस्तेमाल के पक्षधर थे। डॉ. अंबेडकर देश के तकनीकी विकास के लिए संकल्पित थे। उन्होंने पहले संसदीय चुनाव (1951-52) के पहले घोषणा पत्र में कहा था कि खेती में मशीनों का प्रयोग होना चाहिए। भारत में अगर खेती के तरीके आदिम बने रहेंगे, तो कृषि कभी भी समृद्ध नहीं हो पाएगी। मशीनों का प्रयोग संभव बनाने के लिए छोटी जोत की बजाय बड़े खेतों पर खेती की जानी चाहिए। बाबा साहब निम्न जाति में जन्म लेने के बावजूद कर्म से ब्राह्मण थे। आप किस जाति में पैदा होते हैं यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है सिर्फ और सिर्फ आपका अपना कर्म। निम्न कर्म से व्यक्ति निम्न होता है, और उच्च कर्म से ही व्यक्ति उच्च होता है। अतएव हम कह सकते हैं की डॉ. अम्बेडकर सामाजिक समरसता के सूत्रधार थे।
डॉ. अंबेडकर शिक्षा के क्षेत्र में बेहद प्रतिभाशाली थे। उन्होंने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और फिर स्कॉलरशिप की मदद से अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय से एम.ए. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद वे इंग्लैंड गए और वहाँ से बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की। विदेश में रहते हुए उन्होंने महसूस किया कि शिक्षा ही वह हथियार है जिससे सामाजिक असमानता को समाप्त किया जा सकता है। भारत लौटने के बाद, उन्होंने न केवल वकालत शुरू की बल्कि सामाजिक एवं राजनैतिक आंदोलन का भी नेतृत्व किया। गुलामी की मानसिकता एवं पहले से चली आ रही जातीय भेदभाव एवं ऊंचनीच की विभीषिकाओं ने दलित एवं पिछडे़ लोगों की मानसिकता कुंठित कर दी और वे अपने आपको दिशाविहीन समझ रहे थे, ऐसे दौर में डॉ. अम्बेडकर एक रोशनी बन कर प्रकट हुए। उनके नेतृत्व में दलित एवं मजदूर वर्ग समूचे भारत में संगठित होकर एक बड़ी शक्ति के रूप में उभरा। वे चाहते थे कि अछूत लोग ग्रामीण समुदाय और पारंपरिक नौकरियों के बंधन से मुक्त हों। वह चाहते थे कि अछूत लोग नए कौशल प्राप्त करें और एक नया व्यवसाय शुरू करें तथा औद्योगीकरण का लाभ उठाने के लिये शहरों की ओर रुख करें।
जब 15 अगस्त 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार बनी तो उसमें डॉ. अम्बेडकर को देश का पहला कानून मंत्री नियुक्त किया गया। 29 अगस्त 1947 को डॉ. अम्बेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ. अम्बेडकर ने मसौदा तैयार करने के काम में सभी की प्रशंसा अर्जित की। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया। 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद डॉ. आम्बेडकर ने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी।
डॉ. अम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। बाबासाहेब अंबेडकर के परिप्रेक्ष्य में संवैधानिक नैतिकता का अर्थ विभिन्न लोगों के परस्पर विरोधी हितों और प्रशासनिक सहयोग के बीच प्रभावी समन्वय करना था। उनके अनुसार, भारत को जहाँ समाज में जाति, धर्म, भाषा और अन्य कारकों के आधार पर विभाजित किया गया है, एक सामान्य नैतिक विस्तार की आवश्यकता है तथा संविधान उस विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 1990 में उन्हें भारत के सर्वाेच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से मरणोपरांत सम्मानित किया गया था।
