कांग्रेस की उल्टी गिनती एवं बढ़ता पलायन

ललित गर्ग-

कांग्रेस के दिग्गज एवं कद्दावर नेताओं में नाराजगी, हताशा एवं राजनीतिक नेतृत्व को लेकर निराशा के बादल लगातार मंडरा रहे हैं, पार्टी लगातार बिखराव एवं टूटन की ओर बढ़ रही है। पार्टी में उल्टी गिनती चल रहा है, लेकिन आश्चर्य इस बात को लेकर है कि इस उल्टी गिनती को रोकने के लिए कोई मजबूत उपाय नहीं हो रहे हैं। पार्टी से एक के बाद एक वरिष्ठ नेता कांग्रेस का दामन छोडऩे में लगे हुए हैं, कांग्रेस छोड़ने वाले इन नेताओं में कुछ राहुल गांधी के खास रहे हैं तो कुछ सोनिया गांधी के। पहले कांग्रेस में गिनती वन, टू, थ्री से होती थी। आजकल थ्री, टू, वन से होती है। पार्टी को मजबूती देने एवं पार्टी छोड़ कर जाने वाले नेताओं को रोकने की गिनती कौन शुरू करेगा? कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पहले देश में एकता यात्रा और उसके बाद अब न्याय यात्रा निकाल रहे हैं लेकिन वे पार्टी के भीतरी असंतोष एवं निराशा को रोकने का अभियान क्यों नहीं शुरु करते? क्या यह गांधी परिवार का अहंकार एवं परिवारवादी सोच ही पार्टी के टूटन का कारण है?

आगामी लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में बीते कुछ समय से शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो, जब किसी कांग्रेस नेता के पार्टी छोड़ने की खबर न आयी हो। गत दिवस गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी एवं पूर्व कांग्रेसी सांसद गजेन्द्र सिंह राजूखेड़ी, समेत मध्य प्रदेश के कई कांग्रेसी नेता भाजपा में शामिल हो गए। इसके पहले गुजरात, असम, महाराष्ट्र और यहां तक कि केरल के भी नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। एक के बाद एक नेताओं के कांग्रेस छोड़ने का सिलसिला यही बताता है कि उन्हें पार्टी में अपना भविष्य नहीं दिख रहा है, पार्टी नेतृत्व की अपरिवक्व एवं बचकाना राजनीति एवं देश-विकास की कोई स्पष्ट नीति न होना भी इन नेताओं के पार्टी छोड़ने का कारण है। राहुल गांधी के पास प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं भाजपा के खिलाफ कोई मजबूत विरोधी दावे नहीं है, चुनाव जीतने के लिये जिस तरह की राजनीति सोच एवं एजेंडा होना चाहिए, वह भी दिखाई नहीं दे रहा है। जातीय जनगणना, अदाणी- अंबानी, युवाओं, महिलाओं एवं गरीबों की अनदेखी करने के खोखले एवं बेबुनियाद आरोप के अलावा और कुछ कहने को नहीं है। वे जिन समस्याएं की चर्चा करते हैं, उनका कोई कारगर समाधान उनके पास नहीं हैं। अक्सर वे समाजवादी और वामपंथी नीतियों की वकालत करते दिखते हैं, जो पहले ही नाकाम हो चुकी हैं। कांग्रेस की यह विडम्बनापूर्ण एवं बेजान स्थिति तब है, जब आम चुनावों की घोषणा होने ही वाली है। कांग्रेस से लगातार पलायन करते नेताओं की यह दर्दनाक स्थिति रेखांकित करती है कि पार्टी नेतृत्व अपने नेताओं को प्रेरित एवं रोक नहीं कर पा रहा है। इसके लिए सबसे अधिक दोषी राहुल गांधी और उनके इर्द-गिर्द के लोग हैं, जो भाजपा एवं मोदी सरकार को चुनौती देने के नाम पर घिसे-पिटे बयान देने में लगे हुए हैं।

लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी कांग्रेस को रोज एक न एक झटका लग रहा है। उसके नेता कब उसका साथ छोड़ दें पता नहीं चलता। जैसे ही कोई चुनाव शुरू होता है, उसी समय से नेताओं का कांग्रेस छोड़कर जाना शुरू हो जाता है। क्या महाराष्ट्र, क्या मध्य प्रदेश, क्या कर्नाटक, सभी राज्यों से कांग्रेस के कई बड़े नेता या तो पार्टी छोड़ चुके हैं या छोड़ने की अटकलें लग रही हैं। राहुल गांधी के सबसे नजदीकी नेताओं में शामिल रहे दिग्गज भी अब भाजपा के साथ हैं तो वहीं कांग्रेस में सोनिया गांधी के करीबी माने जाने वाले नेताओं में से रीता बहुगुणा जोशी, कैप्टन अमरिंदर सिंह और गुलाम नबी आजाद भी बहुत पहले ही पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। कांग्रेस से युवा नेताओं का भी मोह भंग होता जा रहा है। इसका उदाहरण मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, अल्पेश ठाकोर, हार्दिक पटेल, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी, आरपीएन सिंह, अशोक तंवर जैसे नेता हैं, जो कांग्रेस से अलग हो चुके हैं। बिहार में अशोक चौधरी, असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा, सुनील जाखड़ के साथ अश्वनी कुमार, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हान जैसे भी नेता हैं जो पार्टी के काम करने के तरीके से नाखुश होकर पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। ये वे नेता हैं जिन्हें कांग्रेस ने पहचान दी, केन्द्रीय मंत्री, राज्य में मंत्री बनाया, पार्टी में बड़े पदों पर बिठाया परन्तु पार्टी के मुश्किल वक्त में वो पार्टी छोड़कर भाग रहे हैं।

