समस्यात्मक व्यवहार से पीड़ित बच्चों को अक्सर उनके अनापेक्षित व्यवहारों और नियमों को न मानने के कारण ‘बुरे बच्चे’ के रूप में पहचाना जाता है। 10 साल के लगभग 5-10% बच्चों मे समस्यात्मक व्यवहार पाया जाता है, जिसमें लड़कों की संख्या लड़कियों से 4 गुना अधिक होती है। बेंगलुरु में किए गये एक अध्ययन से पता चला कि 16 वर्ष तक के बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं की व्यापकता दर लगभग 12.5% है। चंडीगढ़ में स्कूली बच्चों पर किए गए एक अध्ययन में 4 -11 वर्ष के बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं की दर 6.3% पाई गई।
बच्चों के समस्यात्मक व्यवहार
- माता-पिता या अन्य वरिष्ठजनों के उचित आज्ञा को मानने से बार-बार इनकार करना
- स्कूल में अनुपस्थित रहना
- बच्चों का सिगरेट, गुटका, खैनी, शराब या अन्य नशीली दवाओं का उपयोग करना
- जानवरों के प्रति आक्रामक व्यवहार,
- धमकी देना
- शारीरिक हिंसा
- यौन दुर्व्यवहार
- बिना कारण लड़ाई झगड़ा करना
- हथियारों का प्रदर्शन/प्रयोग करना
- बिना कारण झूठ बोलना
- आपराधिक व्यवहार करना: चोरी करना, जानबूझकर आगजनी करना, दूसरे के घर में घुसना
- तोड़फोड़ करना
- घर से भागने की प्रवृत्ति
- आत्मघाती व्यवहार
- सांस रोकना
- लयबद्ध रॉकिंग
- खाने की समस्याएं
- बिस्तर गीला करना
- अंगूठा चूसना
- नाखून काटना
- सिर पीटना
समस्यात्मक व्यवहार के जोखिम कारक
-गर्भावस्था के कारण: कठिन गर्भधारण, समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम वजन, गर्भावस्था में अत्यधिक तनाव जोखिम कारक माना जाता है।
-स्वभाव: बच्चे जो कम उम्र से ही चिड़चिड़े व आक्रामक होते हैं, उनमें आगे चलकर समस्यात्मक व्यवहार विकसित होने की संभावना अधिक होती है।
-पारिवारिक स्थिति: अव्यवस्थित परिवारों के बच्चों में समस्यात्मक व्यवहार होने का जोखिम अधिक होता है। ऐसे परिवारों में बच्चे के लिए जोखिम अधिक होता है जहाँ घरेलू हिंसा, गरीबी या मादक द्रव्यों का सेवन होता है। पालन पोषण की अनुचित तरीकों का उपयोग किया जाना भी जोखिम को बढा़ देता है।
-सीखने संबंधी कठिनाइयाँ: जिन बच्चों में पढ़ने व लिखने की अक्षमता होती है उनमें समस्यात्मक व्यवहार का जोखिम अधिक होता है।
-बौद्धिक दिव्यांगता: बौद्धिक दिव्यांगता वाले बच्चों में व्यवहार संबंधी विकार होने की संभावना अधिक होती है।
मस्तिष्कीय विकार: अध्ययनों से पता चला है कि मस्तिष्कीय विकार के कारण भी बच्चों में अनेक व्यावहारिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
-लिंग: लड़कियों की तुलना में लड़कों में समस्यात्मक व्यवहार होने का जोखिम अधिक होता है।
-माता-पिता का बच्चों के प्रति उदासीन व्यवहार तथा बच्चों से अवास्तविक उम्मीदें
समस्यात्मक व्यवहार का निवारण एवं प्रबंधन
व्यवहारिक समस्याओं का निराकरण एवं प्रबंधन बहुआयामी प्रक्रिया है और यह समस्यात्मक व्यवहार के बारम्बारता, तीव्रता और उसमें योगदान देने वाले कारकों पर निर्भर करता है। व्यवहार संबंधी समस्याओं पर जल्दी ध्यान देने की जरूरत होती है क्योंकि लंबे समय तक बने रहने वाले समस्यात्मक व्यवहारों को बदलना अधिक कठिन होता है। प्रमुख उपाय निम्नलिखित है:
-माता-पिता का प्रशिक्षण: हर माता-पिता को समस्यात्मक व्यवहारों के सुधार की तकनीक का प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए ताकि वे समय रहते अपने बच्चों के समस्यात्मक व्यवहारों की पहचान करके प्रभावशाली ढंग से निवारण व प्रबंध कर सके क्योंकि अधिकांश अभिभावक समस्यात्मक व्यवहार के सुधार के लिए पुनर्बलन व दंड के उपयोग करने की तकनीकी से अवगत न होने के कारण इनका प्रभावी उपयोग नहीं कर पाते हैं। अभिभावकों को बच्चों की पालन पोषण के उचित तरीकों का भी प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि समस्यात्मक व्यवहार उत्पन्न न हो।
-पारिवार की जागरूकता: परिवार को संवाद व समस्या-समाधान कौशल हेतु जागरूक करना आवश्यक है क्योंकि अनेक बार संवाद का उचित तरीका न होने के कारण या अभिभावकों को समस्या समाधान का उचित तरीका न मालूम होने के कारण भी बच्चों में समस्यात्मक व्यवहार उत्पन्न होते हैं।
-सामाजिक कौशलों का प्रशिक्षण: बच्चे को महत्वपूर्ण सामाजिक कौशल सिखाए जाने चाहिए क्योंकि अनेक बार बच्चों को सामाजिक व्यवहार मानकों का पता न होने के कारण भी वे समस्या व्यवहार का प्रदर्शन करते हैं इसलिए उन्हें सामाजिक कौशलों का उचित ज्ञान प्रदान कर समस्यात्मक व्यवहार को कम किया जा सकता है।
-क्रोध प्रबंधन: बच्चे को सिखाया जाना चाहिए कि वे अपनी बढ़ती हताशा को कैसे कम कर सकते हैं। विश्राम तकनीक और तनाव प्रबंधन कौशल भी सिखाए जाना लाभकारी होता है। क्रोध के कारण बच्चे समस्यात्मक व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।
-समस्या व्यवहार के लिए सहायता: समस्या व्यवहार प्रदर्शित करने वाले बच्चों को उचित सहयोग प्रदान किया जाना चाहिए ताकि वे समझ सके कि उनका व्यवहार उचित नहीं है तथा वे किस तरह से समस्यात्मक व्यवहार से छुटकारा पा सकते हैं बच्चे के समस्यात्मक व्यवहार के लिए कारणों की पहचान करना उन्हें दूर करने में सहायता देनी चाहिए।
-प्रोत्साहन: समस्या व्यवहार करने वाले बच्चे जब अपेक्षित व्यवहार प्रदर्शित करें तो उनका हौसला अफजाई किया जाना चाहिए तथा उनके आत्मविश्वास में वृद्धि के लिए उनके प्रतिभा की प्रशंसा करनी चाहिए। बच्चों को उसकी प्रतिभा में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करने से आत्म-सम्मान बढ़ाने में मदद मिलती है।