आचार्य श्री विद्यासागरजी अलौकिक साधनावाले सिद्ध एवं विलक्षण संत

दिगंबर जैन परंपरा के सबसे वयोवृद्ध तेजस्वी, योगी, महामनीषी आचार्य, परम पूज्य, सिद्धांत चक्रवर्ती, अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी, जैनधर्म को एक नयी पहचान देने वाले राष्ट्रसंत एवं संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागरजी महाराज के ‘प्रथम समाधि दिवस’ के अवसर पर 21 फरवरी 2025 को मुंबई में आयोजित होने वाले ‘स्मरणांजलि समारोह’ एक आयोजन भर न होकर उस युगवेत्ता-युगप्रवर्तक महापुरुष की स्मृतियों को जीवंतता देने का सशक्त माध्यम है। यह आयोजन श्रद्धालुओं की श्रद्धा एवं भक्ति का ऊंच शिखर है।


भारत की इस पवित्र माटी को मेरे गुरु आचार्य विद्यासागरजी ने अपने पवित्र ज्ञान, अनुभव एवं आध्यात्मिक शक्ति से अभिसिंचित किया। उनकी साधना और कथनी-करनी की एकता ने सारे विश्व को ज्ञान रूपी आलोक से आलोकित किया था। स्थितप्रज्ञ आचार्य विद्यासागरजी ने अपने जीवनानुभव की वाणी से त्रस्त मानवता और विघटित समाज को एक नवीन संबल प्रदान किया था, जिससे राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक, शैक्षणिक और संस्कृतिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं। उनका गहरा विश्वास था कि एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण उसके नागरिकों के कर्तव्य भाव के साथ ही अपने परिवार, अपने समाज और देश के प्रति गहरी प्रतिबद्धता की नींव पर होता है।


 भगवान राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, ईसा, हजरत मुहम्मद, आचार्य कुन्दकुन्द, शंकराचार्य, संत कबीर, दादू, नानक एवं महात्मा गाँधी की श्रृंखला में आचार्य विद्यासागरजी जैसे महामना संत, समाज सुधारक एवं अध्यात्म मनीषी महामानव ने अपनी आत्म-साधना के बल पर स्वतंत्रता और समता के जीवन-मूल्य प्रस्तुत करके सम्पूर्ण मानवता को एक सूत्र में बाँधा था। जीवन में आस्था और विश्वास, चरित्र और निर्मल ज्ञान तथा अहिंसा एवं निर्बैर की भावना को बल दिया। जिनकी ओज और माधुर्यपूर्ण वाणी में ऋजुता, व्यक्तित्व में समता, जीवनशैली में संयम की त्रिवेणी थी। जीवन-मूल्यों को प्रतिष्ठित करने वाले बाल ब्रह्मचारी श्री विद्यासागर जी स्वभाव से सरल और सब जीवों के प्रति मित्रवत व्यवहार के संपोषक थे, इसी के कारण उनके व्यक्तित्व में विश्व-बन्धुत्व की, मानवता की सौंधी-सुगन्ध विद्यमान रही। वे बीसवीं सदी के संत परम्परा के महान साहित्य सृष्टा युगपुरुष थे। उनका साहित्य परिमाण की दृष्टि से ही विशाल नहीं, अपितु गुणवत्ता एवं जीवन मूल्यों को संचारित करने की दृष्टि से भी इसका विशिष्ट स्थान है। गिरते सांस्कृतिक मूल्यों एवं अपसंस्कारों को नियंत्रित करने एवं सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा उनके साहित्य में पंक्ति-पंक्ति में देखा जा सकता है। वे न केवल वैचारिक क्रांति के पुरोधा पुरुष थे बल्कि समाज एवं धर्मक्रांति के भी जनक थे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा था कि जीवन में हम बहुत कम ऐसे लोगों से मिलते हैं, जिनके निकट जाते ही मन-मस्तिष्क एक सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है। ऐसे व्यक्तियों का स्नेह, उनका आशीर्वाद, हमारी बहुत बड़ी पूंजी होती है। संत शिरोमणि आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज मेरे लिए ऐसे ही थे। उनके समीप अलौकिक आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता था। आचार्य विद्यासागर जी जैसे संतों को देखकर ये अनुभव होता था कैसे भारत में अध्यात्म किसी अमर और अजस्र जलधारा के समान अविरल प्रवाहित होकर समाज का मंगल करता रहता है। आज मुझे, उनसे हुई मुलाकातें, उनसे हुआ संवाद, सब बार-बार याद आ रहा है।


