उमेश कुमार सिंह
हर युग में लेखक समाज को आइना दिखाने का कार्य करता है ऐसे ही लेखक थे राहुल सांकृत्यायन जिनका साहित्य क्रांति की मसाल के समान है इनका साहित्य समकालीन की जरुरत है जहाँ दुनिया इतर-बितर है वही इनका साहित्य दुनिया को बचाए रखने का काम करता है मानव व्यवहार के साथ जीवन दर्शन से सराबोर होती हैं इनकी पुस्तकें। राहुल जी घुमक्कड़ी प्रवत्ति के थे उन्होंने बहुत सी जगह घूमी जिसका असर इनके साहित्य में भी देखा जा सकता है उसी का नतीजा यह एक किताब घुमक्कड़ शास्त्र जो घुमक्कड़ी पर ही आधरित है इसके अलावा भी उन्होंने कई पुस्तकें यात्राा और भ्रमण पर लिखी हैं। महापंडित कहे जाने वाले राहुल सांकृत्यायन वास्तव में यायावर थे, लेकिन वैसे यायावर नहीं जो सारी सुविधाओं के साथ घूमने जाते हैं। वे लिखते हैं कि ‘बढ़िया से बढ़िया होटलों में ठहरने, बढ़िया से बढ़िया विमानों पर सैर करने वालों को घुमक्कड़ कहना इस महान शब्द के प्रति भारी अन्याय करना है। ’
राहुल जी ने उर्दू के पाठय्-पुस्तक में एक शेर पढ़ा था -ः
सैर कर दुनिया की गाफिल जिन्दगानी फिर कहाँ
अगर जिन्दगानी रही तो यह नौजवानी फिर कहाँ
इसी शेर को उन्होंने अपने जीवन का मूलमंत्र बना लिया और जीवन भर भ्रमण करते रहे। राहुल सांकृत्यायन ने कोलकाता, काशी, दार्जिलिंग, तिब्बत, नेपाल, चीन, श्रीलंका, सोवियत संघ समेत कई देशों का भ्रमण किया। वे एक साधारण घुमक्कड़ नहीं थे जो किसी देश में जाकर वहां के भूगोल मात्र से प्रभावित हो ले। वे जहां जाते, वहां की संस्कृति को भी आत्मसात् करते। 30 भाषाएं जानते थे और 140 किताबों के लेखक थे। अद्भुत तर्कशास्त्री थे, समाजशास्त्र, दर्शन, इतिहास, अध्यात्म जैसे विषयों के ज्ञाता थे। संभवतः यह सभी उनके घुमक्कड़ स्वभाव के कारण ही उन्हें मिला। अपने आप में घुमक्कड़ होना या मात्र साहित्यकार होना एक व्यत्तिफ को अन्य से अलग करता है तिस पर राहुल दोनों थे तो उन्हें महापंडित कह देना कोई अतिशयोत्ति तो नहीं है। लेखक का यह प्रयास सभ्य समाज की अलख जगाने का कार्य करेगी। आशा करते हैं कि इस कृति को भी पाठकों का प्यार मिलेगा।