-ः ललित गर्ग:-
संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा भारत सहित पूरे विश्व में भूख, कुपोषण एवं बाल स्वास्थ्य पर समय-समय पर चिंता व्यक्त की गई है। यह चिन्ताजनक स्थिति विश्व का कड़वा सच है लेकिन एक शर्मनाक सच भी है और इस शर्म से उबरना जरूरी है। कुपोषण और भुखमरी से जुड़ी वैश्विक रिपोर्टें न केवल चौंकाने बल्कि सरकारों की नाकामी को उजागर करने वाली ही होती हैं। इस विवशता को कब तक ढोते रहेंगे और कब तक दुनिया भर में कुपोषितों का आंकड़ा बढ़ता रहेगा, यह गंभीर एवं चिन्ताजनक स्थिति है। लेकिन ज्यादा चिंताजनक यह है कि तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद कुपोषितों और भुखमरी का सामना करने वालों का आंकड़ा पिछली बार के मुकाबले हर बार बढ़ा हुआ ही निकलता है। इन स्थितियों के बीच भारत में इस गंभीर स्थिति पर नियंत्रण पाने की दिशा में सरकार ने उल्लेखनीय कदम उठाये हैं। भारत सरकार पोषणयुक्त आहार एवं कुपोषणमुक्त भारत के संकल्प को आकार देने में जुटी है, आजादी के बाद मोदी सरकार ने इस दिशा में उल्लेखनीय सफलता पाई है, जो समस्या से मुक्ति की दिशा में सरकार के संकल्प का उजाला है।
कुपोषण की समस्या को दूर करने के लिये सरकार विभिन्न योजनाओं का कार्यान्वयन कर रही है। हालाँकि उनके वित्तपोषण और कार्यान्वयन में अभी भी अंतराल मौजूद हैं। इस मुद्दे को समग्र रूप से संबोधित करने के लिये एक व्यापक दृष्टिकोण आवश्यक है। कुपोषण की स्थिति तब विकसित होती है जब शरीर विटामिन, खनिज और अन्य पोषक तत्त्वों से वंचित हो जाता है, भारत सरकार ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण मुक्त भारत’ सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पोषण मिशन अभियान शुरू किया था, जिसमें बड़ी सफलता मिली है। एनीमिया मुक्त भारत अभियान वर्ष 2018 में शुरू किया गया, मिशन का उद्देश्य एनीमिया की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक कम करना है। मध्याह्न भोजन योजना का उद्देश्य स्कूली बच्चों के बीच पोषण स्तर में सुधार करना है, जिसका स्कूलों में नामांकन, प्रतिधारण और उपस्थिति पर प्रत्यक्ष एवं सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 का उद्देश्य अपनी संबद्ध योजनाओं और कार्यक्रमों के माध्यम से सबसे कमजोर लोगों के लिये खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना है, जिससे भोजन तक पहुँच कानूनी अधिकार बन जाए। प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के अन्तर्गत गर्भवती महिलाओं को डिलीवरी के लिये बेहतर सुविधाएँ प्राप्त करने हेतु 6,000 रुपए सीधे उनके बैंक खातों में स्थानांतरित किये जाते हैं। समेकित बाल विकास सेवा वर्ष 1975 में शुरू किया गया था और इस योजना का उद्देश्य 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा उनकी माताओं को भोजन, पूर्व स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच और अन्य सेवाएँ प्रदान करना है। इन सब योजनाओं का असर कुपोषण को नियंत्रित करने पर पड़ रहा है।