राष्ट्रीय सादगी दिवस, 12 जुलाई 2024 पर विशेषः
– ललित गर्ग:-
कहते हैं ना लाइफ जितनी सिंपल होगी उतनी ही अच्छी एवं आनन्दमय होगी। हर इंसान सुन्दर एवं आकर्षक दिखना चाहता है, दीखने में बनावटीपन है, प्रदर्शन है, अनुकरण है, जबकि वास्तविक सौन्दर्य सादगी में है। सबसे सुन्दर दिखने की चाह में एक इंसान दूसरे इंसान तक को नहीं छोड़ता। संतुलित, शांत, आनन्दयम एवं सार्थक जिन्दगी के लिये सादगी का बहुत महत्व है, इसलिये 12 जुलाई को राष्ट्रीय सादगी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस लेखक और दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो के सम्मान में मनाया जाता है। इसी दिन इनका जन्म हुआ था। थोरो को उनकी पुस्तक ‘वाल्डेन’ के लिए जाना जाता था, जो कॉनकॉर्ड, मैसाचुसेट्स में वाल्डेन तालाब के पास एक छोटे से केबिन में एक साधारण जीवन जीने के उनके अनुभवों का वर्णन करती है। उनका मानना था कि लाइफ को केवल पैसे और अनावश्यक चीजों को हासिल करने के लिए ही बस खत्म ना करें। बल्कि हमारा ध्यान नेचर, ज्ञान, सेल्फ डिपेंडेंट और खुद का रास्ता बनाने पर होना चाहिए, जिसके लिए सादगीपूर्ण जीवन जीना बहुत जरूरी है। जैसा कि थोरो ने खुद कहा था- ‘‘जैसे-जैसे आप अपने जीवन को सरल बनाते जाएँगे, ब्रह्मांड के नियम सरल होते जाएँगे।’’ हेनरी डेविड थोरो एक ऐसे व्यक्ति थे जो हर काम में माहिर थे, एक लेखक, एक पर्यावरणविद, एक उन्मूलनवादी, एक कवि, लेकिन आप शायद उन्हें अपने हाई स्कूल की अंग्रेजी कक्षा से एक पारलौकिकवादी के रूप में याद करते हों। वह और उनके समकालीन पारलौकिकवादी, सरल शब्दों में मानते थे कि लोगों के पास अपने बारे में ऐसा ज्ञान होता है जो उनके जीवन में सभी बाहरी ताकतों से परे होता है। वे उन भावनाओं से बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए एक सरल जीवन जीने की वकालत करते थे।
महान् लोगों का मानना है कि प्रतिभा भगवान ने दी है, विनम्र रहें। प्रसिद्धि इंसान ने दी है, कृतज्ञ रहें। अहंकार खुद की देन है, इसलिए सजग रहें। जीवन में सरलता और सादगी बहुत जरूरी है। हमारे सपनों और खुशियों की हर राह शरीर से होकर ही गुजरती है, पर हम इसकी अनदेखी करते रहते हैं। नतीजा, मन के साथ शरीर से भी अस्वस्थ्य बन जाते हैं। बुद्ध कहते हैं, ‘‘शरीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है। तभी मन मजबूत होगा और विचारों में स्पष्टता भी आएगी।’’ बढ़ते कचरे को देखते हुए पश्चिमी देशों में ‘मिनिमलिज्म’ की बातें हो रही हैं। कम के साथ रहने की इस मिनिमलिस्टिक जीवनशैली का असर कपड़े, पैसे, कला, संगीत, सोच से लेकर इंटीरियर और मेकअप हर जगह अपनाने की कोशिशें बढ़ी हैं। हालांकि भारतीय दर्शन बहुत पहले से ही सादगी से जीने की तरफदारी करता रहा है। जैन दर्शन में बाकायदा इसके लिए ‘अपरिग्रह’ शब्द दिया गया है। यानी जरूरत भर की चीजों के साथ रहना। कम में गुजारा करना। कुल मिलाकर, थोड़े में जीना यानी प्यार, सादगी और सुकून से जीना। जिंदगी भी तो यही है।
सफल एवं सार्थक जीवन के सादगी का दर्शन एवं जीवनशैली बहुत जरूरी है। राष्ट्रीय सादगी दिवस हमारी जटिल दैनिक दिनचर्या की भागदौड़ से दूर रहने और जीवन में सरल चीजों की सराहना करने के लिए समर्पित है। हमारा जीवन तेज़ी से आगे बढ़ रहा है और व्यस्त होता जा रहा है। यह दिवस हमें बाहरी दुनिया से भीतर की ओर ले जाता है, जब हम एक कदम पीछे हटकर यह मूल्यांकन करते हैं कि हम कैसे जीवन को अधिक संतुलन बना सकते हैं, अव्यवस्था को दूर कर सकते हैं और खुद को अलग रख सकते हैं। आज तकनीक ने जितना हमारे जीवन को आसान बनाया है, उतना ही इसने हमें भटकाया भी है और जीवन के सभी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा पैदा की है। एक साधारण जीवन को सोशल मीडिया पर शायद ही कभी सुर्खियों में लाया जाता है। जापान जैसे कुछ देशों में, लोगों ने यह समझना शुरू कर दिया है कि अगर वे उन वस्तुओं से छुटकारा पा लें जो उनके किसी भी उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती हैं, तो उनका जीवन अधिक खुशहाल और कम तनावपूर्ण हो सकता है।
आप सुबह समय पर उठने की आदत डालें और व्यायाम, भ्रमण या योगा करने की आदत डालें। इसके लिए आप 10 मिनट से इसे करने की आदत डालें फिर धीरे धीरे इसे बढ़ाएं। पढ़ना आपके तनाव को कम कर सकता है। साथ ही यह आपकी शब्दावली का विस्तार भी करता है। मानसिक तनाव को दूर कर आपको सकारात्मक बनाता है। जब भी आप खाना लेकर बैठें तो टीवी ना देखें। पूरी तरह से खाने पर ध्यान लगाएं। फोन की आदत को धीरे धीरे कम करें। आज की तेज-रफ्तार दुनिया में, हम अक्सर खुद को ज्यादा की जरूरत में फंसा हुआ पाते हैं। अब समय आ गया है कि हम बुनियादी बातों पर वापस लौटें। जीवन को सरल बनाने का मतलब सिर्फ कम चीजें रखना नहीं है, यह उन चीजों के लिए जगह खोलता है जो हमें वास्तव में हमें खुशी देती हैं। यह धुंध को दूर करता है, दैनिक अव्यवस्था यानी अस्त-व्यस्तता को कम करता है, तनाव को कम करता है और खुशी को बढ़ाता है। थोरो का जन्मदिन हमें सादगी में आनंद खोजने और अपनी जरूरतों और इच्छाओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह जीवन के सरल सुखों का आनंद लेने के लिए एक कदम पीछे हटने के बारे में भी है। लोग तकनीक से दूर रहकर, प्रकृति का आनंद लेते हुए और अपने घरों को साफ करके जश्न मनाते हैं। इसका लक्ष्य उस चीज पर ध्यान केंद्रित करना है जो वास्तव में मायने रखती है, शांति और संतुष्टि को बढ़ावा देना।