-10 नवबंर आंवला नवमी के अवसर पर –
आंवला नवमी पर्व का प्रारंभ कार्तिक माह से होता है। यह पूरे एक माह अर्थात पांच सप्ताहों तक चलता रहता है। हर गुरुवार को इसकी पूजा की जाती है। अतः हर गुरुवार आने के पूर्व संध्या पर सभी लोग अपने अपने घरों को लीप पोतकर साफ सुथरा करते हैं एवं घर के कमरों में छूही की माटी से सफेद रंग बनाकर तरह तरह के सजावटी आकृतियां बनाते हैं फिर दूसरे दिन की पूजा पाठ की तैयारियां करते हैं। कहा जाता है कि कार्तिक माह के लगते ही आंवला का दान करना बहुत पुण्य देता है। इस संदर्भ में एक पुरानी कहानी बताई जाती है कि जो इस प्रकार है -किसी समय एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसके चार बेटे व चार पुत्रियां था। उस बुढ़िया के घर में आंवले का बहुत बड़ा पेड़ था। जिसमें फलने वाले आंवला को हमेशा वह ‘दूसरों को देती रहती थी।
दान पुण्य करने में बुढ़िया कभी पीछे नहीं रहती थी। इस आदत को देखकर उसकी बहुएं उससे बहुत चिढ़ा करती थी एवं आंवला दान करने से हमेशा मना करती थी एक दिन बहुओं ने उसे घर से निकाल दिया। बुढ़िया मजबूर होकर आंटे के छोटे छोटे (आंवले ) गोले बनाकर दान करने लगी। व हमेशा भगवत पूजा पाठ में ध्यान लगाती रही। उसके इसी भक्ति भावना और साधना से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु एक दिन प्रगट होकर उससे कहते हैं-“मैं तुम्हारी भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हूं! ” और भगवान की कृपा से उस बुढिया की झोपड़ी महल में बदल जाती है। जहां अनेक नौकर चाकर, धन, सोना चांदी अनेक कीमती आभूषण सभी कुछ था । बुढ़िया अपने महल में पूरी सुख सुविधा के साथ भगवत् पूजा में रम गयी। उधर उसके चारों बेटों का कारोबार ठप्प हो गया। चारों बहुएं दाने दाने को मोहताज हो गईं। अपनी गरीबी की हालत के कारण बहुओं को भी घर से निकल कर काम ढूंढना पड़ गया। संयोग से एक बहू अपने सास के महल में ही काम मांगने पहुंची। बुढ़िया ने अपनी बहु को तुरंत पहचान लिया और उसे अपने महल में नौकरानी रख लिया। बुढ़िया की बहु उसे नहीं पहचान पाई।