केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा है कि “अनुसंधान” नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) भारत के विज्ञान आधारित विकास के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की परिकल्पना का अनुपालन करेगा। वे आज नई दिल्ली में सभी विज्ञान मंत्रालयों और विभागों के केंद्रीय सचिवों की मासिक संयुक्त बैठक की अध्यक्षता कर रहे थे।
मंत्री महोदय ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा परिकल्पित एनआरएफ हमें नए क्षेत्रों में नए शोध का नेतृत्व करने वाले मुट्ठी भर विकसित देशों की कतार में शामिल कर देगा।
“अनुसंधान” एनआरएफ अधिनियम हाल ही के मानसून सत्र में संसद द्वारा पारित किया गया था। एनआरएफ गणितीय विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, पर्यावरण व पृथ्वी विज्ञान, स्वास्थ्य व कृषि सहित प्राकृतिक विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान, नवाचार और उद्यमिता के लिए उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव डॉ. अभय करंदीकर ने मंत्री महोदय को सूचित किया कि उन्होंने हाल ही में एनआरएफ कार्यान्वयन समिति की पहली बैठक बुलाई थी। नियम और विनियम के मसौदे अगले सप्ताह तक तैयार हो जाएंगे तथा अंतिम रूप दिए जाने के बाद उन्हें संसद में पेश किया जाएगा।
भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) प्रो. अजय कुमार सूद ने कहा कि 16 सदस्यीय एनआरएफ गवर्निंग बॉडी के लिए नामों के प्रस्ताव को भी अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसमें छह विशेषज्ञ, पांच उद्योग प्रतिनिधि और एक मानविकी विशेषज्ञ शामिल होंगे। एनआरएफ टियर-2 और टियर-3 संस्थानों को जोड़ेगा, क्योंकि इसके बजट का 11 प्रतिशत उनकी क्षमता निर्माण के लिए रखा गया है।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि एनआरएफ की कार्यकारी परिषद को न केवल विभिन्न परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी करने का काम सौंपा गया है, बल्कि विभिन्न स्तरों पर फंडिंग की जवाबदेही का विश्लेषण करने का भी काम सौंपा गया है। एनआरएफ यह काम भारत के विश्वविद्यालयों, कॉलेजों, अनुसंधान संस्थानों और शोध एवं विकास प्रयोगशालाओं में अनुसंधान और नवाचार की संस्कृति को बढ़ावा देकर तथा भारत में स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान और मिशन इनोवेशन को प्रोत्साहित करके पूरा करेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि टियर 2/3 संस्थानों को सहायता की आवश्यकता होगी, ताकि वे धन का पूरा इस्तेमाल कर सकें। उन्होंने कहा कि एनआरएफ इसके अलावा कार्य संस्कृति में व्यापक बदलाव लाएगा, क्योंकि उद्योग को जोखिम कवर लेने और काम शुरू करने के लिए आगे आना होगा।
एनआरएफ बजट में यह परिकल्पना की गई है कि पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे, जिसमें से 36,000 करोड़ रुपये का एक बड़ा हिस्सा, यानी 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा गैर-सरकारी स्रोतों, उद्योगों और दानवीरों, घरेलू व बाहरी स्रोतों से आयेगा।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि एनआरएफ देश में अनुसंधान एवं विकास की मद में होने वाले खर्च में इजाफा करेगा।
उन्होंने कहा, “सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बीच के विभाजन को पाट दिया जाएगा और उन्हें एकीकृत कर दिया जाएगा। एनआरएफ एक थिंक टैंक के रूप में भी काम करेगा। उसे उन विषयों को तय करने का अधिकार है, जिन पर परियोजनाओं को शुरू किया जाना और वित्त पोषित किया जाना है। उसे विदेशी गठबंधनों पर भी निर्णय लेना है।”
डॉ. जितेंद्र सिंह ने कहा कि शुरुआत से ही उद्योग जगत से जुड़ाव रहेगा, जिससे नवाचार के लिए एक इष्टतम ईको-प्रणाली तैयार होगी। भारत में क्वांटम स्टार्ट-अप ईको-प्रणाली को बढ़ावा देने के लिए उद्योग और पूंजी की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री मोदी ने एनआरएफ की परिकल्पना की है, जो 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभरने का मार्ग प्रशस्त करेगा।”
एनआरएफ राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) – 2020 की सिफारिशों के अनुसार देश में वैज्ञानिक अनुसंधान की उच्च स्तरीय रणनीतिक दिशा प्रदान करने वाली एक शीर्ष संस्था होगी, जिसकी पांच वर्षों (2023-28) के दौरान कुल अनुमानित लागत 50,000 करोड़ रुपये होगी।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) एनआरएफ का प्रशासनिक विभाग होगा, जिसका प्रशासन एक गवर्निंग बोर्ड द्वारा द्वारा होगा। इसमें विभिन्न विषयों के प्रख्यात शोधकर्ता और प्रोफेशनल शामिल होंगे। चूंकि एनआरएफ का दायरा व्यापक है – सभी मंत्रालयों को प्रभावित करता है – इसलिए प्रधानमंत्री बोर्ड के पदेन अध्यक्ष होंगे तथा केंद्रीय विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री इसके पदेन उपाध्यक्ष होंगे। एनआरएफ का कामकाज भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता में एक कार्यकारी परिषद द्वारा शासित होगा।
एनआरएफ उद्योग, शिक्षा और सरकारी विभागों और अनुसंधान संस्थानों के बीच सहयोग स्थापित करेगा तथा वैज्ञानिक और संबंधित मंत्रालयों के अलावा उद्योगों व राज्य सरकारों की भागीदारी और योगदान के लिए एक इंटरफ़ेस तंत्र तैयार करेगा। यह एक नीतिगत ढांचा बनाने और नियामक प्रक्रियाओं को स्थापित करने पर ध्यान केंद्रित करेगा, ताकि अनुसंधान एवं विकास पर उद्योग द्वारा सहयोग और बढ़े हुए खर्च को प्रोत्साहन मिल सके।