-सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
मनुष्य नशीले पदार्थों का सेवन युगों से करता चला आ रहा है। नशीले पदार्थ हमेशा इसके लिये आनंद की वस्तु रहे हैं। पर अब जबकि हम इक्कीसवीं शताब्दी में हैं अब ये नशीले पदार्थ आनंद की बजाय बर्बादी के वस्तु बन गये हैं। आज न केवल नशीले पदार्थों के प्रकार बढे हैं, बल्कि उनका सेवन करने वालों की संख्या भी बढ़ी हैं। हमारे ही देश में पिछले कुछ दशकों में नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों की संख्या में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। हमारे यहां प्रतिदिन लाखो गैलन शराब पी ली जाती है। जिस पर अरबों रुपया खर्च होता है। इसके अलावा लोग भांग, गांजा, चरस, अफीम, तम्बाखू आदि नशीले पदार्थों के सेवन से देश, परिवार और स्वयं के बर्बादी का कारण बन जाते हैं।
नशे की प्रवृत्ति से स्वास्थ्य में गिरावट, कार्य कुशलता में कमी और अनेक मासिक विकृतियां उत्पन्न होने से सारा समाज समस्याग्रस्त है। कुछ वर्षों पूर्व तक शराब, भांग, गांजा, तंबाखू, अफीम, चरस ही नशीले पदार्थों के रूप में जाने जाते थे। लेकिन अब नशे की दुनिया में कई दूसरें ही नाम चलन में है। और वे नशीले पदार्थों का प्रभाव कहीं ज्यादा घातक है। नए नशीले पदार्थों में मार्फीन, हेरोईन, हशीश, स्नैक,एल. एस. डी., मैण्ड्रेक्स ब्राउन सुगर आदि नाम काफी प्रचलित हो चुके हैं। जहां इनकी कीमत बहुत ज्यादा है, वहीं इनको नशा गांजा, भांग, अफीम जैसे पुराने नशीले पदार्थों से कई गुना ज्यादा है।

