विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने लॉन्च किया भारत का पहला विस्तृत आपराधिक कानून डाटाबेस

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी ने नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में आपराधिक कानून से जुड़ा भारत का पहला विस्तृत डाटाबेस- द स्टेट ऑफ द सिस्टम (एस.ओ.एस.) लॉन्च किया है। अनविलिंग द स्टेट ऑफ द सिस्टम नाम के इस कार्यक्रम में कानून से जुड़े जाने-माने विशेषज्ञ, नीति-निर्माता और विशेषज्ञ शामिल हुए। सबने मिलकर भारत के कानूनों में अपराधों को कम करने और सज़ाओं को तार्किक बनाने की तत्काल जरूरत पर महत्वपूर्ण चर्चा की।

एस.ओ.एस. डाटाबेस अब crimeandpunishment.in पर लाइव है। इस रिपोर्ट में पिछले 174 सालों में बनाए गए 370 केंद्रीय कानूनों के तहत हर अपराध और चूक को दर्ज किया गया है, जो 45 अलग-अलग विषयों को कवर करते हैं। यह अपनी तरह का भारत का पहला पब्लिक डाटाबेस है, जिसका उद्देश्य आम नागरिकों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं को देश में अपराध घोषित किए जाने की प्रक्रिया को बेहतर तरीके से समझने में मदद करना है। यह रिपोर्ट सज़ाओं के निर्धारण में होने वाली असंगतियों को उजागर करती है और भविष्य में अपराध कम करने और कानून बनाने के लिए एक सटीक और नीतिगत रूपरेखा भी पेश करती है।

रिपोर्ट के बारे में जानकारी देते हुए विधि में क्राइम एंड पनिशमेंट सेक्शन के प्रमुख, नवीद महमूद अहमद ने कहा, “आपराधिक कानून का उद्देश्य जनता की सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना है, लेकिन आज भारत के सामाजिक और प्रशासनिक प्रारूप तक इसकी पहुँच बढ़ चुकी है। यह रिपोर्ट और डाटाबेस यह समझने की कोशिश करते हैं कि हम शासन के उपकरण के रूप में आपराधिक कानून पर किस हद तक निर्भर हैं। यह छोटे-मोटे अपराधों को अपराध की श्रेणी से बाहर निकालने और सज़ाओं को तार्किक ढंग से तय करने की जरुरत को उजागर करता है।”

कार्यक्रम में एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा, प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शमिका रवि और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के चेयरपर्सन जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम उपस्थित रहे। पैनल के सदस्यों ने इस बात पर चर्चा की कि नागरिकों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी, व्यापार जगत पर अनुपालन के भार और सरकार के संसाधनों के उपयोग पर अधिक अपराधों को अपराध की श्रेणी में डालने का असर किस तरह पड़ता है। 

चूँकि, केंद्रीय सरकार जन विश्वास बिल 2.0 पेश करने की तैयारी कर रही है और कई राज्य सरकारें अपने कानूनों की समीक्षा करके अपराधमुक्ती और सज़ाओं के तार्किककरण के प्रावधानों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू कर रही हैं, ऐसे में एस.ओ.एस. डाटाबेस का शुभारंभ इस यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम है। एक जीवंत संसाधन के रूप में, उम्मीद की जा रही है कि यह चल रही अपराधमुक्ती कोशिशों और अन्य नीति हस्तक्षेपों को सूचित करेगा, ताकि अपराध कानून का दायरा सीमित किया जा सके और विश्वास आधारित शासन की ओर कदम बढ़ाया जा सके। इस पहल के साथ, विधि का उद्देश्य महत्वपूर्ण भागीदारों के साथ संवाद को सक्षम करना और एक ऐसी कानूनी रुपरेखा बनाने में योगदान करना है, जो समान और प्रभावी हो।

रिपोर्ट के कुछ प्रमुख बिंदु: 

  • वर्तमान में लागू 882 केंद्रीय कानूनों में से 42% (370 कानूनों) में आपराधिक प्रावधान हैं, जिनके तहत कुल 7,305 अपराध और चूक को अपराध की श्रेणी में लिया गया है
    • इनमें छोटे-मोटे उल्लंघन, जैसे- समय पर दस्तावेज़ न जमा करना, कुत्ते को घुमाने में चूक करना, या समय पर संपत्ति कर न भरना शामिल हैं, और साथ ही गंभीर अपराध जैसे अवैध हथियार रखना, हत्या और यौन उत्पीड़न भी शामिल हैं
  • इन कानूनों के तहत परिभाषित अपराधों में से 75% से अधिक अपराध ऐसे विषयों से संबंधित हैं, जो परंपरागत आपराधिक न्याय व्यवस्था से प्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए नहीं हैं। इसमें शिपिंग, टैक्स, वित्तीय संसथान और नगर निकाय शासन शामिल हैं
  • कॉर्पोरेट कानून के तहत सिर्फ 3 कानूनों में 262 अपराध शामिल हैं, जबकि बौद्धिक संपदा कानून के 5 कानूनों में 44 अपराध दर्ज हैं। अकेले कंपनी अधिनियम, 2013 में ही 241 अपराध शामिल हैं
  • कर, शुल्क और उपकर कानूनों के तहत 18 कानूनों में 265 अपराध शामिल हैं, जिसमें केंद्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम, 2017 में 45 अपराध हैं
  • अपराध की गंभीरता: 2,000 से ज्यादा अपराधों में सज़ा 5 साल या उससे अधिक है; 983 अपराधों में न्यूनतम सज़ा अनिवार्य है, जिनमें 106 अपराधों में कम से कम 10 साल और 44 अपराधों में कम से कम 20 साल की सज़ा तय है
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