बसंत पंचमी- 14 फरवरी, 2024
-ललित गर्ग –
मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा त्योहार है बसंत पंचमी, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी, ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, सूर-संगीत, कला, सौन्दर्य और बुद्धि की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि देवी सरस्वती ने ही जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि दी थी। इसलिए वसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। बसंत पंचमी जीवन में नई चीजें शुरू करने का एक शुभ दिन है। बहुत से लोग इस दिन ‘गृहप्रवेश’ करते हैं, कोई नया व्यवसाय शुरू करते हैं या महत्वपूर्ण परियोजनाएं शुरू करते हैं। विवाह के लिए भी बसंत पंचमी का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है। इस त्योहार को अक्सर समृद्धि और सौभाग्य से जोड़ा जाता है।
बसंत पंचमी के साथ, यह माना जाता है कि वसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जो फसलों की कटाई के लिए एक अच्छा समय है। फाग के राग की शुरुआत भी इसी दिन होती है। फाल्गुन का अर्थ ही है मधुमास। वो ऋतु जिसमें सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य हो, सौन्दर्य ही सौन्दर्य हो। वृ़क्ष नये पत्तों से सज गये हो, कलियां चटक रही हों, कोयल गा रही हो, हवाएं बह रही हो। ऐसे मधुर मौसम में सरस्वती पूजन वसंत की शुचिता एवं सिद्धि का प्रतीक है, एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक गति है। लोकमन के आह्लाद से मुखरित वसंत ही महक और फाल्गुनी बहक के स्वर इसका लालित्य है, यही इस त्योहार की परम्परा का आह्वान है। यही क्षण है व्यक्तिवादी मनोवृत्तियों को बदलने का, ईमानदार प्रयत्नों की शुरुआत का, इंसानियत की नींव को मजबूती देने का। बहुत जरूरी है मन और मस्तिष्क की क्षमताएं सही दिशा में नियोजित हों। निर्माण का हर क्षण इतिहास बने, इसके लिये पवित्र मन से सरस्वती की साधना जरूरी है।