कहानियाँ सही मायने में बच्चों की दोस्त हैं, जो उन्हें खूब आनंदित करती हैं। वे कहानियाँ पढ़ते हैं तो बिना पंखों के उड़ते हुए किसी और ही दुनिया में पहुँच जाते हैं, जहाँ बहुत कुछ नया-नया सा है। वहाँ बड़ी अजब-अनोखी कल्पनाएँ हैं, जो हमारे आसपास की दुनिया में संभानाओं के नए-नए कपाट खोल देती हैं। लगता है, हमारे दिल में उम्मीदों के अनगिनत दीये जल रहे हैं, झिलमिल, झिलमिल और जो कुछ हम करना चाहते हैं, उसके लिए नए-नए रास्ते खुल रहे हैं। तमाम दरखाजे और खिड़कियाँ खुल रही हैं। रोशनी अंदर आ रही है, और मन का अँधेरा दूर हो रहा है।
यह सचमुच कितने आनंद की बात है। हर कहानी कुछ ऐसी ही खुशी, ऐसा ही आनंद लेकर हमारे दिल पर दस्तक देती है। हम कहानी पढ़ते हैं तो हमारे आगे नई-नई दुनियाएँ खुलती जाती हैं, और हम रोमांचित हो उठते हैं। यों कहानियाँ हैं तो जीवन है। कहानियाँ हैं तो हमारे जीने में भी रस है, आनंद है, उत्फुल्लता है। इसीलिए कहानियाँ हजारों बरसों से मनुष्य के साथ-साथ चलती आई हैं और उनका आनंद कभी किसी युग में कम नहीं हुआ। डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक बच्चों की सदाबहार कहानियां (प्रकाश मनु) एक रोचक कहानियां है।
‘बच्चों की सदाबहार कहानियाँ’ पुस्तक में ऐसी ही कहानियाँ हैं, जो एक बार पढ़ने के बाद हमेशा के लिए बच्चों की दोस्त बन जाएँगी। वे उन्हें बड़े प्यार से गुदगुदाएँगी, जी भर हँसाएँगी, और किसी दुख-परेशानी में जीखन भर उन्हें राह दिखाती रहेंगी। इन कहानियों में बाल पाठकों की मुलाकात नन्ही-सी खुशी से होगी, नटखट साशा, मीशा और सान्या से भी।
कहने को तो ये सब नन्ही-मुन्नी सी बच्चियाँ हैं, पर उनके मन में ऐसी एक से एक अनोखी कल्पनाएँ हैं और उनके खेल ऐसे नए-निराले हैं कि देखकर हर कोई हैरान रह जाता है। फिर इनमें नन्ही सी सान्या तो घूमने-फिरने की ऐसी शौकीन है, कि हर शाम को खह जरूर कहीं न कहीं घूमने निकल पड़ती है, और फिर कुछ न कुछ ऐसा जरूर होता है कि उसे लगता है, ‘अरे खाह! यह तो कहानी बन गई। बड़ी ही मजेदार कहानी!’
कभी लंबी गरदन खाले खूब ऊँचे-ऊँचे से ऊँट दादा से उसकी मुलाकात होती है तो कभी सफेद, काली सुंदर-सुंदर धरियों खाले जेबरा से, और कभी एकदम भोले-भोले से मुटकल्ले हाथी के बच्चे से। जब घर लौटकर वह मम्मी को ये कहानियाँ सुनाती है तो हँसते-हँसते उनके पेट में दर्द हो जाता है। उन्हें लगता है, जरूर सान्या ही ये कहानियाँ बना-बनाकर सुनाती है। पर नन्ही सान्या भला उन्हें कैसे यकीन दिलाए कि सच ही कभी अलमस्त ऊँट से उसकी मुलाकात होती है तो कभी भोले-भाले जेबरा से, कभी भेड़िए से तो कभी हाथी के मुटकल्ले बच्चे से। पर भई, ये सभी सान्या को बहुत प्यार करते हैं। और मुटकल्ला हाथी का बच्चा तो उसे अपनी पीठ पर बैठाकर पूरे जंगल में घुमा लाता है। जरा सोचो तो, प्यारी सान्या को इससे कितनी खुशी हुई होगी!
छोटे बच्चों को रिझाने वाली ऐसी कई कहानियाँ इस संग्रह में हैं, जिन्हें वे पढ़ेंगे, तो लगेगा, ‘अरे, यह तो मेरी ही बात कह दी गई। या कि यह तो मेरी ही कहानी है!’
