हम हमेशा से सुनते आएं हैं, जल ही जीवन है, चूंकि यह एक ऐसा अनमोल संसाधन है, जो सभी जीवित प्राणियों का भरण-पोषण करने के लिए अतिआवश्यक है। धरती की सतह पर 71% हिस्सा पानी से भरा होने के बावजूद, यह विडंबना ही है कि केवल 2.5% पानी ही ताज़ा और पीने या कृषि व अधिकांश औद्योगिक उपयोग के लिए उपयुक्त है। वहीं राजस्थान में, खासकर जैसलमेर और बाड़मेर जैसे क्षेत्रों में, जिस कदर पानी का मूल्य समझा जाता है, शायद ही देश के किसी अन्य क्षेत्र में जल की इतनी अहमियत समझी जाती हो। दरअसल इस निर्मम रेगिस्तानी भूक्षेत्र में, जहां सूरज लगभग हर मौसम अपने प्रचंड रूप में बना रहता है, वहां पानी एक दुर्लभ संसाधन की तरह है। हालांकि यहां रहने वाले लोगों ने ऐसे प्रतिकूल वातावरण में खुद को ढाल लिया है, क्योंकि इनके लिए पानी सिर्फ एक आवश्यकता नहीं बल्कि उनके अस्तित्व को बनाए रखने का साधन भी है।
वास्तव में राजस्थान के थार रेगिस्तान में रह रहे लोगों की पीढ़ियों ने दशकों से ‘गांव में तालाबों के निर्माण’ की एक प्राचीन और बौद्धिक प्रथा पर भरोसा जताया है। ये तालाब उनके लिए सिर्फ किसी जलाशयों से कहीं अधिक हैं, क्योंकि ये तालाब उनके समुदायों के लिए जीवनधारा की तरह कार्य करते हैं। वे इन तालाबों के जरिए, भूले भटके होने वाली रेगिस्तानी बारिश के पानी को एकत्रित करने का काम करते हैं, जो न सिर्फ उन्हें पीने का पानी प्रदान करते हैं बल्कि उनके जानवरों और यहां तक कि फसलों के लिए भी आवश्यक आहार प्रदान करते हैं। आधुनिकीकरण के साथ-साथ, बोरवेल और हैंडपंप की लोकप्रियता बढ़ने के बावजूद, यहां के बुजुर्गों ने सच्चाई से मुंह नहीं फेरा, और शायद इसीलिए उनके पैतृक तालाबों को सिर्फ जल निकाय का साधन न समझते हुए, उन्होंने इसे अपनी पहचान के रखवाले के रूप में संरक्षित रखने का प्रयास किया।
इस सूखी और बेजान भूमि में जल संरक्षण की सख्त जरुरत को भांपते हुए, अदाणी फाउंडेशन ने जल भंडारण की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण मिशन की शुरुआत की, जो वर्तमान में अपने ध्येय से कहीं अधिक आगे बढ़ गया है। अपने ‘तालाबों का जीर्णोद्धार’ मिशन के तहत फाउंडेशन का लक्ष्य, इन तालाबों की विरासत को पुनर्जीवित करना तथा इन गांवों की जीवन रेखा को संरक्षित करना था। इसके तहत समुदायों और स्थानीय नेताओं ने खुदाई क्षेत्र, तालाब की गहराई और जलग्रहण क्षेत्र में बढ़ोतरी जैसे मामले में उचित निर्णय लेने के लिए एक आर्किटेक्ट की भूमिका निभाई। गौर करने वाली बात है कि उनके निर्णय केवल पानी के ही इर्द-गिर्द नहीं घूम रहे थे, बल्कि उन्होंने बाल सुरक्षा, मवेशियों के कल्याण और वर्षा की प्राकृतिक लय से जुड़ी चिंताओं को भी अपने निर्णयों में शामिल किया।
इस प्रकार, जैसलमेर जिले में जल संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों के बूते, खासकर पोखरण, फतेहगढ़ जैसे ब्लॉक और नेदान (20500 क्यूबिक मीटर), मधोपुरा (7000 क्यूबिक मीटर), दवारा (7584 क्यूबिक मीटर), रसाला (17071 क्यूबिक मीटर), आचला (10914 क्यूबिक मीटर), और भेंसारा (9528 क्यूबिक मीटर) जैसे गांवों ने, क्षेत्र के जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। 14 तालाबों के जीर्णोद्धार के जरिए लगभग 70,507 घन मीटर की कुल संयुक्त भंडारण क्षमता वाले इन प्रयासों ने, न केवल स्थानीय समुदायों के लिए पानी की उपलब्धता में वृद्धि की है, बल्कि भूजल पुनर्भरण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए पानी का एक स्थायी स्रोत सुनिश्चित हो सका है।
इसमें भी कोई दो राय नहीं कि यह उल्लेखनीय उपलब्धि सामुदायिक भागीदारी, जिम्मेदार संसाधन प्रबंधन और क्षेत्र की प्राकृतिक विरासत को संरक्षित करने की प्रतिबद्धता के सकारात्मक दृष्टिकोण का प्रमाण है। निश्चित तौर पर यह महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के साथ-साथ इस तरह के शुष्क भूभाग व वहां रहने वाले लचीले समुदायों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में, सहयोगात्मक प्रयासों की एक बेमिसाल शक्ति को दर्शाता है।
जाहिर तौर पर ये तालाब सिर्फ जलस्रोत नहीं थे, जबकि स्थानीय संस्कृति की धड़कन भी थे। इसमें भी कोई शक नहीं कि ग्रामीणों का अपनी भूमि, संस्कृति और इतिहास से जुड़ाव अटूट होता है। वहीं जल संरक्षण के प्रति अदाणी फाउंडेशन की प्रतिबद्धता ने जल निकायों को पुनर्जीवित करने का जो कार्य किया है, उससे इन गांवों का भविष्य सुरक्षित हो रहा है। ग्रामीण भलीभांति जानते थे कि उनके तालाबों की तरह, वे भी विपरीत परिस्थितियों को अनुकूल बनाने के मामले में काफी लचीले थे। अब इन संयुक्त प्रयासों की बदौलत, उनकी संस्कृति के सतत कायम रहने, उनकी भूमि के लगातार फलने-फूलने और जीवन के लिए अमूल्य जल द्वारा उनकी आत्माओं को हमेशा पोषण मिलने की एक सकारात्मक उम्मीद कायम है। निश्चित रूप से रेगिस्तान की यह बेशकीमती विरासत आने वाली पीढ़ियों तक यूं ही जीवित रहने वाली है।
कुल मिलाकर देखें तो राजस्थान के शुष्क परिदृश्य में, गांवों के इन पारंपरिक तालाबों के जीर्णोद्धार और संरक्षण ने, न केवल एक महत्वपूर्ण संसाधन सुरक्षित किया है, बल्कि जीवन जीने के तरीके में एक निरंतरता भी सुनिश्चित की है जो इन समुदायों के इतिहास व संस्कृति में जड़ से जुड़े हुए हैं। अदाणी फाउंडेशन के प्रयास इस बात का एक प्रखर उदाहरण हैं कि कैसे कुछ समर्पित व्यक्तियों और संगठनों के द्वारा, वर्तमान समय की महत्वपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में एक ठोस बदलाव लाया जा सकता है। स्थानीय समुदायों के साथ, कदम से कदम मिलाकर काम करते हुए, तथा अतीत की बुद्धिमत्ता का सम्मान करके, हम सबसे कठिन वातावरण में भी एक टिकाऊ और उत्कृष्ट भविष्य का निर्माण करने में सक्षम हो सकते हैं।