भारत सरकार ने औद्योगिक विकास और पर्यावरणीय संतुलन के दोहरे उद्देश्य को लेकर कई दूरदर्शी योजनाएं शुरू की हैं। इन्हीं में से एक है प्लास्टिक पार्क योजना, जिसे रसायन और पेट्रो-रसायन विभाग द्वारा क्रियान्वित किया जा रहा है। इस योजना का उद्देश्य देश के डाउनस्ट्रीम प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग को सशक्त बनाना, निवेश और निर्यात को बढ़ावा देना तथा रोजगार के नए अवसर सृजित करना है।

क्या है प्लास्टिक पार्क योजना?
प्लास्टिक पार्क एक विशेष रूप से विकसित औद्योगिक क्षेत्र होता है, जो प्लास्टिक से संबंधित उद्योगों के लिए तैयार किया गया है। यहां अत्याधुनिक अवसंरचना, सामान्य सुविधाएं, अपशिष्ट प्रबंधन, रीसाइक्लिंग, और अनुसंधान व विकास की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं। यह एक क्लस्टर विकास दृष्टिकोण पर आधारित है, जहां छोटी और मध्यम इकाइयों को एक ही स्थान पर संगठित कर उनके बीच समन्वय और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा दिया जाता है।
सरकार इस योजना के तहत प्रत्येक परियोजना के लिए अधिकतम ₹40 करोड़ तक की अनुदान सहायता प्रदान करती है, जो कुल परियोजना लागत का 50% तक हो सकती है।
अब तक स्वीकृत प्लास्टिक पार्क और वित्तीय स्थिति
पार्क का स्थान | स्वीकृति वर्ष | परियोजना लागत (₹ करोड़) | अनुदान सहायता (₹ करोड़) | जारी राशि (₹ करोड़) |
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तामोट, मध्य प्रदेश | 2013 | 108.00 | 40.00 | 36.00 |
जगतसिंहपुर, ओडिशा | 2013 | 106.78 | 40.00 | 36.00 |
तिनसुकिया, असम | 2014 | 93.65 | 40.00 | 35.73 |
बिलौआ, मध्य प्रदेश | 2018 | 68.72 | 34.36 | 30.92 |
देवघर, झारखंड | 2018 | 67.33 | 33.67 | 30.30 |
तिरुवल्लूर, तमिलनाडु | 2019 | 216.92 | 40.00 | 22.00 |
सितारगंज, उत्तराखंड | 2020 | 67.73 | 33.93 | 30.51 |
रायपुर, छत्तीसगढ़ | 2021 | 42.09 | 21.04 | 11.57 |
गंजीमट्ट, कर्नाटक | 2022 | 62.77 | 31.38 | 6.28 |
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश | 2022 | 69.58 | 34.79 | 19.13 |
प्लास्टिक पार्क योजना के प्रमुख उद्देश्य
- प्लास्टिक प्रसंस्करण उद्योग में प्रतिस्पर्धात्मकता और मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देना।
- निवेश और उत्पादन बढ़ाने के लिए गुणवत्ता युक्त बुनियादी ढांचे का निर्माण।
- पर्यावरणीय स्थायित्व हेतु अपशिष्ट प्रबंधन और पुनर्चक्रण को बढ़ावा देना।
- क्लस्टर आधारित विकास के ज़रिए संसाधनों का दक्षतापूर्वक उपयोग सुनिश्चित करना।
स्थापना की प्रक्रिया
राज्य सरकारों द्वारा प्रस्ताव आमंत्रित किए जाते हैं, जिन्हें सैद्धांतिक अनुमोदन के बाद विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) के माध्यम से मूल्यांकन किया जाता है। अनुमोदन के पश्चात राज्य कार्यान्वयन एजेंसी परियोजना को लागू करती है। उदाहरणस्वरूप, 2020 में प्रस्ताव आमंत्रण के बाद गोरखपुर (उ.प्र.) और गंजीमट्ट (कर्नाटक) को 2022 में स्वीकृति दी गई।
राज्य सरकारें भूखंड आवंटन, कर प्रोत्साहन एवं जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से निजी निवेश को आकर्षित करती हैं।
अनुसंधान और उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence)
सरकार ने 13 उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना की है जो उन्नत पॉलिमर सामग्री, सतत पॉलिमर, जैव-अभियांत्रिकी प्रणालियों, पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान कर रहे हैं। प्रमुख संस्थान जैसे आईआईटी दिल्ली, पुणे की राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला, सीआईपीईटी भुवनेश्वर और चेन्नई इस पहल का हिस्सा हैं।
कौशल विकास एवं प्रशिक्षण
CIPET जैसे संस्थानों के माध्यम से अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं ताकि प्लास्टिक उद्योग के लिए कुशल कार्यबल तैयार हो सके।
पर्यावरणीय सततता की दिशा में पहल
- ईपीआर (Extended Producer Responsibility) के तहत पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग के लक्ष्य तय किए गए हैं।
- एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध और पुनर्चक्रण योग्य सामग्री का उपयोग अनिवार्य किया गया है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाते हुए नवीनतम तकनीकों और पुनर्चक्रण उत्पादों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
- आईएसओ, डब्ल्यूटीओ, यूएनईपी जैसे संगठनों के साथ समन्वय स्थापित किया गया है।
विश्वस्तर पर भारत की स्थिति
वर्ष 2022 में भारत ने प्लास्टिक निर्यात के क्षेत्र में 12वां स्थान प्राप्त किया। वर्ष 2014 में यह निर्यात 8.2 मिलियन डॉलर था, जो 2022 में बढ़कर 27 मिलियन डॉलर हो गया – यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि सरकारी प्रयासों और योजनाओं का प्रत्यक्ष प्रभाव उद्योग पर पड़ा है।
प्लास्टिक पार्क योजना भारत की औद्योगिक रणनीति का एक मजबूत स्तंभ बन चुकी है। यह न केवल विकेन्द्रित और विखंडित प्लास्टिक उद्योग को एकजुट करती है, बल्कि नवाचार, उत्पादन, निर्यात और रोजगार में भी बड़ी भूमिका निभाती है। पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व के साथ यह योजना सुनिश्चित करती है कि भारत का विकास टिकाऊ, समावेशी और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप हो।