ग्राउंड रिपोर्ट
बिलासपुर: बस्तर के अनजान से अति पिछड़े गांव की तस्वीर अपने बुद्धि कौशल और बाहुबल से बदल कर रख देने वाले शख्स को देखकर यकायक यकीन ही नहीं होगा, कि यह वही व्यक्ति है, जिसने अपने गांव धुरवाडेरा (जो धुड़मारास के नाम से भी जाना जाता है) को आज विश्वभर में प्रसिद्ध कर दिया है। घने जंगलों के बीच बसे हुए मात्र चालीस घरों के छोटे से गांव की सूरत ही बिल्कुल उलट दी गई है। अनजाना सा गांव आत्मनिर्भर और विश्व में अपनी अलग पहचान बना प्रतिष्ठित गांव बन चुका है। जिस शख्स ने इस क्रांतिकारी अलख को जागृत कर गाँव वालों को एकजुट किया और गांव की तस्वीर बदलने का प्राण प्राण से प्रयत्न किया, इस शख्स का नाम है मान सिंह बघेल।
इन्हें देखकर कोई खास विशेषता नहीं दिखाई देगी। देखने में यह बिल्कुल साधारण ग्रामीण दिखाई देते हैं। साधारण कदकाठी, पतले दुबले सांवले से शख्स हैं । इन्हें देखकर नहीं लगेगा कि यह इस व्यक्ति में कोई खास विशेषता है। जब मुझे बताया गया कि यही वो शख्स है जिसने गांव के लोगों को साथ लेकर अपने गांव धुरवाडेरा को विश्व में प्रसिद्ध कर दिया। इनकी अथक मेहनत का ही परिणाम है कि गरीबी, पिछड़ेपन को दूर करते हुए यह गांव आज आत्मनिर्भर और खुशहाल बन चुका है। मैंने जब मानसिंह बघेल से बातें करना शुरू किया तभी समझ आया कि यह साधारण सी काया वाला व्यक्ति बहुत असाधारण है। इनकी बातें में बड़ी दूरदर्शी और गजब का आत्मविश्वास और दृढ़ता देखने को मिला। इनके द्वारा गांव के विकास के लिए किए गए काम को प्रत्यक्ष देखकर वाकई लगा व्यक्ति साधारण नहीं हो सकता ।
आज की स्थिति में छत्तीसगढ़ राज्य बस्तर संभाग के अति लघु गांव धुड़मारास (धुरवाडेरा) का नाम विश्व पटल पर तेजी से प्रसिद्ध हो चला है। आपको बता दूं कि इस गांव को यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड टूरिज्म ऑर्गेनाइजेशन द्वारा एशिया व भारत के सर्वश्रेष्ठ पर्यटन विलेज के रूप में पुरस्कृत किया गया है। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन द्वारा सर्वश्रेष्ठ पर्यटन गांव उन्नयन कार्यक्रम के लिए चुनकर गांव में उन्नयन के कई कार्य किए जा रहे हैं।
पूर्व में यह गांव घोर अभावग्रस्त अतिपिछड़ा एवं गरीबी से त्रस्त गांव था। गांव के लोग रोजी मजदूरी के लिए पलायन को मजबूर हो जाते थे। गांव के निवासी काफी ग़रीबी और कठिनाइयों में अपना जीवन गुजारा करने को मजबूर थे। इस गांव की एक खासियत है कि यहां के सारे निवासी ही आदिवासी धुरवा जाति के हैं। ये सभी बघेल सरनेम लिखते हैं। ये लोग कृषि और वनोपज के सहारे ही अपना जीवन यापन गरीबी में किया करते थे। उस समय गांव में ना तो कोई स्कूल, अस्पताल और ना कोई मूलभूत सुविधाएं थी, यहां तक की पहुंच मार्ग भी नहीं था।
धुरवाडेरा गांव बस्तर संभाग के जगदलपुर जिला मुख्यालय से तकरीबन चालीस किलोमीटर दूर प्रकृति के सुरम्य गोद में स्थित है। यहां पहुंचने के लिए कांगेर घाटी के घने जंगल और घाटियों को पार करना पड़ता है। पूरा रास्ता घने जंगलों और घाटियों से युक्त पूर्ण प्राकृतिक स्वच्छ वायु के साथ बड़ा ही मनोहारी छटाओं से भरपूर आकर्षक परिदृश्य पेश करता है। जिसे देखकर मंत्रमुग्ध हुए बिना नहीं रहा जा सकता। धुरवाडेरा पहुंचने के पूर्व बीच रास्ते में ही विश्व प्रसिद्ध कांगेर घाटी नेशनल पार्क में स्थित तीरथगढ़ जलप्रपात, कांगेर जलप्रपात का भी मनोहरी स्थल पड़ता है। तीरथगढ़ के करीब बीस किलोमीटर आगे यह गांव घने जंगल की गोद में कांगेर नदी के तट पर बसा हुआ है। धुड़मारास धुरवाडेरा पहुंचने के लिए वन विभाग की अनुमति( निर्धारित शुल्क के साथ) लेकर ही जाया जा सकता है!
