राम और रावण का युद्ध आज भी लड़ा जा रहा है
12 अक्टूबर विजया दशमी के अवसर पर विशेष-
हर युग में भगवान ने अवतार लेकर पृथ्वी से पाप और पापियों का संहार किया है! त्रेता युग में भी ईश्वर ने राम के रूप में अवतार लेकर उस समय के घोर अत्याचारी लंकापति रावण का नाश किया या! बुराई पर अच्छाई की विजय का ही प्रतीक है विजयादशमी! रामरुपी सत्य की रावण रूपी असत्य प्रवृत्तियों पर यह विजय हर युगों में होती रहेगी! बुराई पर अच्छाई की यह विजय आने वाले भविष्य के युगों में भी तबतक होती रहेगी, जबतक थोड़े बहुत लोग धार्मिक-आध्यात्मिक प्रेरणा से भगवान राम के जीवन- आचरण को अपने जीवन में मर्यादित ढंग से लागू करते रहेंगे। जैसे रावण असूरों का राजा होते हुए भी स्वयं असुर नहीं था। उसकी प्रवृत्तिर्वा दैत्यों जैसी असुर प्रकृति की थी तभी उसे असुराधिपति का संबोधन दिया गया। हालांकि रावण ब्राम्हण कुल में पैदा हुआ था। वह विश्रवा ऋषि का पुत्र था, उसकी माता का नाम कैकसी था। धनपति कुबेर उसका सौतेला भाई था, वही कुबेर देवताओं की श्रेणी में गिने जाते हैं। धन के देवता कुबेर कहलाते हैं। रावण अपनी अपरिमित शक्ति के कारण मदान्ह हो गया था। उसने अपने भाई को अर्थात कुबेर को भी नहीं छोड़ा था, उसने कुबेर से युद्ध करके उसका पुष्पक विमान छीन लिया। बाद में रावण ने इन्द्र, वरुण, यक्ष और यम आदि अनेक देवताओं को पराजित किया था। रावण कपिराज बाली को देखकर दुम दबाकर भागता था, बाली से वह कभी नहीं जीत पाया।
देवताओं से अमरत्व छीनकर रावण ने लंका को अपनी राजधानी बनाया। ग्रंथों में उल्लेखित है कि रावण की लंका में समस्त प्रकार की विलासिता, एश्वर्य और आमोद-प्रमोद के अप्रतिम साधन थे। ऐसी एश्वर्य’ शाली लंका में राज कर रहा था रावण! ऐसा सुख तो देवताओं के लिये भी दुर्लभ था। बाल्मिकी रामायण के अनुसार पर्वत शिखर पर स्थित हजारों बलशाली राक्षसों के पहरे में रावण का राजभवन स्वर्ण का बना हुआ था। राजभवन के चारो ओर जल से भरी तथा कमल पुष्पों से सुशोभित खाई थी इस भवन में सिर्फ स्वर्ण ही नहीं था, बल्कि उसमें जगह जगह मोती माणिक्य भी जड़े हुये थे। रावण का अंतःपुर चंदन, गुग्गल आदि सुगंधित द्रव्यों से सुवासित था। वहां बैठक के लिये अनेक रत्न जडित आसन सहित स्थान-स्थान पर रत्नों के ढेर तो कहीं-कहीं विविध प्रकार के द्रव्य एकत्रित थे। एक विशाल रमणीय शाला भी थी जो अत्यंत स्वच्छ गणियों की सीढ़ियों से सुशोभित था। इतने वैभवशाली जीवन का अधिष्ठाता होने के बाद भी रावण अहंकार, लोभ के वश में होकर अपने सर्वनाश को आमंत्रित कर बैठा था। प्रकांड पांडित्य एवं विद्वान होने के बाद भी रावण की मति भ्रष्ट हो गई।
दशरथपुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम राम भारतीय संस्कृति के प्रतिनिधि पुरुष हैं। वह मात्र हिंदुओं के ही आराध्य नहीं, बल्कि किसी भी धर्म को मानने वाले क्यों न हो, सभी के लिये भी आदरणीय पुरुष हैं। इस बात का प्रमाण इसी से मिल जाता है कि वाल्मिकी, तुलसी के साथ-साथ रहीम सहित कई मुस्लिम कवियों ने भी राम का महिमा गान किया है। रावण से युद्ध के पूर्व श्रीराम ने अपने वनवास की अवधि का बहुत लंबा समय चित्रकूट में भी बिताया था। ऐसी मान्यता है कि वनवास काल के 12 वर्ष राम ने चित्रकूट के कामदगिरि में बिताये थे। इसीलिये चित्रकूट एवं कामदगिरि पर्वत की आज विशेष धार्मिक महत्ता है ।