-राकेश सूद की पुस्तक “हसरतें” एक मौलिक, अनूठा प्रयास-
उमेश कुमार सिंह
एक इंसान जब दुनिया को ख़ूबसूरत बनाने के ख़्वाब देखता है तो उसके अंदर कई ज़िंदगियाँ और दुनियाएँ जमा हो जाती हैं। इंसान बनने के इस सफ़र में शायरी और दर्दमंदी बहुत काम आती है। अपने आस-पास की छोटी-छोटी चीज़ों से मुतअस्सिर होना, फूलों, पौधों और बच्चों की खिलखिलाहट देख कर ख़ुश होना, किसी को उदास देख कर दु:खी होना, ये सब सिफ़ात अगर किसी इंसान में आ जाती हैं तो वो इंसानियत के आला-तरीन मक़ाम पर फ़ाएज़ होता है।
राकेश सूद ने क्या ख़ूब कहा है:
बिलकुल ये आम बात है कि किसी इंसान की नज़र कमज़ोर हो जाए तो ये कोई बहुत बड़ा दुःख नहीं होगा बल्कि एक छोटा नुक़सान समझा जा सकता है, लेकिन अगर किसी का नज़रिया जो इंसानियत की आधारभूत संरचना से जुड़ा हो तो ये एक बड़ा ख़सारा समझा जाएगा और इस शेर में बड़ी उम्दगी और सच्चाई से सादा अल्फ़ाज़ में वो अपना मुद्दआ बयान कर जाते हैं जो उनकी शेर की समझ की बहुत ख़ूबसूरत नज़ीर है।
जब आदमी किसी मैदान में नया होता है और पहली बार किसी महफ़िल में शामिल होता है और बिल-ख़ुसूस जब वो महफ़िल हुस्न वालों यानी अहल-ए-नज़र की हो तो कितनी शर्म आती है अपनी कम-इल्मी पर कि मैं कुछ भी नहीं जानता और यहाँ तो सब नज़र रखते हैं, तब वो आहिस्ता-आहिस्ता, ज़ीना दर ज़ीना, अल्फ़ाज़ को तोल-तोल कर, झिझकते हुए कलाम करता है लेकिन आख़िरकार उस कैफ़-ओ-सुरूर का लुत्फ़ उठा ही लेता है जिसे हुस्न वालों ने आगही की मय से ताबीर किया है। क्या अंदाज़ है, क्या तर्ज़-ए-बयान है साहब!
आपका शेर:
और आप फरमाते हैं:
ये भी उसी क़बील का शेर है जो हिंदुस्तानी कल्चर की मिसाल अपने आप में है। यानी हम उन तमाम क़दरों को निभाएँगे जिन्हें हमारे बड़ों ने हम तक मुंतक़िल किया था, कि अपने अगर आपके साथ अच्छा सुलूक न भी करें, मुसलसल आपके जी को चोट पहुँचाएँ, चूंकि वो अपने हैं तो उनसे बेज़ार होने का तो कोई सवाल ही नहीं पैदा होता बल्कि मैं साथ ही रहूँगा और वो भी इस तौर कि उनके दुःखी करने पर यक्साँ बर्ताव भी नहीं करूँगा। उनकी पहली किताब ‘हिदायतें’ के नाम से शाए हुई थी। इस नाम से ही ज़ाहिर होता है कि राकेश सूद आने वाली नस्लों और भारतवासियों के लिए कोई पैग़ाम दे रहे हैं। उनकी इस दूसरी किताब डायमण्ड बुक्स द्वारा प्रकाशित बुक “हसरतें” है।
मैं जब दुनिया और उसके भेदों पर ग़ौर करता हूँ तो समझ में आता है कि जब तक शायरी मौजूद है, नेक-दिल लोग आते रहेंगे, और जब तक नेक-दिल लोग आते रहेंगे तब तक दुनिया की सुंदरता बरक़रार रहेगी। राकेश सूद भी इसी सूची में आते हैं। उनकी शायरी पढ़ जाइये, मोहब्बत और हमदर्दी के अलावा दूसरा कोई संकेत नहीं मिलता। इस मोहब्बत के अनेक रंग उनकी शायरी में फूटते हैं, कहीं देश प्रेम, कहीं सारी दुनिया के इंसान, कहीं महबूब से वस्ल की शदीद इच्छा। ये सारे जज़्बात राकेश सूद को अंदर से बहुत मासूम बनाते हैं और यही उनकी शायरी की ताक़त है।