गांव पहुंचकर हमने देखा कि गांव बड़ा ही व्यवस्थित और सुंदर ढंग से बसा हुआ है। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए विशेष ध्यान रखकर सारी व्यवस्थाएं ग्राम के ही लोग एक प्रबंध समिति के माध्यम से संभालते हैं। इस प्रबंध समिति के अध्यक्ष मानसिंह बघेल हैं। गांव के प्रवेश द्वार के बाद एक जगह बड़ा सा मैदान बनाया गया है जिसमें सैलानियों के वाहन पार्क किए जाने की व्यवस्था है। पास ही टिकट काउंटर बनाया गया है, जहां से आप बैंबू राफ्टिंग के लिए निर्धारित शुल्क पटाकर कांगेर नदी में राफ्टिंग का आनंद ले सकते हैं। पास में ही तीन-चार झोपड़ेनुमा होटल गांव की ही महिलाओं द्वारा संचालित किया जा रहे हैं। इन होटल में आपको नाश्ते के रूप में बड़ा,भजिया, चाय काफी के अलावा तरह-तरह के जंगली और मौसमी फल भी मिल जाएंगे। गांव वालों ने व्यवस्थित रूप से बाग बगीचे और विश्राम स्थल बनाए हुए हैं ।सैलानियों को अगर रात गुजारना हो तो बड़ा ही सुंदर और आकर्षक स्टेहोम भी बनाया गया है। जहां महिलाएं किचन और व्यवस्थाएं संभालती है। खाने में आपको स्थानीय व्यंजन के साथ मनपसंद भोजन की व्यवस्था की गई है। एक नजर देखने से ही गांव अति सुंदर और वनाच्छादित हरियाली से भरपूर स्वार्गिक आनंद की अनुभूति कराता है।
आज गांव की स्थिति यह है कि सारे ग्रामीण पुरूष क्या महिलाएँ सभी सैलानियों के लिए व्यवस्थाएं सम्मिलित रूप से सम्हालते हैं। व्यावहारिक रूप से यह लोग बड़े ही अपनत्व और प्रेम भाव से पेश आते हैं। कभी भी आपको उनके व्यवहार से ऐसा नहीं लगेगा कि आप अनजान लोगों के बीच पहुंचे हैं। गांव वालों से पूछने पर बताया गया कि अब हम खुशहाल और प्रसन्न है। अपने गांव की उन्नति और प्रसिद्धि से हम बड़े ही उत्साहित हैं। आगे भी गांव के प्रगति के लिए इसी तरह काम करने का जुनून हम में है। धुरवाडेरा की प्रसिद्धि इतनी बढ़ चुकी है कि रोजाना देसी विदेशी सैकड़ो पर्यटक यहां पहुंचते हैं, और यहां के प्राकृतिक सुरम्य वातावरण का आनंद उठाते हैं । यहां का वातावरण देखकर मन से अनायास ही यह शब्द निकल पड़ा कि ये वो बस्तर नहीं जहां नक्सलवाद के गोलियों की तडतडाहटें गूंजा करती थीं, अब तो ये वो बस्तर है जो दुनिया के मानचित्र पर पर्यटन के क्षेत्र में अपनी अंतरराष्ट्रीय पहचान बुलंद कर रहा है।
कयाकिंग और बैंबू राफ्टिंग
धुरवाडेरा में सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है। कांगेर नदी में कयाकिंग और बैंबू राफ्टिंग का अनुभव आनन्द लेना। सर्वप्रथम इसका विचार मानसिंह बघेल के दिमाग में आया था। कांगेर नदी में बैंबू राफ्टिंग और कयाकिंग की सारी व्यवस्था गांव वालों के साथ मिलकर उन्होंने किया। आने वाले पर्यटकों को कांगेर नदी में बैंबू राफ्टिंग और कयाकिंग के द्वारा कांकेर नदी में सैर कराके इसका आनंद महसूस कराया जाता है ,जिसमें सैलानी विस्मित और चमत्कृत होकर इसका आनंद लेते हैं। यह आनंद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता केवल स्वयं आकर ही बैबूराफ्टिंग कर महसूस किया जा सकता है।
स्टे होम और होटल महिलाओं द्वारा संचालित
धुरवाडेरा में ऐसा नहीं है कि गांव के विकास में केवल पुरुष ही अग्रणी हों, बल्कि पुरुष के साथ-साथ महिलाएं भी किसी भी तरह पीछे नहीं है। यहां की महिलाएं आने वाले पर्यटकों के लिए तरह-तरह के पकवान और फलों के दुकानें लगाती हैं ,और पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर आयअर्जन का कार्य कर रही हैं। वहीं महिलाओं द्वारा सैलानियों के लिए पूर्ण सुविधा युक्त एवं प्राकृतिक वातावरण में तैयार रुकने हेतु कई स्टे होम का निर्माण भी किया गया है। जिसका संचालन महिलाएं ही संभाल रही हैं। स्टेहोम में रात गुजारने का पर्यटकों द्वारा अलग ही आनंद प्राप्त किया जाता है।