बच्चों को संस्कारित करती बाल पत्रिका ‘बच्चों का देश’

        • प्रमोद दीक्षित मलय

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)

किसी भी समाज और देश का आधार बच्चे होते हैं क्योंकि बच्चे ही भविष्य हैं इसलिए वर्तमान पीढ़ी का यह परम कर्तव्य होता है कि वह भविष्य की पीढ़ी को न केवल शारीरिक रूप से दृढ़ एवं बल संपन्न बनाए बल्कि चारित्रिक दृष्टि से भी उत्तम गुणों का विकास करने में सहायक सिद्ध हो। यह कार्य परिवार, समाज एवं विद्यालय द्वारा ही किया जाता है किंतु इस कड़ी में बाल पत्रिकाओं का भी नाम लिया जा सकता है‌ और ‘बच्चों का देश’ नामक मासिक राष्ट्रीय बाल पत्रिका इस दिशा अग्रसर है। बाल पत्रिकाएं बच्चों को न केवल मेधावी, दूरदर्शी, कल्पना शक्ति  संपन्न, अभिव्यक्ति में मुखर बनाने में मददगार होती हैं बल्कि देश के सांस्कृतिक गौरव, इतिहास बोध, भौगोलिक एवं पर्यावरणीय चेतना से लैस करती हैं। जीवन में लोकतांत्रिकता, सामूहिकता, परस्पर न्याय एवं विश्वास, प्रेम, मधुरता, शांति एवं अहिंसा के साथ मानवीय मूल्यों से भी परिचित कराती हैं। बाल पत्रिकाओं में यदि ‘बच्चों का देश’ जैसी पत्रिका हो तो यह गर्व करने की बात है जो बच्चों को संस्कारित करने का कार्य विगत चौथाई सदी से कर रही है। अणुव्रत विश्व भारती सोसायटी द्वारा राजसमंद, राजस्थान से प्रकाशित ‘बच्चों का देश’ बाल पत्रिका इस अगस्त में अपनी रजत जयंती मना रही है। कारगिल युद्ध के बाद 15 अगस्त, 1999 में जयपुर से प्रकाशित ‘बच्चों का देश’ के प्रवेशांक संपादकीय ‘आओ विचारें’ में संपादक कल्पना कहती हैं, “विजय मिली है सीमा पर, वीरों के बलिदान से। कर्तव्य निभाना है हमको अब देशभक्ति के नाम से। आगे वह लिखती हैं,  “बच्चो! आपके अंदर साहस का खजाना भरा है। आपको अपनी शक्तियों को पहचानना होगा। उनको अच्छे कार्यों में लगाना होगा। आप अवश्य अभी छोटे हो पर यह मत भूलो कि आने वाले समय में आप ही इस देश को संभालने वाले हो।”  पत्रिका का प्रथम अंक  बहुरंगी है। न केवल आवरण बल्कि अंदर के पृष्ठों की साज-सज्जा भी विषय वस्तु के अनुरूप चित्रांकन के साथ की गई है जो न केवल बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती है बल्कि उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित भी करती है। ‘बच्चों का देश’ के संस्थापक संरक्षक बालसेवी श्री मोहनलाल जैन प्रवेशांक में बच्चों को प्रेरक संदेश देते हुए ‘दादा का पत्र’ अंतर्गत ‘सफलता की कुंजी’ शीर्षक आलेख में विचार व्यक्त करते हैं, “आप बालक हैं। आपका बालकपन महान् है। सफलताओं की मूल भूमिका बालकपन में ही बनती है। महानता की पगडंडियां बनाने का समय बालकपन ही है। दृढ संकल्प संजोते रहो। आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ते जाओ। आपकी आज की पगडंडी एक दिन राजपथ बन जाएगी। आत्मबली के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता। कर्मवीर ही तो असंभव को संभव बनाता है।” यह पंक्तियां बच्चों में नव ऊर्जा, उत्साह एवं उल्लास का संचार करती हैं। उन्हें जीवन में हमेशा कुछ नया रचने-गुनने को प्रेरित करती हैं। ये पंक्तियां पढ़ते हुए मेरे स्मृति पटल पर गिजुभाई बधेका की स्मृति सहज ही उभर आती है जो बच्चों के लिए तमाम पारिवारिक एवं विद्यालयीय बंधनों से आजादी की पैरवी करते हैं। उनके लिए विद्यालयों में निर्भय एवं स्वतंत्र रचनात्मक वातावरण बनाने की पुरजोर कोशिश करते हुए ऐसा सकारात्मक परिवेश उपलब्ध कराने की बात करते हैं जहां बच्चे अपनी कल्पना को आकार दे सकें, जहां वे एक-दूसरे से सीखते हुए बेहतर इंसान बन सकें। यह कहना सर्वथा उचित होगा कि मोहन भाई अपने युग के गिजुभाई ही तो थे जो बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए न केवल उनके लिए उपयुक्त समुचित वातावरण तैयार करने का विचार प्रस्तुत करते हैं बल्कि विभिन्न प्रकल्पों के माध्यम से सहज रूप में वह स्थान उपलब्ध भी कराते हैं। बालोदय की कल्पना और क्रियान्वयन एक उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है, जहां न केवल स्थानीय विद्यालयों से बल्कि देश के विभिन्न स्थानों से बच्चे और शिक्षक बाल मनोविज्ञान आधारित तीन दिवसीय संवाद कार्यक्रम को सीखने समझने-आते हैं। यह बालोदय संवाद उनमें बेहतर दुनिया के भविष्य के बीज रोपता है जहां शांति और अहिंसा की छांव में मानवता की सुमन सुवास लोक को सुरभित करेगी।

