लैसेंट के एक ताजा शोध ने भारत में डायबिटीज के संदर्भ में एक हौलनाक तस्वीर पेश की है। इस शोध के मुताबिक भारत में 10 करोड़ दस लाख लोग डायबिटीज से गसित हैं। यह भारत और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान से बहुत-बहुत ज्यादा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान था कि भारत में सात करोड़ सत्तर लाख लोग इस बीमारी से ग्रसित होंगे। जबकि करीब ढाई लाख लोग प्री-डायबिटीज मतलब जिन्हें औसतन पांच साल में इससे ग्रसित हो जाना है, की स्थिति में होंगे। इससे पहले भारत सरकार का अनुमान था कि देश में 13 करोड़ साठ लाख लोग प्री डायबिटीज के साथ जी रहे हैं।
शोध में सबसे खतरनाक तथ्य इसका तेजी से होता जा रहा प्रसार है। मसलन गोवा, केरल और पुडुचेरी के एक चौथाई से अधिक आबादी डायबिटीज की चपेट में हैं। गोवा में करीब 26 दशमलव चार फीसदी, पुडुचेरी में 26 दशमलव तीन फीसदी और केरल में 25 दशमलव पांच फीसदी लोग इस बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं। चिंताजनक बात यह है कि यह बीमारी उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, अरुणाचल प्रदेश में तेजी से अपने पांव पसार रहा है। पहले इन राज्यों में इस बीमारी का प्रकोप बेहद कम था।
लैसेंट की इस रिपोर्ट को बेहद विश्वसनीय माना जा रहा है। वह इसलिए कि यह लैसेंट ने इस शोध को मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के साथ मिल कर अंजाम दिया है। शोध को पूरा करने में एक दशक का लंबा समय लगाया है। चूंकि लैसेंट के साथ दोनों संस्थाएं बेहद विश्वसनीय मानी जाती हैं। इनकी विश्वसनीयता की अपनी एक उत्कृष्ट छाप है। ऐसे में इस शोध को बेहद गंभीरता से लिया जा रहा है।
इस शोध में अहम भूमिका निभाने वाली और शोध की प्रमुख लेखिका डॉक्टर आरएम अंजना डॉक्टर मोहन डायबिटीज स्स्पेशलिएटीज सेंटर की निदेशक हैं। डॉक्टर अंजना देश में डायबिटीज की स्थिति की तुलना टाइम बम से करती हैं। वह कहती हैं- एक तो डायबिटीज से ग्रसित लोगों की संख्या अनुमान से बहुत-बहुत ज्यादा है। दूसरा प्री-डायबिटीज मतलब डायबिटीज से ग्रसित होने के मुहाने पर खड़े लोगों की संख्या भी डरावनी है। प्री-डायबिटीज की स्थिति में होने वाले 60 फीसदी लोगों को अगले पांच सालों में इस बीमारी से हर हाल में ग्रसित हो जाना है। ऐसे में अनुमान लगाया जा सकता है कि पांच-दस सालों बाद भारत में यह बीमारी कितना विकराल रूप धारण कर लेगी।
डायबिटीज को कई दूसरी बीमारियों की जड़ माना जाता है। मसलन इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति में हार्ट अटैक, स्ट्रोक, अंधापन, किडनी फेल होने का खतरा सामान्य लोगों के मुकाबले कई गुणा बढ़ जाता है। कई बार शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ जाने से डॉक्टरों के पास मरीजों के हाथ या पैर काटने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता। नब्बे के दशक से पहले भारत में डायबिटीज से ग्रसित लोगों की संख्या बेहद कम थी। हालांकि तब भी दुनिया के दूसरे देश इससे बेहद परेशान थे। इस बीमारी की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वर्तमान में दुनियाभर में हर ग्यारह में से एक वयस्क इस बीमारी से ग्रसित है।
इस बीमारी से बचने के लिए सावधानी बरते बिना कोई गुजारा नहीं है। वह इसलिए कि अब तक दुनिया भर के वैज्ञानिक यह पता लगाने में सफल नहीं हो पाए हैं कि आखिर ऐसा होता क्यों है? अब तक इसे आनुवंशिकता और वायरल इन्फेक्शन से जोड़ कर देखा जाता है। एक बार आप इसकी चपेट में आए तो यह बीमारी ताउम्र आपका पीछा नहीं छोड़ती। आप जब तक जीवित हैं तब तक आपको हर हाल में दवा का सहारा लेना ही पड़ेगा।
हालांकि यह साफ है कि इस बीमारी को हमारी बदलती जीवन शैली ने आमंत्रित किया है। बदलती जीवन शैली, जीवन स्तर में सुधार के बाद विलासिता का अधिक उपयोग, बढ़ता शहरीकरण, अनियमित काम के घंटे, तनाव, प्रदूषण, खान पान की आदतों में बदलाव और स्वच्छ के साथ ताजा भोजन की जगह फास्ट फूड पर बढ़ती निर्भरता ने भारत में इस बीमारी के लिए आरामदायक और आसान पहुंच तैयार की है। मुश्किल यह है कि भारत में यह बीमारी अब सिर्फ शहरों तक सीमित नहीं रह गई है। इस बीमारी ने छोटे शहरों, कस्बों और ग्रामीण भारत को अपनी जद में लेना शुरू किया है।
बहरहाल इस एपिसोट में हमें यह भी समझने की जरूरत है कि यह बीमारी है क्या और इसके फैलाव के कारण क्या हैं? दरअसल जब हमारा शरीर खून में मौजूद शुगर की मात्रा को सोखने में असमर्थ हो जाता है तब यह स्थिति डायबिटीज जो जन्म देती है। हम जब भी कुछ खाते हैं तो हमारा शरीर कार्बोहाइड्रेट को तोड़ कर ग्लूकोज में बदलता है। फिर पेन्क्रियाज से इंसुलिन नाम का एक हार्मोन निकलता है। यह हार्मोन हमारे शरीर की कोशिकाओं को ग्लूकोज को सोखने का निर्देश देता है। इस निर्देश के कारण हमारे शरीर में ऊर्जा पैदा होती है। मगर जब हमारे शरीर में उचित मात्रा में इंसुलिन का बहाव रुक जाता है, तब हमारे शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढऩे लगती है। इसके बाद हम डायबिटीज की गिरफ्त में आ जाते हैं।
अब तक दो तरह के डायबिटीज चिन्हित किए गए हैं, जिन्हें टाइप एक और टाइप दो का नाम दिया गया है। टाइप एक डायबिटीज में पेन्क्रिियाज में हार्मोन इंसुलिन का बनना बंद हो जाता है। इसके कारण शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। टाइप दो डायबिटीज में पेन्क्रियाज में शरीर की जरूरत के मुताबिक इंसुलिन नहीं बन पाता। या फिर हमारे शरीर का हार्मोन ठीक से काम नहीं करता। दुनिया भर में टाइप दो डायबिटीज से पीडि़तों की संख्या ज्यादा है। दुनिया भर के नब्बे फीसदी मरीज इसी टाइप दो डायबिटीज के शिकार हैं।