वट से मिलती लंबी उम्र-वट सावित्री व्रत

पूरे विश्व में भारतीय परंपरा और रीति रिवाजों की चर्चा होती है यों कि भारत के अलावा शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां की औरतें अपने से ज्यादा अपने पति और परिवार को महत्व देती हों। यहां की औरतें अपने पति की लंबी कामना के लिए कई पूजा-पाठ व्रत आदि करती हैं। ऐसा ही एक कठिन व्रत होता है- वट सावित्री व्रत। वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है जो कि अक्सर मई या जून में होता है। कई लोग इसे ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाते हैं तो कई लोग ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को। अत: वर्ष २०१३ में यह व्रत ८ जून और २३ जून के दिन मनाया जाएगा। इन दोनों व्रतों को वट सावित्री अमावसी व्रत और वट सावित्री पूर्णिमा व्रत के नाम से जाना जाता है। इस दिन औरतें बरगद के वृक्ष और सावित्री देवी की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए पूरा दिन निर्जल व्रत करती हैं।

व्रत का विधि-विधान:

इस दिन औरतें सुबह उठकर नहा धोकर नए वस्त्र पहनती हैं। नई चूड़ियां, मंगलसूत्र, ङ्क्षबदी, सिंदूर आदि लगाकर बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं। सबसे पहले ब्रह्मा और सावित्री की पूजा की जाती है फिर सावित्री और सत्यवान की पूजा कर बरगद के पेड़ को पानी दिया जाता है। जल, $फूल, मोली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया चना, गुण तथा धूप दीप से बरगद की पूजा की जाती है। फिर पेड़ के आसपास धागा लपेटते हुए तीन बार परिक्रमा की जाती है। वट के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री कथा सुनी जाती है। पूजा के बाद ब्राह्मणों को दान देना चाहिए। यदि आप के पास वट का पेड़ न हो तो दीवार पर वट वृक्ष की तस्वीर लगाकर भी सच्चे मन से पूजा की जा सकती है।

वट सावित्री व्रत का महत्व:

दरअसल इस दिन वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस वृक्ष को ब्रह्मा विष्णु और महेश की संज्ञा दी जाती है। पेड़ का तना ब्रह्मा, मध्य भाग विष्णु और उपरी भाग को शिव मानते हुए पूजा की जाती है। दरअसल कथा के अनुसार राजा अश्वपति की पुत्री सावित्री को सत्यवान से प्रेम हो गया जो कि एक लकड़हारा था। ऋषि नारद ने सावित्री को बता दिया था कि कथित एक वर्ष में ही सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। यह जानने के बाद भी सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह किया और उनके साथ जंगल में आकर रहने लगी।

नियति के अनुसार एक वर्ष के बाद सत्यवान एक दिन पेड़ से गिर गया और उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के देवता यमराज जब सत्यवान का शरीर लेने आए तो सावित्री ने उनसे कहा कि वे जहां भी सत्यवान के शरीर को ले जाएंगे, सावित्री पीछे-पीछे जाएगी। इस पर यमराज ने सावित्री को कई प्रकार से डराने का प्रयास किया लेकिन सावित्री डटी रही।

आखिर में, यमराज को सावित्री के आगे घुटने टेकते हुए सत्यवान का जीवन लौटाना पड़ा। इसीलिए औरतें इस दिन सावित्री की पूजा करते हुए अपने पति की लंबी उम्र की मंशा रखती हैं। यह माना जाता है कि सत्यवान ने अपने जीवन के वे आखिरी पल वट वृक्ष के नीचे बिताए और वे ज्येष्ठ का ही महीना था और अमावस्या का दिन। यहीं यमराज प्रकट हुए और सावित्री ने अपने पति के प्राण वापिस मांगे। यही याद करते हुए औरतें वट वृक्ष की १०८ बार धागा बांधते हुए परिक्रमा भी करती हैं। ऐसे व्रतों से न सिर्फ पति पत्नी का प्यार और संबंध बढ़ते हैं बल्कि इससे औरतों के अपने परिवार के प्रति प्रेम और समर्पण भी बढ़ता है।

सोनी राय
सोनी राय

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