आचार्य विद्यासागरजी का जन्म आश्विन शरदपूर्णिमा संवत 2003 तदनुसार 10 अक्टूबर 1946 को कर्नाटक प्रांत के बेलग्राम जिले के सुप्रसिद्ध सदलगा-चिक्कोडी ग्राम में श्रेष्ठी श्री मलप्पा पारसप्पाजी अष्टगे एवं श्रीमती अष्टगे के घर में हुआ। बचपन का नाम विद्याधर रखा गया। बचपन में ही आपको जैन धर्म एवं दर्शन के संस्कार और धार्मिक विचारों से ओतप्रोत वातावरण मिला। आपने कक्षा नौवीं तक कन्नड़ी भाषा में शिक्षा ग्रहण की और उस छोटी उम्र में ही उनका मन धर्म की ओर आकर्षित हो गया और उन्होंने उसी समय आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का संकल्प कर लिया। उन दिनों विद्यासागरजी आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज के प्रवचन सुनते रहते थे। इसी प्रकार धर्म ज्ञान की प्राप्ति करके, धर्म के रास्ते पर अपने चरण बढ़ाते हुए मुनिश्री ने मात्र 22 वर्ष की उम्र में अजमेर (राजस्थान) में 30 जून, 1968 को आचार्यश्री ज्ञानसागरजी महाराज के शिष्यत्व में मुनि दीक्षा ग्रहण की। उन्होंने कन्नड़ भाषा में शिक्षण ग्रहण करने के बाद भी अँग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत और बांग्ला भाषाओं का ज्ञान अर्जित करके उन्हीं भाषाओं में लेखन कार्य किया। उनके द्वारा रचित रचना-संसार में सर्वाधिक चर्चित और महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में “मूक माटी” महाकाव्य है जिसने हिन्दी-साहित्य और हिन्दी संत-सहित्य जगत में एक विशिष्ट जगह प्राप्त की है। यूं तो उनकी हर पुस्तक महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ प्रख्यात है।

आचार्य विद्यासागरजी एक वृहद् धार्मिक समुदाय के आध्यात्मिक नेता थे। उनके वटवृक्षीय नेतृत्व के निर्देशन में साहित्य के अलावा अनेक प्रवृत्तियां चलयमान रही हैं। आपकी प्रेरणा और आशीर्वाद से कई गौशालाएं, स्वाध्याय शालाएँ, औषधालय स्थापित किए गए थे। आचार्यश्री ने पशु माँस निर्यात के विरोध में जनजागरण अभियान भी चलाया। साथ ही ‘सर्वोदय तीर्थ’ के नाम से अमरकंटक में एक विकलांग निःशुल्क सहायता केंद्र चलाया। आपने पशु धन बचाने, गाय को राष्ट्रीय प्राणी घोषित करने, माँस निर्यात बंद करने को लेकर अनेक उल्लेखनीय कार्य किए थे। संस्कृति के संवर्धन में भी आपका उल्लेखनीय योगदान है। आपके वैशिष्ट्य का राज है आपका प्रबल पुरुषार्थ, अटल संकल्प और अखण्ड ध्येय। आपकी करुणा में सबके साथ सहअस्तित्व का भाव जुडा था। विकास की यात्रा में सबके अभ्युदय की अभीप्सा थी।

आप माता-पिता की द्वितीय संतान होकर भी अद्वितीय संतान थे। बडे भाई श्री महावीर प्रसाद स्वस्थ परम्परा का निर्वहन करते हुए सात्विक पूर्वक सद्गृहस्थ जीवन-यापन कर रहे हैं। माता-पिता, दो छोटे भाई अनंतनाथ तथा शांतिनाथ एवं बहिनें शांता व सुवर्णा भी आपसे प्रेरणा पाकर घर-गृहस्थी के जंजाल से मुक्त हो कर जीवन-कल्याण हेतु जैन दीक्षा लेकर आत्म-साधनारत हुए। धन्य है वह परिवार जिसमें सात सदस्य सांसारिक प्रपंचों को छोड़कर मुक्ति-मार्ग पर चल रहे हैं। इतिहास में ऐसी अनोखी घटना का उदाहरण विरले ही दिखता है।