अच्छा, चलो, कुछ नाम गिना ही देता हूँ। ‘खुशी को मिला मकई का दाना’, ‘साशा का टेडीबियर’, ‘और फिर नाच उठा बिल्ली का बच्चा’, ‘जब मीशा ने दी दाखत’, ‘जब मीशा टीचर बनी’, ‘सांताक्लाज के साथ अनोखी सैर’, ‘किस्सा मीशा और डोडो का’, ‘एक स्कूल मोरों वाला’, ‘जग्गी अंकल का डॉगी’ ऐसी ही कहानियाँ हैं, जो बिल्कुल नन्हे-मुन्नों के दिल की बात कह देती हैं।
ये ऐसी प्यारी और मीठी-मीठी कहानियाँ हैं, जिनमें नन्हे-मुन्ने बच्चों का नटखट संसार है। इसमें उनका भोलापन है तो बड़ी मोहक चंचलता भी। उनके तरह-तरह के खेल-तमाशे हैं, तो हँसी-खुशी, मस्ती और नाचना-गाना भी। बच्चों को लगेगा कि उनकी सारी की सारी दुनिया इसमें आ गई है। यहाँ तक कि किस्म-किस्म के फूल-पौधे, चिड़ियाँ, रंग-बिरंगी तितलियाँ और बड़ा ही शरारती पिल्लू भी, जिसके साथ खेलना उन्हें बहुत पसंद है। ‘नन्हा सा खुश्शू खरगोश’, ‘लाल रिबन खाली परी’, ‘भोला भाई के कुरकुरे बिस्कुट’, ‘जरा सँभल के बाबू’, ‘दादी माँ का चश्मा’, ‘मेखालाल की मिठाई’ ये भी छोटे बच्चों की कहानियाँ हैं। पर ऐसे बच्चे, जो अब एकदम नन्हे-मुन्ने नहीं, थोड़े से बड़े हो गए हैं, और अपने मन की बातें कहने लगे हैं। और भई, उनके मन की ये राज भरी बातें ही तो इन प्यारी-प्यारी सदाबहार कहानियों में ढल गई हैं। तो पिफर भला वे इन्हें क्यों न पढ़ना चाहेंगे?
पुस्तक में बहुत सी ऐसी कहानियाँ भी हैं, जिनमें हास्य-विनोद की मीठी पिचकारी छूट रही है। मगर उस पिचकारी के रंगों से भीगना बहुत अच्छा लगता है। बच्चे इन कहानियों को पढ़ेंगे तो हँसेंगे, बस हँसते ही चले जाएँगे। इस लिहाज से ‘जब चली पिचकारी रंगों की’, ‘अनोखा किस्सा चाँदनी चौक का’, ‘सब्जीपुर की भिंडी चाची’, ‘कद्दूमल की घुड़सवारी’, ‘निठल्लूपुर का राजा’, ‘भुल्लन चाचा के रंग-बिरंगे हाथी’ कहानियाँ अपनी मीठी गुदगुदी से मन को हलका-फुलका और ताजा कर देने खाली बड़ी खुशनुमा कहानियाँ हैं।
आज का जमाना खिज्ञान का है। यह हम सभी जानते हैं। पर पिफर भी, हम सभी का दिल तो यही कहता है कि क्या ही अच्छा हो, अगर कोई विज्ञान को भी सुंदर-सुंदर किस्से-कहानियों में ढाल दे, ताकि हम खेल-खेल में विज्ञान की तमाम बातों और बड़े-बड़े रहस्यों को भी जान लें। ‘अनोखी चिड़िया शिंगाई फू शुम्मा’ और ‘मंगल ग्रह की लाल चिड़िया’ ऐसी ही मजेदार कहानियाँ हैं, जिन्हें पढ़ते हुए बच्चों को लगेगा कि वे कोई मजेदार परीकथा पढ़ रहे हैं। ये ऐसी दिलचस्प कहानियाँ हैं, जिनमें विज्ञान भी है, कल्पना भी, इसीलिए परीकथाओं की तरह ये हमें दूर आकाश में उड़ा ले जाती हैं।
फिर बच्चों की सदाबहार कहानियों की इस पुस्तक में नए जमाने की ऐसी कहानियाँ भी कम नहीं, जिनमें दुनिया कुछ बदली-बदली सी है, हालात बदल गए हैं, लेकिन मन तो खही है न, जो हर हाल में रास्ता निकाल ही लेता है। बच्चों की इन सदाबहार कहानियों की एक विशेषता यह भी है कि इन्हें पढ़कर मन में उम्मीद के नन्हे-नन्हे दीये टिमटिमाने लगते हैं। वैसे भी कहानी है, तो उजाला भी है। इसलिए कि कहानी अँध्ेरे में रास्ता टटोलने का ही दूसरा नाम है। और जब एक बार मन में उजाला भर जाता है तो खह हमारे जरिए बहुतों तक पहुँचता है। तब हमारी यह दुनिया भी जाने-अनजाने थोड़ी सी तो जरूर उजली हो जाती होगी।
प्रकाश मनु का कहना है कि आज इसका राज भी बता दूँ। असल में मुझे बच्चों से दोस्ती पसंद है। बच्चों के लिए कहानियाँ लिखता हूँ, तो मुझे लगता है, मैं भी अपने बचपन में पहुँच गया हूँ और हँसते-खिलखिलाते हुए बच्चों के साथ आइसपाइस, खो-खो और चल कबड्डी, आल-ताल खेल रहा हूँ। और इसमें मुझे इतना मजा आता है कि मैं इसे छोड़ नहीं पाता। उम्मीद है, ये मीठी-मीठी, सदाबहार कहानियाँ पढ़कर बच्चे अपनी प्यारी सी नन्ही-मुन्नी चिट्टी जरूर लिखेंगे। मुझे बड़ी उत्सुकता से उसका इंतजार रहेगा।