भारत सरकार ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता (कार्बन इमिशन इंटेन्सिटी) में 33% से 35% तक कटौती करने का प्लान बनाया है। यह कमी 2005 को आधार मानते हुए की जाएगी। इसके साथ ही भारत ने 2030 तक नॉन फॉसिल फ्यूल सोर्सेस के जरिए 40 फीसदी बिजली उत्पादन का भी फैसला लिया है। अदाणी समूह के मुताबिक 2030 तक 45 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा प्राप्त करने की उनकी प्रतिबद्धता से 80 मिलियन टन CO2 के बराबर वार्षिक उत्सर्जन में कटौती करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा हर साल 480 अरब किलोमीटर चलने वाली पेट्रोल (गैसोलीन) कारों से उत्सर्जन को खत्म करने के बराबर कटौती इसके साथ ही रिन्यूएबल फार्मों के 25 साल के जीवनकाल में ये संचयी CO2 बचत तेजी से बढ़ेगी। गूगल द्वारा संचालित दुनिया के सबसे बड़े औद्योगिक क्लाउडों में से एक का लाभ उठाने से सालाना 3 मिलियन टन अतिरिक्त कार्बन डाइऑक्साइड को कम करने में मदद मिलेगी।
बड़ा सवाल ये है कि कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कैसे होता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण है फ़्लाइट जिसकी वजह से वातावरण में गरमाहट पैदा करने वाली दूसरी चीज़ें कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा, हवाई जहाज़ से नाइट्रोजन ऑक्साइड रिलीज़ होती है और यह वातावरण में फ़ैल जाती है. ये दोनों गैसें वातावरण में गरमाहाट बढ़ने की वजहों में शामिल हैं ऐसा अक्सर ज़्यादा नमी वाली जगहों पर होता है.
आइए आपको बताते है कि कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में सर्वाधिक योगदान करने वाला देश कौन सा है। दुनिया का सबसे बड़ा प्रति व्यक्ति उत्सर्जन कतर में सबसे अधिक है। कतर के बाद कुवैत, यूएई, बहरीन है। दुनिया का सबसे बड़ा कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जक देश चीन है। लेकिन अब सबसे अहम बात ये कि कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में कमी कैसे लाई जा सकती है तो इसके दो प्रमुख उपाय हैं। पहला-प्राकृतिक कार्बन सिंक (कार्बन युक्त रासायनिक यौगिक को संग्रहित करने और वातावरण से हटाने वाले उपाय) को बढ़ावा देना, जिसमें मिट्टी में कार्बन का भंडारण करना, अधिक पेड़ लगाना या समुद्र आधारित कार्बन सिंक में वृद्धि शामिल है। दूसरा-‘डायरेक्ट एयर कैप्चर’ जैसी प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करना, जो सीधे वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा देती हैं।
इससे विनाशकारी जलवायु परिवर्तन से बचने के लिए आवश्यक महत्वाकांक्षी उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिल सकती है। ‘डायरेक्ट एयर कैप्चर’ तकनीक में हवा को एक फिल्टर से गुजारा जाता है, जो नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, आर्गन जैसी वायुमंडलीय गैसों और वाष्प से कार्बन डाइऑक्साइड को हटा देता है। इस प्रक्रिया के बाद हवा में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बहुत कम हो जाती है और जो कार्बन डाइऑक्साइड एकत्र होती है, उसे हटाने या अधिक प्रसंस्कृत करने की कवायद शुरू की जाती है। ‘डायरेक्ट एयर कैप्चर’ तकनीक कार्बन को सीधे हासिल कर लेने और संग्रहित करने की प्रक्रिया से अलग है।
प्राकृतिक हवा में कार्बन डाइऑक्साइड के अणुओं की मात्रा महज 0.04 फीसदी होती है, जबकि जिन क्षेत्रों में कार्बन को कैद और संग्रहित करने की प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें यह स्तर अपेक्षाकृत काफी अधिक यानी 10 से 15 प्रतिशत होता है। यह एक ऐसा कारक है, जिससे न्यूनतम ऊर्जा के साथ-साथ व्यावसायिक रूप से उपलब्ध सामग्री का इस्तेमाल करते हुए अत्यधिक प्रतिवर्ती तरीके से चुनिंदा रूप से कार्बन डाइऑक्साइड को कैद करने वाली रासायनिक प्रक्रिया को तैयार करना बेहद कठिन हो जाता है।
अगर बात भारत की करें तो पंचामृत कार्य योजना के तहत, भारत का लक्ष्य 2030 तक 500 गीगावॉट की गैर-जीवाश्म ईंधन ऊर्जा क्षमता तक पहुंचना है। 2030 तक रिन्यूएबल एनर्जी के माध्यम से अपनी कम से कम आधी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना और कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन कम करना है। इसके अलावा कार्बन की तीव्रता को 45% से कम करना और 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करना है।