– ललित गर्ग-
नये बन रहे समाज एवं पारिवारिक माहौल में अब महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी हिंसा के शिकार हो रहे हैं, इसका ताजा उदाहरण है पुणे में रहने वाले एक संभ्रांत परिवार की महिला के घूंसे ने शनिवार को पुरुष की जान ले लेने का मामला। मामला घरेलू विवाद का था, लेकिन हिंसा के चरम पर पहुंचा और एक पत्नी के द्वारा पति की जान ले ली गयी। महिला के घूंसे ने परिवार एवं समाज में पनप रही नयी तरह की हिंसा को उजागर किया है। इस घटना ने अनेक प्रश्न खड़े कर दिये हैं। अब घरेलू हिंसा में पुरुष भी महिलाओं के शिकार होने लगे हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि पुरुषों के लिये महिलाओं की तरह घरेलू हिंसा के खिलाफ कोई कानून नहीं हैं। घरेलू हिंसा कानून की धारा 2(अ) के तहत परिवार के किसी पुरुष सदस्य, विशेष रूप से पति को कोई संरक्षण नहीं है। मद्रास उच्च न्यायालय यह मान चुका है कि पति के पास पत्नी के खिलाफ शिकायत करने के लिए घरेलू हिंसा जैसा कोई कानून नहीं है।
निश्चित ही घर की चार दिवारी में महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी हिंसा, उत्पीड़न एवं उपेक्षा के शिकार होते हैं। बढ़ती इन घटनाओं के मामले निश्चित तौर पर अदालत के समक्ष फैसले के लिए आएंगे। क्या न्याय की चौखट पर पुरुषों को समुचित न्याय मिल पायेगा? क्योंकि अभी तक ऐसे कानूनों में महिलाओं का ही पक्ष उजागर होता रहा है। जब पुरुष पर होने वाले अत्याचार के लिये कानून में संरक्षण की जगह नहीं है, तो हिंसा के इन सभी स्तरों के पार होने पर उचित न्याय के लिये भारतीय दंड विधान में उचित कानूनी प्रावधानों एवं पुरुष संरक्षण की अपेक्षा महसूस की जायेगी। इसलिये अब ऐसे पूरे मामले पर घरेलू हिंसा के प्रकारों पर गंभीर चर्चा आवश्यक हो गई है।
भारत में अभी तक ऐसा कोई सरकारी अध्ययन या सर्वेक्षण नहीं हुआ है जिससे इस बात का पता लग सके कि घरेलू हिंसा में शिकार पुरुषों की तादाद कितनी है लेकिन कुछ गैर सरकारी संस्थान इस दिशा में जरूर काम कर रहे हैं। ‘सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन‘ और ‘माई नेशन‘ नाम की गैर सरकारी संस्थाओं के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि भारत में नब्बे फीसद से ज्यादा पति तीन साल के गृहस्थ जीवन में कम से कम एक बार घरेलू हिंसा का सामना कर चुके होते हैं। इस रिपोर्ट में यह भी बात सामने आयी है पुरुषों ने जब इस तरह की शिकायतें पुलिस में या फिर किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर करनी चाही तो लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया और शिकायत करने वाले पुरुषों को हंसी का पात्र बना दिया गया। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के बीते साल सामने आए आंकड़े कहते हैं कि 18 से 49 साल की उम्र की 10 फीसदी महिलाएं कभी-न-कभी अपने पति पर हाथ उठाती हैं, वो भी तब जब उनके पति ने उन पर कोई हिंसा नहीं की। इन अत्याचारों एवं हिंसा को लेकर भादंवि में आपराधिक मामलों में कार्रवाई संभव है, इसके अलावा हिंदू मैरिज एक्ट से मुकदमा चलाया जा सकता है। लेकिन इससे पुरुषों को बहुत अधिक कानूनी संरक्षण नहीं मिल पाता है।