अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड ने बाल साहित्य के फ़ेसबुक पेज “वर्ड ऑफ चिल्ड्रनस आर्ट एंड कल्चलर” के बाल साहित्य कार्यक्रम की मासिक श्रृंखला में 21 जून 2024 को “ बाल साहित्य के विविध आयाम “ विषय पर ऑनलाइन विचार-विमर्श के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारत के वरिष्ठ बाल साहित्यकार, समीक्षक,व दिल्ली में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत श्री नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’ ने वैश्विक स्तर पर उपस्थित दर्शकों व मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बाल साहित्य की अवधारणा को बड़ी कुशलता से अभिव्यक्त करते हुए कहा कि “ बच्चों कोमल मन को ध्यान में रख देश -साहित्य और संस्कृति को माध्यम बना कर बच्चों के लिए हम जो साहित्य लिखते है ,उसी को बाल साहित्य माना जाता है।
नीदरलैंड से इस कार्यक्रम की समन्वय व प्रस्तुतकर्ता डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बाल साहित्य की भूमिका बताते हुए इस कार्यक्रम का संचालन संभाला।
विषय प्रवर्तन के रूप में विराजमान वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक,व आलोचक श्री सूर्यकान्त शर्मा जी ने बाल साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हम लोकल से ग्लोबल हो गए हैं, टेलीविजन पर बहुत अधिक बच्चों के चैनल आ गये है। इसलिए हमें बाल साहित्य पर और अधिक ध्यान देना होगा। सरकार को इसके लिए पुस्तक नीति बनानी चाहिए। प्रकाशकों को लेखकों के प्रति इमानदार रहना होगा।पुस्तक मेले में बाल साहित्य को बढ़ावा मिलना चाहिए ।बाल साहित्य और साहित्यकारों को एक ऐसा मंच मिलना चाहिए जहाँ वह अपनी बात कह सकें। बाल साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विमर्श से जोड़ना आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तराखंड के वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री मोहन जोशी गरूड़ जी जो बाल पत्रिका ज्ञानार्जन पत्रिका के संपादक भी हैं उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा की बाल साहित्य एक महत्वपूर्ण विषय है जो जाने अनजाने में कहीं छिप जाता है। देश विदेश में बाल साहित्य के लोक कथाओं, कहानियों,लेख निबंध, मानवीय मूल्यों पर आधारित साहित्य गीतों,लोरियाँ, कविताओं का ख़ज़ाना बिखरा पड़ा हैं। यदि हम भारत में इस ख़ज़ाने को पुस्तकों के रूप में समाहित कर सकें या किसी वेबसाइट के द्वारा समाहित कर सके तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों, का आदान-प्रदान का बहुत सफल प्रयोग होगा। ई पत्रिकाकों का प्रकाशन होना चाहिए। बाल पत्रिकाओं के पंजीकरण में आने वाली कठिनाइयों को सरल किया चाहिए। लेखन व प्रकाशन दोनों के लिए पुरस्कार होने चाहिए। लेखकों को बाल लेखन में नवीनता लानी होगी तभी हम बच्चों को वर्तमान युग से सही पहचान कराने में सफल हो सकेंगे।उन्होंने अपने बाल साहित्य के ऑनलाइन कार्यक्रम मोहन कृति के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया की इस कार्यक्रम का संचालन भी बचते करते है, समीक्षक भी वही होते हैं और अध्यक्षता भी उन्हीं की रहती है । उत्तराखंड में ख़राब मौसम के कारण श्री मोहन जोशी गरूड़ जी के वक्तव्य में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण दर्शक उनका वक्तव्य पूरा नहीं सुन सकें ।
कार्यक्रम को आगे गति देते हुए डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्री मति मीना अरोड़ा जी को मंच पर आमंत्रित करते हुए उनसे प्रश्न किया -क्या अनुदित बाल साहित्य को मौलिक बाल साहित्य से कमतर आकां जाना चाहिए? मुख्य अतिथि श्रीमती मीना अरोड़ा जी ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा-
साहित्य की अन्य धाराओं की तरह बाल साहित्य भी एक महत्वपूर्ण धारा है। यह आज के दौर की अनिवार्य आवश्यकता है। बाल साहित्य की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है। हमारे लिए यह दुख का विषय है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चों को पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रखा जाता है। माता-पिता बच्चों को खिलौने, वीडियो गेम इत्यादि तो उपलब्ध करवाते हैं लेकिन बाल पत्रिकाओं की ओर उनका ध्यान कम ही जाता है।
वैसे तो हिन्दी बाल साहित्य बहुत समृद्ध है। इनमें अनूदित बाल साहित्य का योगदान बहुत अधिक है। बहुत से प्रकाशन गृह और संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं। हिन्दी में अनूदित बाल साहित्य में सबसे अधिक अनुवाद अंग्रेजी से हिन्दी में हुए हैं। इनमें सबसे अधिक अनुवाद कहानियों का हुआ है। इक्कीसवीं सदी में इस दिशा में सबसे अधिक कार्य हुआ है। अंग्रेजी से हिन्दी में अनुदित बाल कहानियाँ विविधता की दृष्टि से भी बहुत समृद्ध हैं।
इनमें आम जीवन की कहानियाँ, पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियाँ, पर्यावरण संबंधी कहानियाँ, जीवनी संबंधी कहानियाँ आदि प्रमुख अभी हाल ही में डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे जी ने नीदरलैंड्स की बाल कहानियों का अनुवाद हिन्दी भाषा में कर उन्हें प्रकाशित करवाया है जिससे बाल साहित्य बहुत ही लाभान्वित हुआ है।
इस कार्यक्रम की समन्वय व संचालिका डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे जी द्वारा अनुवादित नीदरलैंड्स की लोक कथाएं बहुत ही लुभावनी तथा रोचक बाल कहानियां हैं।मेरी दृष्टि में बच्चों को कहानियों के साथ बाल कविताओं के माध्यम से बहुत सा ऐसा ज्ञान देना चाहिए जिससे उनको खाने पीने,पढ़ने जीवन जीने के सही तौर तरीकों का बचपन से ही अभ्यास हो जाए। बाल कविताओं तथा कहानियों के माध्यम से बच्चों को प्रकृति के प्रति प्रेम,देश प्रेम, बड़ों का आदर जैसी नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया जा सकता है।