विद्याधर का बाल्यकाल घर तथा गाँव वालों के मन को जीतने वाली आश्चर्यकारी घटनाओं से युक्त रहा है। खेलकूद के स्थान पर स्वयं या माता-पिता के साथ मन्दिर जाना, धर्म-प्रवचन सुनना, शुद्ध सात्विक आहार करना, मुनि आज्ञा से संस्कृत के कठिन सूत्र एवं पदों को कंठस्थ करना आदि अनेक घटनाएं मानो भविष्य में आध्यात्म मार्ग पर चलने का संकेत दे रही थी। वास्तविक शिक्षा तो ब्रह्मचारी अवस्था में तथा पुनः मुनि विद्यासागर के रूप में गुरुवर श्री ज्ञानसागर जी के सान्निध्य में पूरी हुई। तभी वे प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, कन्नड, मराठी, अंग्रेजी, हिन्दी तथा बांग्ला जैसी अनेक भाषाओं के ज्ञाता और व्याकरण, छन्दशास्त्र, न्याय, दर्शन, साहित्य और अध्यात्म के प्रकाण्ड विद्वान आचार्य बने थे। वे मात्र दिवस काल में ही चलने वाले नग्नपाद पदयात्री थे। राग, द्वेष, मोह आदि से दूर इन्द्रियजित, नदी की तरह प्रवाहमान, पक्षियों की तरह स्वच्छन्द, निर्मल, स्वाधीन, चट्टान की तरह अविचल रहते थे। कविता की तरह रम्य, उत्प्रेरक, उदात्त, ज्ञेय और सुकोमल व्यक्तित्व के धनी आचार्य विद्यासागर भौतिक कोलाहलों से दूर, जगत मोहिनी से असंपृक्त तपस्वी थे। आपकी निजी पहचान बन गयी- वे भीड़ में सदा अकेले होते थे।

ग्रंथों में घिरे रहकर भी निर्ग्रंथ दीखते थे और लाखों लोगों के अपनत्व से जुड़कर भी निर्बंधता को जी लेते हैं। आपका संपूर्ण जीवन मानवीय मूल्यों का सुरक्षा प्रहरी था। इसलिए आप सबके लिए प्रणम्य थे। आपके विचार जीवन का दर्शन थे। प्रवचन भीतरी बदलाव की प्रेरणा थे। संवाद जीने की सही सीख थे। आचार्य विद्यासागरजी का अतीत सृजनशील सफर का साक्षी बना तो आपका साधना-काल तेजस्विता और तपस्विता की ऊंची मीनार। आपका भविष्य मानवता के अभ्युदय का उजला भविष्य था तो आप तनाव की भीड़ में शांति का संदेश थे। अशांत मन के लिए समाधि का नाद थे। चंचल चित्त के लिए एकाग्रता की प्रेरणा थे। संघर्ष के क्षणों में संतुलन का उपदेश थे।

आचार्य विद्यासागरजी से प्रेरणा पाने के लिए देश के सर्वोच्च राजनेता, पदाधिकारी, साहित्यकार, पत्रकार, संत पहुंचते रहे थे। जब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनकी सन्निधि में पहुंचे, उन्होंने पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज को नमोस्तु निवेदित कर श्रीफल भेंट कर आशीष ग्रहण किया। प्रधानमंत्री ने आचार्यश्री से राष्ट्रीय हित के अनेक मुद्दों पर चर्चा कर उनका मार्गदर्शन प्राप्त किया एवं गहन चर्चा करके समाधान प्राप्त किया था। संभवतः गौ रक्षा, पर्यावरण, कौशल विकास, राष्ट्रभाषा सशक्तिकरण, स्वरोजगार और स्वदेशी जैसे मुख्य बिंदुओं पर दोनों के बीच ऐतिहासिक चर्चा हुई। उन्होंने तब प्रधानमंत्री को सुझाव दिया कि एक मुल्क के दो नाम नहीं होते इसलिये हम इंडिया के बजाय केवल भारत के नाम को ही प्रचलित करना चाहिए। संभवतः मोदी ने आचार्य श्री विद्यासागरजी की प्रेरणाओं को साकार भी किया। युगदृष्टा, ब्रह्मांड के देवता, सिद्ध संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महामुनिराज दिनांक 17 फरवरी 2024  ब्रह्मलीन हुए। वे देशवासियों के हृदय और मन-मस्तिष्क में सदैव जीवंत रहेंगे। उनकी वाणी, उपदेश एवं संदेश युगयुगों तक सदैव प्रेरित और आलोकित करते रहेंगे। उनकी अविस्मरणीय स्मृति का सम्मान करते हुए हम उनके मूल्यों को मूर्त रूप देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। उनके बताए रास्ते पर चलकर ही राष्ट्र निर्माण और राष्ट्र कल्याण का मार्ग भी प्रशस्त होगा।

स्वामी देवेन्द्र ब्रह्मचारी
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »