फाल्गुन के महीने में हर तरफ रंग और उमंग नजर आना शुरू हो जाता है। फाग के इस महीने को रंगों का ही महीना माना जाता है क्योंकि इस महीने होली मनायी जाती है। पारंपरिक रूप से वसंत के मौसम में खिलने वाले तरह-तरह के फूलों के अर्क से प्राकृतिक रंग बनाकर होली खेलने का चलन रहा है। लेकिन समय के साथ-साथ प्राकृतिक रंगों पर केमिकल से बनाये गये रंग भारी पड़ते गये। अब हालात ये हैं कि केमिकल कलर्स या आर्टिफिशियल कलर्स त्योहार का हिस्सा बन गये हैं। कलर डाई भी बाजार में खुलेतौर पर आसानी से बिकते नजर आ जाते हैं जिन पर केमिकल की प्रकृति, शुद्धता या विषाक्तता के स्तर का कोई लेबल नहीं लगा होता।
किन चीजों से बनता है आर्टिफिशियल रंग
आर्टिफिशियल रंग बनाने के लिए एसिड्स, ग्लास पाउडर, अभ्रक और क्षार का प्रयोग किया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य पर खतरनाक असर डालते हैं। लेकिन इन चीजों से सबसे ज्यादा प्रभावित हमारी त्वचा होती है। अभ्रक वाले रंगों से दूरी बनाये जो रंगों को चमकीला आैर दरदरा बनाता है। बाजार में आसानी से मिलने वाले ये रंग त्वचा, बाल और आंखों पर नकरात्मक असर डालते हैं।
केमिकल रंगों से होने वाली स्किन एलर्जी
एग्जिमा : त्वचा पर केमिकल कलर्स का सबसे घातक असर एग्जिमा के रूप में नजर आता है। इस अवस्था में त्वचा पपड़ीदार हो जाती है और ऐसी लगती है जैसे जल गई हो। इसके साथ ही फुंसी या फफोले भी नजर आते हैं जिनमें तेज खुजली होती है।
डर्मटाइटिस : केमिकल रिएक्शन के कारण त्वचा पर एक समस्या नजर आती है जिसे एटॉपिक डर्मटाइटिस कहते हैं। इसके कारण त्वचा में तेज खुजली, दर्द और चकत्ते नजर आते हैं।