एक उम्र पार करने के बाद हमारा शरीर कई तरह की सामान्याओं से ग्रस्त होने लगता हैं। खासतौर से वृद्धावस्था में व्यक्ति कुछ कर सकने में असहाय होने लगता है और किसी भी उत्पन्न सामान्य को बुढ़ापे की निशानी समझकर नजरांदाज करने लगते हैं। मूत्र नली का संक्रमण भी एक ऐसी ही सामान्य अवस्था है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब बैक्टीरिया यानी जीवाणु हमारे मूत्र नली को संक्रमित कर देते है। सामान्य तौर पर इस संक्रमण का प्रारंभ मूत्र मार्ग से होता है और फिर धीरे-धीरे यह बढ़कर मूत्राशय और मूत्र नलिका के दूसरे भागों में पहुंच जाता है। इस संक्रमण के होने पर मूत्र त्याग करते समय जलन होती है और बार-बार मूत्र त्याग की इच्छा होती है। यह संक्रमण महिलाओं को ज्यादा होता है क्योंकि महिलाओं का मूत्र मार्ग छोटा होता है और मलद्वार , जोकि दूषण का एक स्त्रोत है के निकट होता, जिससे यह आसानी से संक्रमित हो जाता है। वैसी महिलाएं जिन्हें डायबिटीज, बावेल इंकाॅन्टिनेंस, किडनी स्टोन आदि की शिकायत है, या जिनकी शारीरिक गतिविधि कम है, कम मात्रा में तरल लेती हैं के साथ ही गर्भावस्था आदि की स्थिति में मूत्र नली के संक्रमण होनी की संभावना ज्यादा रहती है।
कारण
खट्टा, नमकीन, तीखा, तैलीय, मिर्च-मसाले वाला व तले-भुने खाद्य पदार्थ, चाय, काॅफी और अल्कोहल युक्त पेय पदार्थ ज्यादा मात्रा में लेने से हमारे शरीर में पित्त की मात्रा बढ़ जाती है। पित्त की बढ़ी हुई मात्रा मूत्र नली के संक्रमण यानी यूटीआई का कारण बनती है। इसके अतिरिक्त धूप या गर्म माहौल में काम करना, बहुत ज्यादा मेहनत के कारण शारीरिक तौर पर थक जाना भी मूत्र नली के संक्रमण को बढ़ाती है।
लक्षण
बुखार, मूत्र नली में जलन, दर्द, असहज महसूस करना, मूत्र त्याग करते समय जलन महसूस होना, मूत्र के साथ मवाद या रक्त का आना इस संक्रमण के प्रमुख लक्षण हैं।
आयुर्वेदिक सलाह
आयुर्वेद के अनुसार, मूत्र नली का संक्रमण यानी पित्तज मूत्रक्रिक्षार होने का कारण शरीर में पित्त दोष का बढ़ना है। पित्त एक आयुर्वेदिक त्रिदोष है जो अग्नि तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए वैसी जीवनशैली जो पित्त को बढ़ाती है, के कारण मूत्र नली का संक्रमण होता है। पित्त के बढ़ने के कारण हमारे शरीर में विष उत्पन्न हो जाते हैं। ये गर्म विष मूत्रवाही स्त्रोत यानी यूरिनरी चैनल में एकत्रित हो जाते हैं और हमारी मूत्र प्रणाली के संक्रमण से लड़ने के गुणों को असंतुलित कर देते हैं। इस वजह से मूत्र प्रणाली में जीवाणु पनप जाते हैं और मूत्र नली को संक्रमित कर देते हैं। इस संक्रमण को दूर करने के लिए आमतौर पर जो दवाएं दी जाती हंै, वे बैक्टीरिया को तो मारती हैंैं, पर संक्रमण को दूर नहीं कर पाती हैं। इसी कारण यह संक्रमण बार-बार होता रहता है। वहीं दूसरी ओर, आयुर्वेदिक दवाएं मूत्र नली में संक्रमण से लड़ने वाले गुणों को संतुलित करती है और विष को खत्म करती हैं। इससे रोगी को लंबे समय के लिए संक्रमण से निजात मिल जाती है।
खास सलाह
– बहुत ज्यादा गर्म, तैलीय, खट्टा, नमकीन और तीखी चीजें खाने से बचें।
– तरल पदार्थ जैसे पानी, फलों के रस, नारियल पानी और दूसरे पेय पदार्थ ज्यादा मात्रा में सेवन करें।
– पित्त को मारने वाले शाक जैसे छोटी या हरी इलायची, धनिया, लाल चंदन, मूलेठी आदि का ज्यादा मात्रा में सेवन करें।
– धूप या गर्म वातावरण जैसे भट्ठी, अंगीठी और ब्वाॅयलर के सीधे संपर्क में आने से बचें। साथ ही ऐसे माहौल में काम करने से भी बचें।
– ठंडे पानी में आधा छोटा चम्मच लाला चंदन पावडर मिलाकर दिन में दो से तीन बार नहाएं।
घरेलू उपचार
– तीन बड़ा चम्मच धनिया पावडर और एक बड़ा चम्मच बिना रिफाइंड किया हुआ चीनी पावडर एक बर्तन ;मिट्टी के बर्तन को प्राथमिकता देंद्ध में लें। अब इसमें तीन कप पानी मिलाकर रात भर छोड़ दें। इस तरल मिश्रण को अच्छी तरह मिलाकर दिन में तीन बार एक-एक कप सेवन करें। मूत्र नली में पित्त को शांत करने का यह बहुत अच्छा उपचार है।