-02 नवंबर गोवर्धन पूजा पर विशेष-
वैसे तो दीपावली हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है पर दीपावली अपने साथ चार अन्य पर्वों को भी साथ लेकर आती है। जिसमें सबसे प्रथम है “धनतेरस” दूसरा “नरक चौदस” तीसरा “गोवर्धन पूजा” और सबसे अंत में “भाई दूज” का पर्व आता है। इसके बाद ही दीपावली महापर्व की समाप्ति मानी जाती है। दीपावली- के दूसरे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल के प्रथम दिन सारे भारत में गोवर्धन पूजा की जाती है। खासकर उत्तर-मध्य भारत में तो गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व माना गया है। गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं अपने घर के आंगन द्वार के समीप गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाती है, उसके आसपास ही गोबर के ही गौ, ग्वाल, खेत आदि बनाये जाते हैं। इस दिन अनेक प्रकार के पकवान भी बनाये जाते है। गोवर्धन को पकवान चढ़ाकर उसकी पूरे विधिपूर्वक अर्चना की जाती है।
गोवर्धन पूजा के दिन शाम होने पर उत्तर भारत में पुरुष वर्ग भी इसमें शामिल हो जाते है। और वे टोलियां बनाकर कौड़ियों से युक्त पोषाक पहनकर नाचते-गाते हैं। वे इस मौके पर विशषेतः राम या कृष्ण से संबंधित दोहे या गीत गाते है। जैसे एक गीत कुछ इस प्रकार है।
“अरे धनुष चढ़ाये राम ने, चकित भये सब धूप रे।
अरे भगन भई श्री राम जानकी देख राम”!!
इस अवसर पर स्त्रियां भी उनके साथ मिलकर लयताल के साथ मुकाबले पर उतर आती हैं, और उनके गीत दोहों का जवाब देती हुई अपने मधुर कण्ठों से वातावरण को गुंजित कर देती है। देर रात तक उनकी यह प्रतिस्पर्धा चलती रहती है। जिसका सभी लोग आनंद उठाते है।