21 मई राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर विशेष
भारत वर्ष के छठवें प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी का राजनीति में अवतरण कोई योजनानुसार नहीं था। वह तो परिस्थितियाँ ऐसी बनती गई कि राजनीति में आने की जरा भी इच्छा नहीं होने के बावजूद उन्हें राजनीति में आना पड़ा। 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गाँधी की दुःखद हत्या के बाद अप्रत्याशित परिस्थितियों में श्री राजीव गाँधी को प्रधानमंत्री पद अपनाना पड़ा।
राजीव गांधी के नेतृत्व में होने वाले आम चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने प्रचण्ड बहुमत प्राप्त किया। पार्टी को इतनी अधिक पूर्ण बहुमत से जीत मिली थी कि उतना तो जवाहरलाल नेहरु या इंदिरा गाँधी के नेतृत्व के समय भी नहीं मिल पाई थी। इसके कारणों में हालांकि इंदिरा गाँधी की मृत्यु पर उपजे राष्ट्रव्यापी सहानुभूति की लहर प्रमुख रूप से कार्य कर रही थी। पर फिर भी राजीव गाँधी के करिश्माई व्यक्तित्व के कारण भी, पार्टी को प्रचण्ड मत से जीत प्राप्त हुई थी। इस तथ्य को हम नकार नहीं सकते।
वैसे राजनैतिक दृष्टि से श्री राजीव गाँधी की आयु विशेष लंबी नहीं रही। 23 जून 1980 को संजय गाँधी की विमान दुर्घटना में अचानक मौत जाने के बाद राजीव गाँधी ने राजनीति में कदम रखा था। इस लिहाज से राजीव गांधी को राजनीति में आये बहुत कम समय ही माना जायेगा। इसके पश्चात वे फरवरी 1983 में इंका के महासचिव बनाये गये। सन 1984 में श्रीमती इंदिरा गाँधी की हत्या के तुरंत बाद ही उन्हें सर्वसम्मति से कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रुप में शपथ दिलाई गई थी। फिर दिसम्बर 1984 को हुये आम चुनाव में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस आई ने प्रचंड बहुमत प्राप्त कर रिकार्ड बनाया था। इसके पूर्व न इसके बाद आज तक किसी भी पार्टी ने ऐसा पूर्ण बहुमत नहीं प्राप्त किया था।
प्रधानमंत्री तो आखिरकार राजीव गांधी को ही बनाया जाना तय था । प्रधानमंत्री के पद ग्रहण के पश्चात उनका कार्यकाल स्वतंत्र रूप से प्रारंभ हुआ। इस पर कोई संदेह नहीं कि उनके प्रधानमंत्रीत्व काल में उनके मनमोहक व्यक्तित्व और आकर्षण का बहुत प्रभाव था। और उनका कार्यकाल भी सफल रहा था। लेकिन उनकी सफलतायें उनके अपने मनमोहक व्यक्तित्व की वजह से मिली लेकिन सिस्टम में कुछ लोचे और त्रुटियां थी। जिन्हें उनको सुधारने में वक्त लगा।
प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी ने देश के विभिन्न क्षेत्र में मौजूद राजनैतिक समस्याओं के समाधान के लिये समझौतों की नीति अपनाई थी। इसके तहत उन्होंने सबसे पहले पंजाब के अकाली नेताओं से समझौता किया था। फिर बाद में असम में असम गण परिषद के नेता प्रफुल्ल कुमार मंडल के साथ मिलकर वहां भी पार्टी की राजनीति को पटरी में लाने का काम किया। मिजोरम और त्रिपुरा में भी आंदोलनकारियों के साथ समझौता किया था। वहीं श्रीलंका में तमिलों के हितों के लिये तथा शांति स्थापना की दृष्टि से श्रीलंका समझौता भी किया गया। पं.बंगाल समझौता किया गया। प बंगाल के पर्वतीय क्षेत्र दार्जिलिंग में गोरखालैण्ड की मांग को लेकर चले हिंसक और खूनी आंदोलन का अंत भी अंततः प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी के प्रयास से ही हो सका।
श्री राजीव गाँधी का कार्यकाल आर्थिक दृष्टि से भी चुनौती पूर्ण रहा। शताब्दी के सबसे भयानक सूखे के बावजूद विकास की दर में अपेक्षित वृद्धि उनके कार्यकाल की प्रमुख सफलती रही है। सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों की कार्यक्षमता बढ़ाने के साथ साथ निजी क्षेत्र के उद्योगों को भी राजीव गांधी के कार्यकाल में काफी प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। बीस सूत्रीय कार्यक्रम के तहत कमजोर और गरीब वर्ग के लोगों का जीवन स्तर सुधारने की दृष्टि से भी अनेक “बहुजन हिताय बहुजन सुखाय” की नीति अनुसार कार्य एवं योजनायें उन्होंने चलवाई।विदेश नीति के लिये श्री राजीव गाँधी ने श्रीमती इंदिरा गांधी की नीतियों का ही अनुसरण किया।
सोवियत संघ ( रूस तब अविभाजित सोवियत संघ था) के साथ संबंधों में और प्रगाढ़ता आई थी। वही पहासी देशों के साथ भी परम्पर सहयोग एवं मित्रता के लिये राजीव गांधी ने अनेक प्रयास किये थे। चीन के साथ सीमा विवाद सुलझाने की दृष्टि से अधिकतर साथ ही व्यापार के लिए बातचीत के नये द्वार बनाये। श्रीलंका में जातीय संघर्ष के कारण पैदा हुई गंभीर संकट की स्थिति में राजीव गाँधी ने श्रीलंका में शॉति सेना भेजकर अपनी मित्रता का कर्तव्य बखूबी निभाया था।
लेकिन कहते है ना ‘नेकी कर दरिया में डाल” आखिरकार यही कहावत श्री राजीव गाँधी के साथ चरितार्थ हुई थी । श्री गाँधी से मुसीबत के समय श्रीलंका की तात्कालिक सरकार ने अपने संकट को दूर करवाने के लिये कातर स्वर में सहायता का आग्रह किया तो एक अच्छे पडोसी की तरह उन्होंने अविलंब यथोचित सहायना श्रीलंका को प्रदान की। श्री गाँधी के इस की कदम की सर्वत्र प्रशंसा भी की गई। श्री गाँधी के इस महती कदम ने श्रीलंका को खंड- खंड बिखरने से बचा लिया। यही कार्यवाही वहां के आतंकवादी एवं विघ्नसंतोषी संगठनों को रास नहीं आई !और उन्ही के पडयंत्रों ने अपना जाल विछाना प्रारंभ कर दिया, और जब श्री राजीव गाँधी 21 मई 1991 को अपने चुनावी दौरे के दौरान दक्षिण के श्रीकोयम्बटूर चुनावी सभा के लिये पहुँचे तो वहां मानव बम के द्वारा उनकी हत्या कर दी गई।