‘बच्चों का देश’ की इस रजत यात्रा का पथ निष्कंटक एवं उजाला भरा नहीं रहा है। पग-पग पर चुनौतियों के झंझावात मिले तो बाधाओं के हठीले पठार भी।  अंधकार के बादल मंडराये और नुकीले कंकड़-कंटक भी। पर वह ‘बच्चों का देश’ की बाल साहित्य साधना को विचलित न कर सके।अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किए अविचल रहते हुए तमाम चुनौतियों से जूझते अपने सर्जना पथ पर बढती रही है यह पत्रिका। किंतु प्रकृति के नियम से कौन परे है।  24 अप्रैल, 2014 को पत्रिका के संरक्षक मार्गदर्शक पितृपुरुष भाई मोहनलाल जैन के निधन से बच्चों का देश ने अपनी स्नेहिल छांव खोई तो पांच दिन बाद ही 29 अप्रैल, 2014 को संपादक दीदी कल्पना जैन पत्रिका परिवार को रोता-बिलखता छोड़ गयीं। यह ‘बच्चों का देश’ के लिए किसी वज्रपात से कम न था। दो विभूतियों के सान्निध्य से वंचित ‘बच्चों का देश’ का प्रकाशन तब डेढ़ वर्ष तक बाधित रहा। पर मोहनभाई की वैचारिक पूंजी के सम्बल ने पांव डिगने न दिए। नये रास्ते खुले और जनवरी 2018 से अणुविभा की समृद्ध स्नेह छांव पा  ‘बच्चों का देश’ फिर मुस्कुराने लगा और हजारों बाल पाठकों के चेहरों पर खुशियों के नन्हे सूरज उग आये।‌ जुलाई 2024 अंक को सामने रखकर बात करूं तो इसमें  7 कहानियां, 6 आलेख, 9 गीत एवं कविताएं, 13 नियमित स्तम्भ एवं विविधा अंतर्गत 9 विषयों पर सामग्री संग्रहीत की गई है। दस सवाल-दस जवाब, अंतर ढूंढिए, नन्हा अखबार, वर्ग पहेली, दिमागी कसरत, चित्रकथा आदि  बच्चों को हमेशा पसंद आने वाली गतिविधियां हैं। जब बाल पत्रिकाएं असमय काल कवलित हो रही हों तब ऐसे कठिन समय में बाल हितैषी पत्रिका ‘बच्चों का देश’ का पच्चीस वर्ष पूर्ण करना स्वाभाविक रूप से खुशी का पल है। ‘बच्चों का देश’ सफलता के नवल आयाम स्पर्श कर कीर्तिमान रचे, सतत गतिमान रहे, यही मंगल कामना है।

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