प्रेरणा के प्रमुदित प्रलेख रचती एक पुस्तक 

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पुस्तकें जीवन में उमंग, उल्लास एवं उत्साह जगाती हैं। वे पाठक को संवारती-दुलारती हैं तो सीख-उपदेश भी देती हैं जैसे कोई मां अपने वत्स को सत्पथ पर बढ़ने को प्रेरित करती है। पुस्तके जीवन की कटुता और कलुषता का हरण कर सरसता-मधुरता घोलती हैं। और जब कोई पुस्तक ऐसे व्यक्तित्व पर केंद्रित हो जिसका जीवन समाज रचना और लोकहित को समर्पित रहा हो तो वह हर पाठक के लिए पाथेय बन जाती है। शब्द-शब्द में साधना की ऊर्जा और ऊष्मा सहेजे एक ऐसी ही पुस्तक मेरे सम्मुख है – कैलाश नाथ : पत्रकारिता के प्रेरक व्यक्तित्व, जो सम्बंधित व्यक्तित्व के न केवल संघर्षमय जीवन की झांकी दिखाती है अपितु विचारों की प्रतिबद्धता, प्रखरता और प्रामाणिकता के दृश्य भी प्रस्तुत करती है; प्रेरणा के प्रमुदित प्रलेख रचती है। पुस्तक के संपादक डॉ. ब्रजेश कुमार यदुवंशी संपादकीय में लिखते हैं, “इतिहास सदैव उन लोगों को महत्व देता है जिन्होंने जनकल्याणकारी कार्य करके मनुष्य को नया मार्ग और दृष्टि देने का कार्य किया है‌।” वास्तव में भारत की आत्मा ही लोकहितैषी लोकोन्मुख गति सिद्ध है तो उस भावभूमि में पला व्यक्ति लोकोपकारी क्यों न हो।

पाठकों के लिए यह संदर्भ देना उचित होगा कि कैलाश नाथ जी ने समाचार पत्र प्रकाशन के लिए आवश्यक संसाधनों के अभाव में भी जिजीविषा, दृढता एवं संकल्पशक्ति के बल पर पूर्वांचल के जौनपुर की समृद्ध धरा पर एक सांध्यकालीन अखबार ‘तरुणमित्र’ का पौधा 8 अक्टूबर, 1978 को रोपा था जो तमाम झंझावातों, चुनौतियों एवं बाधाओं से जूझते आज देश के पत्रकारिता जगत् की मुख्य धारा का प्रतिष्ठित समाचार पत्र बन वटवृक्ष सा स्थापित हो गया है। आरम्भ काल से ही तरुण मित्र अपने तेवर और खबरों की सत्यता एवं प्रामाणिकता के लिए न केवल सामान्य जनता, प्रशासनिक अधिकारियों अपितु विभिन्न अखबारों से सम्बद्ध संवाददाताओं के लिए भी महत्वपूर्ण स्रोत था। आगे चलकर तरुणमित्र ने प्रातःकालीन दैनिक के रूप में पत्रकारिता जगत् में प्रतिष्ठा प्राप्त की।

पुस्तक “कैलाश नाथ : पत्रकारिता के प्रेरक व्यक्तित्व” के संस्मरण एक ऐसे विजिगीषु वृत्ति कर्मसाधक का प्रेरक व्यक्तित्व निरूपित करते हैं जिसने संसाधनों के बिना ही केवल संकल्प, सत्साहस एवं लक्ष्य के प्रति अविचल अडिग निष्ठा के कारण पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर स्थापित किया। यह पुस्तक उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा, ऊर्जा एवं उत्साह का कार्य करेगी जो संसाधनों का रोना रोते रहते हैं और अपनी असफलता के लिए दूसरों को दोषी ठहराते हैं। वास्तव में यह पुस्तक नैराश्य के घने अंधेरे में आशा एवं विश्वास का प्रकाश बिखेरती है, उनकी राह में उम्मीद के दिए जलाती है। सफलता के लिए संसाधन मायने नहीं रखते बल्कि बल्कि प्रबल आत्मविश्वास, दृढ इच्छाशक्ति तथा परिवार, समाज एवं देश के लिए कुछ नया कर पाने का जुनून एवं समर्पण ही समय की शिला पर अपने हस्ताक्षर अंकित करता है।