कांग्रेस के दिग्गज नेता जो पार्टी छोड़ चुके या छोडने की फिराक में है, वे नरेन्द्र मोदी एवं राहुल के बीच के फर्क को महसूस कर रहे हैं। कांग्रेसी नेता यह गहराई से देख रहे हैं कि राहुल किस तरह हमारे सैनिकों की वीरता-शौर्य-बलिदान पर सवाल उठाते रहे हैं, भारत की बढ़ती साख, सुरक्षा एवं विकास की तस्वीर को बट्टा लगाते हैं। इन नेताआें ने महसूस किया कि किन्हीं राहुल रूपी गलतबयानी की वजह से मोदी की छवि पर कोई असर नहीं पड़ा है, भारत ही नहीं, समूची दुनिया में मोदी के प्रति सम्मान एवं श्रद्धा का भाव निरन्तर प्रवर्द्धमान है। राहुल गांधी एवं उनके रणनीतिकारों की नरेंद्र मोदी, भाजपा और संघ परिवार के प्रति शाश्वत वैर-भाव एवं विरोध की राजनीति समझ में आती है लेकिन देश की छवि खराब करने, सरकार को कमजोर बता कर और मोदी जैसे कद्दावर नेता को खलनायक बनाने से उन्हें इज्जत नहीं मिलेगी। यह तो विरोध की हद है! नासमझी एवं राजनीतिक अपरिपक्वता का शिखर है!! उजालों पर कालिख पोतने के प्रयास हैं!!! इसकी कीमत कांग्रेस पार्टी अपने कद्दावर नेताओं को खोकर दे रही है।

दरअसल भाजपा के ताकतवर होने के बाद कांग्रेस ने कभी भी पार्टी के लगातार कमजोर पड़ते जाने को लेकर आत्मंथन नहीं किया। कांग्रेस नीति और सिद्धांत भी संदेहास्पद होते चले गये हैं। ऐसे में भाजपा ने कांग्रेस के मजबूत किले में तोडफ़ोड़ करने में कसर बाकी नहीं रखी। भाजपा ने दोतरफ से कांग्रेस का घेराव किया। एक तरफ कांग्रेस शासन के भ्रष्टाचार और गलत नीतियों को न सिर्फ उजागर किया बल्कि कई दिग्गजों पर सीबीआई और ईडी की कार्रवाई भी करवाई। दूसरी तरफ भाजपा ने कांग्रेस में सेंधमारी करके उसके मजबूत नेताओं को तोडा़ और पार्टी को हाशिए पर ले आयी। दोनों तरफ से पिटती कांग्रेस में नेताओं को लगने लगा कि इसके दिन लद गए लगते हैं, यहां उनका राजनीतिक जीवन अंधकारमय है।

राहुल गांधी अपने आधे-अधूरे, तथ्यहीन एवं विध्वंसात्मक बयानों को लेकर निरन्तर चर्चा में रहते हैं। उनके बयान हास्यास्पद होने के साथ उद्देश्यहीन एवं उच्छृंखल भी होते हैं। राहुल ने पहले भी बातों-बातों में मोदी विरोध के नाम पर राष्ट्र-विरोध किया है। वह देश के प्रमुख विपक्षी दल के नेता हैं। सरकार की नीतियों से नाराज होना, सरकार के कदमों पर सवाल उठाना उनके लिए जरूरी है। राजनीतिक रूप से यह उनका कर्तव्य भी है। लेकिन उनके विरोध एवं राजनीति में वह दम-खम नहीं है जो मोदी का मुकाबला कर सके। यही बात कांग्रेस पार्टी के अंदर अभी जो हलचल है उसका एक बड़ा कारण है। वैसे कांग्रेस की अंतर्कलह की वजहें काफी सालों से है जिसको सोनिया गांधी, राहुल गांधी और अब मल्लिकार्जुन खरगे तक रोकने में असक्षम दिख रहे हैं। भले ही कांग्रेस के कुछ चाटुकार नेता पार्टी से पलायन का कारण केन्द्रीय एजेसिंयों का दबाव और इसे ही भाजपा में जाने का कारण बताये। अगर कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व इतना प्रभावी एवं सक्षम होता तो वे अपने जाने वाले नेताओं को रोकते हुए कहते कि ये वक्त किसी दबाव के आगे झुकने का नहीं है बल्कि लोकतंत्र को बचाने और देश के भविष्य के लिए संघर्ष करने का है। कांग्रेस तो इतनी जर्जर एवं आधारहीन हो गयी है कि उसने पूरे देश में विपक्ष को एनडीए के खिलाफ इकठ्ठा करने के लिए इंडिया गठबंधन तैयार किया, तब उसे लगा था कि देश की सत्ता तक पहुंचने के लिए यह रास्ता आसान होगा। लेकिन, एक-एक कर इंडिया गठबंधन से पार्टियां अलग होती चली गईं। सबसे पहले नीतीश कुमार जिन्होंने इस गठबंधन के लिए सबको इकठ्ठा किया था भाजपा के साथ हो लिए। फिर ममता बनर्जी को भी कांग्रेस का साथ रास नहीं आया। इसका मायने तो यही है कि कांग्रेस खुद की पार्टी एवं इंडिया गठबंधन को संभालने में ही नाकाम रही तो वह देश क्या संभालेगी?

ललित गर्ग
ललित गर्ग
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Translate »