एक सुखद अनुभव लेकर आती  है : देसी मैनेजर

हिंदी में साहित्य तो नियमित लिखा जाता  है किंतु प्रबंधन और विज्ञान विषय पर अधिक प्रयास नहीं हुए हैं  जो प्रयास हुए भी हैं तो वे प्रसिद्ध अंग्रेज़ी पुस्तकों के भावार्थ ही रहे हैं ऐसे समय में लेखक राकेश कुमार की  ‘ देसी मैनेजर ‘  पुस्तक एक सुखद अनुभव लेकर आती है लेखक ने 38  वर्ष देश के शीर्ष वित्तीय संस्थान में अर्जित अनुभव, श्रेष्ठ प्रबंध संस्थान में लिए गए  प्रशिक्षण और उन्हीं संस्थान में  सिखाने के अनुभव का  निचोड़ दिया है ।

यह बात लेखक ख़ुद नहीं कहते अपितु आई आई एम,  एफ़ एम एस , एशियन डेव्लेपमेंट बैंक, भारतीय जीवन बीमा निगम, भारतीय लोक प्रबंध संस्थान अथवा माइक्रोसॉफ़्ट जैसी संस्थाओं  के विशेषज्ञ कहते हैं  देसी मैनेजर को छापने से पहले लेखक द्वारा इस पुस्तक पर ली गई राय इस पुस्तक को प्रामाणिकता देती है ।

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इसलिए देसी मैनेजर अनेक कारण से विशेष हो जाती है । सबसे पहले यह देसी शब्द की गरिमा स्थापित करती है। देसी तमंचों के देश में देसी घी को छोड़ दे तो देसी शब्द पिछड़ेपन की निशानी बन कर रह गया  है ।

जबकि लेखक देसी शब्द को ‘शुद्ध’ और ‘भारतीय ‘ की गरिमा प्रदान करते हैं लेखक अतीत के गौरव का सहारा न लेकर, इसके कारणों की विवेचना से पुस्तक का प्रारंभ करते हैं।उनके अनुसार इसके तीन कारण हैं ।

●            भारतीय परिवार की  सभी सदस्यों की आवश्यकता की देखभाल में समानता के बजाय समता का प्रयोग होता है। यहाँ  सदस्य की योग्यता के बजाय उसकी आवश्यकता का ध्यान रखा जाता  है किंतु वही सदस्य जब किसी कंपनी में  किसी कर्मचारी के रूप में कार्य करता है तो  वहाँ उसे आवश्यकता के अनुरूप नहीं बल्कि पोजीशन के अनुरूप प्रशिक्षण और सुविधा दी जाती हैं । यह विसंगति उसे दुविधा में डाल देती है वह अपने काम को प्रोजेक्ट नहीं करता क्योंकि उसे सिखाया गया है कि काम करो जबकि पाश्चात्य प्रबंधन में काम का वर्णन करना कर्मचारी की ज़िम्मेदारी है ।

●            भारतीय प्रबंधक समय को  कभी ख़त्म न होने वाला स्त्रोत मानते हैं और इसलिए समय सीमा का पालन करने में चूक जाते हैं ।

●            वे लक्ष्य से कम आउटपुट को सहज स्वीकार कर लेते हैं । इसके कारण खोज लेते हैं ।

लेखक इन अवगुण की  चर्चा पर नहीं रुकते, वे भारतीय प्रबंधक के गुणों का भी विस्तार से वर्णन करते है जिनमें टीम भावना ( परिवार के  सदस्य की तरह काम करना) , चुपचाप अपना काम करना,  संस्था से लगाव मुख्य  हैं ।  इसके बाद वे स्पष्ट करते हैं कि ‘ हम मैनेजर क्यों बने हैं ‘  इसके  लिए वे ‘ स्पष्ट विचार शक्ति ‘ विकसित करने के तरीक़े सिखाते हैं। ‘ वेतन से अधिक कार्य करने की भूख पैदा करते हैं ।

लेखक “ नौकरी में नख़रा नहीं ‘  और ‘ ईश्वर  और स्वास्थ्य का सदा ध्यान रखना’ जैसी अमूल्य सलाह देते हैं। वे यह भी बताते हैं कि यह ‘ कार्य और परिवार की आवश्यकताओं में संतुलन ’  लाकर  ही किया जा सकता है। फ़ोन का सदुपयोग, सोशल मीडिया का सही प्रयोग, नेटवर्किंग कैसे करें  आदि विषय इस पुस्तक को वर्तमान समय में सफल होने के सरल मार्ग  बताती है  पाठक यह कार्य स्वयं कर सके इसके लिए उसे सरल अभ्यास हेतु  प्रश्नोत्तर का मार्ग सिखाया जाता है जिससे यह पुस्तक एक  कार्यशाला की तरह सिखाती है चुनी गई कहावतें अद्भुत हैं ।  कुछ उदाहरण कार्टून पूरे चैप्टर का सार एक क्षण में सीखा देते हैं। डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक  देसी मैनेजर एक प्रशंसनीय प्रयास है यह अंग्रेज़ी से हिन्दी अनुवाद की परंपरा तोड़ते हुए हिंदी से  अन्य भारतीय भाषाओं में अनूदित होकर अंग्रेज़ी अनुवाद की और बढ़ने वाली पुस्तक बन गई है यह मैनेजर के लिए लिखी जाने के बावजूद  विद्यार्थियों और परिवार के लिए भी अनुकरणीय बन गई है ।

उमेश कुमार सिंह

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