 पुस्तक में कैलाश नाथ जी के परिचित एवं संपर्क में आए लोगों में से 53 ने अपनी भाव पुष्पांजलि संस्मरणों के माध्यम से अर्पित की है। इन 53 संस्मरणों को चार कोटि में रखा जा सकता है। पारिवारिकजन, मित्र-सहकर्मी, समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के परिचित व्यक्ति और चौथा तरुणमित्र से जुड़े संवाददाता, ब्यूरो चीफ एवं अन्य कर्मचारी गण। परिवार से दो पुत्र योगेंद्र विश्वकर्मा एवं आदर्श कुमार के साथ बहू शांती विश्वकर्मा, पौत्र उज्ज्वल, पौत्री उर्मी विश्वकर्मा ने भाव समिधा समर्पित की है। पुस्तक में अखबारों के संपादकों-पत्रकारों, वकीलों, प्रशासनिक अधिकारी एवं विद्यार्थियों, समाजसेवियों आदि के सम्मोहक संस्मरण समाहित है। जौनपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.पीसी पातंजलि कहते हैं कि भीड़ के बीच एक परिपक्व व्यक्ति, सांवला रंग, चमकती सफेद दंतावलि, चश्मे के पीछे आश्वस्त व शांत आंखें, छरहरा बदन, धोती कुर्ता पहने अन्य पत्रकारों से अलग दिख रहे थे। न केवल पत्रकार के रूप में बल्कि मेरे सलाहकार के रूप में कैलाश नाथ जी का स्नेह और सहयोग मुझे प्राप्त होता रहा, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात रही।

जौनपुर के अहियापुर में 31 जुलाई, 1937 को जन्मे कैलाश नाथ जी के सिर से पिता का वरदहस्त बचपन में ही छूट गया। परिवार की जिम्मेदारी ओढ़ ली तो पढ़ाई का नैरंतर्य टूटा। पर लगन थी तो व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में हाईस्कूल उत्तीर्ण कर स्थानीय समाचार पत्रों में काम आरंभ किया। कंपोजिटर, हॉकर का कार्य करते आजीविका के लिए बाटा के शोरूम में भी काम करना पड़ा। पर मन तो पत्रकारिता की दुनिया में रमा था। फलत: बाटा शोरूम छोड़ कुछ धन का जुगाड़ कर अपना प्रेस खोल लिया। इसी बीच वाराणसी से प्रकाशित ‘गांडीव’ के संवाददाता के रूप में भी काम करने लगे। पर आगे वह काम भी छोड़ दिया और 1978 में 10 पैसे कीमत का संध्या समाचार पत्र ‘तरुणमित्र’ आरम्भ किया।

तरुणमित्र जल्दी ही जनसामान्य का वास्तविक मित्र बन सर्वप्रिय हो गया। एक दशक पश्चात् 1988 में वेब ऑफसेट पर मुद्रण तथा 2011 में प्रातःकालीन प्रकाशन आरंभ हुआ। पांच राज्यों उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र एवं बिहार से बहुरंगी सात संस्करण छप रहे हैं। वह तरुणमित्र को पत्रकारिता जगत् के जगमगाते सितारे के रूप में देख प्रफुल्लित हुए। 18 जुलाई, 1989 को उर्दू दैनिक ‘जवांदोस्त’ का प्रकाशन आरम्भ किया।कोरोनाकाल में 2 मई, 2021 को इस शब्द-साधक ने जीवन यात्रा पूर्ण की। पुस्तक में सभी सहभागी लेखकों ने कैलाश नाथ जी की प्रामाणिक तटस्थ पत्रकारिता, सत्यनिष्ठा, समाजसेवा, लोक-मंगल कार्यों तथा सादगीपूर्ण जीवन के नयनाभिराम चित्र उकेरे हैं तो नवोदित पत्रकारों को समाचार लेखन की बारीकियां एवं तौर-तरीके भी सिखाने की स्मृतियां भी अंकित की हैं। निश्चित रूप से अपनी तरह की यह अनूठी पुस्तक है जो पाठक को प्रेरित करती है, उसमें कुछ नया रचती है। पुस्तक का आवरण आकर्षक है, कागज सफेद मोटा और छपाई आंखों को सुखकर है। यत्र-तत्र वर्तनीगत अशुद्धियां खटकती हैं, पर इससे कथ्य बाधित नहीं होता। यह पुस्तक न केवल साहित्यिक क्षेत्र में संस्मरणों की मधुर रसधार बहाएगी बल्कि आम पाठक के हाथों में भी सुशोभित हो प्रेरणा के सुमन बन खिले-महकेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। 

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

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