कोटमसर की गुफाएं जहां कभी आदिमानव रहा करते थे

कोटमसर गुफा का नाम गोपंसर गुफा (गोपन = छिपा हुआ) से शुरू हुआ था, लेकिन वर्तमान नाम कोटमसर अधिक लोकप्रिय हो गया है। क्योंकि गुफा ‘कोटमसर’ नामक गांव के पास स्थित है। कोटमसर गुफा भारत के छत्तीसगढ़ राज्य में जगदलपुर के पास स्थित है। प्राकृतिक एवं भौगोलिक विशेषता मैं रुचि रखने वाले पर्यटकों के लिए कोटमसर गुफा एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है।यह कांगेर नदी पर एक चट्टानी पत्थर की गुफा बनी हुई है, जो कोलाब की सहायक नदी कांगेर के तट के पास स्थित है। और यह समुद्री तल से 560 मीटर की गहराई पर स्थित है। पहाड़ी की दीवार में स्थित मुख्य प्रवेश द्वार को   आवागमन के रूप में प्रयोग किया जाता है। 

यहां से गुफा के अंत तक भूमिगत सुविधा के लिए एक ठोस रास्ता बनाया गया है। गुफा का मुख्य सुरंग लगभग 200 मीटर लंबा है। जिसमें कई पार्श्व और नीचे की ओर मार्ग हैं। इन सुरंगों के रास्ते भर में  विभिन्न प्रकार के मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते हैं। आपदा के मौसम के दौरान गुफा में अक्सर बाढ़ आती है, जो आमतौर पर जून के मध्य में शुरू होती है और अक्टूबर के मध्य तक जारी रहती है। इस अवधि के दौरान यह स्थलीय धारा पर्यटकों के लिए बंद रहती है। इस गुफा में सालों भर पानी वाले विभिन्न कुंड भी मौजूद हैं। रहस्यों की धरती- कुटुमसर गुफा में यह साक्ष्य मिला है कि इस गुफा में आदि मानव निवास करते थे ।  

एक शोध में यह साबित भी हो गया है कि करोडो वर्ष पुर्व प्रागैतिहासिक काल मे इन्ही गुफा मे आदि मनुष्य रहा करते थे। वैज्ञानिकों का मानना है कि करोडो वर्ष पहले यह स्थान जल मग्न हुआ करता था। पानी के बहाव के चलते इस गुफा का निर्माण हुआ था। इस गुफा में भीषण अंधेरा छाया हुआ रहता है। गुफा मे प्रवेश के पश्चात ऐसा मालुम पड़ता है कि रात हो चुकी है। टार्च व अन्य उपकरण की सहायता से इसके अंदर के भव्य नजारो को देखा जाता है। यह गुफा काफी विशाल है, गुफा का जो आकार है। वह सर्प के आकार के समान प्रतीत होता है। गुफा के अंदर प्राकृतिक रूप से कई कक्ष बने हुऐ है। जिसकी लम्बाई लगभग 21 से 72 मीटर तक चौडाई मापी गयी है। इसके अंदर के कुछ स्थान को बंद करके रखा गया है। जिसमे कई अन्य रास्ते व कक्ष मिलने की संभावना बताई जा रही है। इस कुटुमसर गुफा को विश्व कि दूसरी सबसे बड़ी गुफा के रूप मे जाना जाता है। 

इस गुफा की तुलना अमेरिका के”कर्त्सवार आफ केंव गुफा” सें तुलना की गई है। गुफा के अंदर छोटे-छोटे तालाब है। व गुफा के अंदर छोटी नदी भी बहती रहती है। इस गुफा मे अनोखी मछली जो दुनिया मे कही भी नहीं पाई जाती और जो की अंधे भी  होते हैं। यह जो मछली पायी जाती है इस मछली को अंधी मछली कहा जाता है जिसका वैज्ञानिक नाम कप्पी ओला शंकराई नाम दिया गया है। गुफा के अंदर घना अंधेरा रहता है इस कारण, सूर्य कि किरण का पंहुचना असंभव है। सदियों से अधेरे मे रहने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि इन मछलियों की  आखों की उपयोगिता खत्म हो गयी व मछली जन्म से ही अंधी पैदा होती है। इसी कारण इसे अंधी मछली कहा गया है।

इस गुफा कि खोज स्थानीय आदिवासियों के द्वारा सन 1900 के आस पास खोजा गया था। कुटुमसर गुफा को सन 1951 मे प्रसिद्ध जाने माने जियोग्राफर ङा शंकर तिवारी द्वारा स्थानीय आदिवासियों व कुछ पुरातात्त्विक विभाग के टीम के द्वारा पहली बार इसका सर्वे किया गया था। श्री तिवारी के अपार सहयोग के चलते यह गुफा पूर्ण रूप से प्रकाश मे आया। इसलिए  इस गुफा का खोज का श्रेय ङा शंकर तिवारी को माना जाता है। यह कुटुमसर गुफा जमीन से लगभग 54 फिट नीचे है। इसका प्रवेश द्वार काफी संकरा है। मगर अंदर पहुचते ही एक अलग दुनिया मालूम पडती है। पुरातत्वविक विभाग के द्वारा लोहे कि सीढियो की व्यवस्था कि गयी है। गुफा कि लम्बाई 4500 मीटर है। गुफा के अंदर चुना पत्थर के रिसाव व कार्बनडाईक्साइट तथा पानी की रसायनिक क्रिया से सतह से लेकर इसकी छतों तक कई प्राकृतिक संरचनाये अंदर देखने को मिलती है। जिसे स्टैलेग्टाइट, स्टेलेगमाइट व ड्रिपस्टोन कि जैसी संरचनाये देखने को मिलती है। छत पर लटकते झूमर स्टलेगटाईट व जमीन से ऊपर कि तरफ जाते स्तंभ स्टेलेगमाइट व छत से जमीन से मिले बडे आकार के स्तंभ ड्रिपस्टोन कहलाते है। यह गुफा जगदलपुर से लगभग 40 किलोमीटर दूर जो 1370 मीटर तक फैली हुई हैं और 35 मीटर भूमिगत हैं। चूना पत्थर से बनी यह आकर्षक गुफा, राष्ट्रीय उद्यान के पश्चिमी ढलान में कांगेर नदी के समीप स्थित है। 

यह गुफा छत्तीसगढ़ के सबसे प्रसिद्ध गुफाओं में से एक है। गुफा के भीतर कोई भी प्राकृतिक रोशनी नहीं हैं। यह रोमांच से भरपूर है खास तौर से एडवेंचर पसंद करने वाले पर्यटकों को काफी ज्यादा आकर्षित करता है। प्रकृति के करीब जाने और परिवार या दोस्तों के साथ घूमने के लिए एक शानदार जगह है, अगर आप प्रकृति के साथ खूबसूरत वादियों में समय बिताना चाहते हैं तो आपको एक बार अवश्य जाना चाहिए। यह छत्तीसगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता में खुद को डुबोने का एक अच्छा स्थल है। यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से अप्रैल माह तक है, जब मौसम सुहावना होता है और बादल छंट जाते हैं। तब यहां जाना काफी सुविधाजनक और मनोनुकूल रहता है यहां की सुरम्य वादियों और गुफाओं को देखने का आनंद कुछ अलग ही प्राप्त होता है। यहां जाने के लिए ट्रेन, एरोप्लेन, टैक्सी और बस की सुविधाएं हर समय चालू रहती हैं। यहां से सबसे निकटतम बस स्टैंड जगदलपुर शहर का पड़ता है।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”
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