हम वर्ष भर अंग्रेजी के गुण गाते हैं। अंग्रेजी में अभिवादन कर अपने को श्रेष्ठ और पढ़ा-लिखा महसूस करते हैं। घरों में बच्चे सुबह-शाम नमस्कार अंग्रेजी में ही करते हैं, जिस पर परिजन फूले नहीं समाते और सितंबर माह आते ही हम सब हिंदी के राष्ट्रभाषा न बन पाने का रोना रोते हैं। 14 सितंबर को खूब धूमधाम से हिंदी दिवस मनाते हैं। सप्ताह भर तक हिंदी के गीत गाए जाते हैं। सितंबर बीतने के बाद फिर फिर उसी ढर्रे पर उतर आते हैं और अंग्रेजी के गुलाम बन जाते हैं। यह हमारी दिनचर्या बन गई है, क्योंकि हमारी करनी और कथनी में अंतर हो गया है। ऐसे कैसे होगा हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का सपना पूरा? केवल हिंदी दिवस के अवसर पर हिंदी को याद कर लेना और हिंदी दिवस मना लेने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए हमें जमीनी स्तर पर काम करना होगा, ताकि भारत के सभी हिस्सों में हिंदी के लिए स्वीकार्यता हो।
हिंदी दिवस के अवसर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाएं। अपने दैनिक जीवन में हिंदी का अधिकाधिक उपयोग करे, विशेष रूप से डिजिटल और तकनीकी क्षेत्रों में। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हिंदी केवल भाषा न होकर, ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख जरिया है। इसके साथ ही, हमें नई पीढ़ी को हिंदी के महत्व से अवगत कराते हुए, उन्हें इस भाषा में सृजनात्मकता के लिए प्रेरित करना होगा। यही सब विचार करते हुए हमने “हिंदी दिवस और हमारी जिम्मेदारी” विषय को लेकर अपने विद्यार्थियों से बात की। उक्त विषय पर हमारे विदेशी और भारतीय विद्यार्थियों ने अपने विचार साझा किए। आइए, जानते हैं, उनके विचार, उनकी कलम से..
डॉ. उमेशचन्द्र सिरसवारी
चंदौसी, सम्भल (उ.प्र.)
वैश्विक धरातल पर पहचान बना रही है हिंदी
भारत में हिंदी निश्चित रूप से जानी-मानी भाषा है। इसे हिंद या हिंदुस्तान से आई भाषा माना जाता है। लेकिन यह निश्चित रूप से थोड़ा चिंताजनक है कि हिंदी को अभी भी राष्ट्रभाषा नहीं माना जाता है, जबकि यह पूरे भारत में बोली जाती है और वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ चुकी है। जिन देशों में भारतीय प्रवासी हैं, जैसे कि फीजी, मॉरीशस, जमैका, गुयाना, सूरीनाम, साथ ही त्रिनिदाद और टोबैगो, उन्होंने स्वीकार किया है कि हिंदी निश्चित रूप से एक ऐसी भाषा है, जिसे हमारे पूर्वज हमारे पास लेकर आए हैं। इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी है कि हिंदी को बचाने के लिए जो भी आवश्यक हो, हम करें। भारत में भी, हमें हिंदी के प्रति एक निश्चित मात्रा में जिम्मेदारी रखने की आवश्यकता है, क्योंकि यह एक ऐसी भाषा है, जिसका विकास यहाँ हुआ है। इस प्रकार यह हम सबकी भाषा है।
अविनाश वेदान्त किसून
त्रिनिदाद एवं टोबैगो
सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी
भारत ही नहीं, विश्व भर में हिंदी भाषा का महत्व बढ़ता जा रहा है। वैश्विक धरातल पर आज हिंदी भाषा ने अपनी पहचान बनाई है, अपनी छाप छोड़ी है। वहीं हम अन्य भाषाओं की बात करें, तो मंदारिन, स्पेनिश और अंग्रेज़ी भाषा के बाद हिंदी दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन यह आंकड़े कुछ भी कहते हों, हिंदी विश्व भर में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को देश की आधिकारिक भाषा का दर्जा दिया। इसी आधार पर देश और विदेशों में भी 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है।
हिंदी भाषा ने वैश्विक धरातल पर अपनी धमक जमाई है। विश्व भर में हिंदी में खूब साहित्य लिखा जा रहा है। विश्व हिंदी भाषा को अपना रहा है लेकिन यह दुखद है कि हिंदी अब तक भारत की राष्ट्रभाषा का दर्जा प्राप्त नहीं कर पाई है। भारत विविधताओं से भरा देश है, जहाँ अलग-अलग भाषाएँ, बोलियाँ एवं उप भाषाएँ बोली जाती हैं, लेकिन हिंदी को बोलने वाले लोगों की संख्या सबसे अधिक है। इस आधार पर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाया जाना चाहिए।
साथ ही हम सब हिंदी भाषियों की ज़िम्मेदारी है हिंदी अपनाएं, हिंदी बोलें, अपने दैनिक प्रयोग में हिंदी लाएं। आने वाले समय में निश्चित ही हिंदी भारत की ही नहीं, विश्व की भाषा बनेगी।
सकुन्तला गुणतिलक
श्रीलंका ,भारत से..
हमारी सांस्कृतिक पहचान है हिंदी
14 सितंबर को मनाया जाने वाला हिंदी दिवस हिंदी भाषा के महत्व और उसकी स्थिति पर ध्यान देने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। हिंदी, जो भारत की राजभाषा है, इसके बावजूद कई राज्यों में इसे विरोध और उपेक्षा का सामना करना पड़ता है। यह स्थिति दर्शाती है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा तो नहीं मिला, लेकिन इसकी स्वीकृति और उपयोगिता सुनिश्चित करना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।
भारत में 22 अनुसूचित भाषाएँ हैं और हर राज्य की अपनी भाषा और सांस्कृतिक विशेषताएँ हैं। हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न मिलने के बावजूद, यह व्यापक रूप से बोली जाती है और देश के विभिन्न हिस्सों में इसे समझा जाता है। इसके बावजूद, हिंदी का विरोध कहीं न कहीं भाषाई असमानता, सांस्कृतिक पहचान और क्षेत्रीय स्वायत्तता की वजह से होता है।
हिंदी दिवस हमें यह अवसर देता है कि हम हिंदी की भूमिका और महत्व को समझें और इसे बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाएँ। शिक्षा प्रणाली में हिंदी की प्रमुखता बढ़ाने, साहित्य और मीडिया में हिंदी की सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करने और हिंदी के उपयोग को आम जीवन में सहज बनाने की आवश्यकता है।
हमें यह समझना होगा कि भाषा केवल संचार का साधन नहीं है, बल्कि यह सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। हिंदी का सम्मान और उपयोग बढ़ाने से हम न केवल अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सुरक्षित रख सकते हैं, बल्कि एकता और समरसता को भी बढ़ावा दे सकते हैं।
इस प्रकार हिंदी दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम हिंदी को उसके उचित स्थान पर लाने के लिए पूरी जिम्मेदारी निभाएँ। इससे न केवल हिंदी की समृद्धि सुनिश्चित होगी, बल्कि भारतीय समाज की विविधता और एकता को भी बल मिलेगा।
श्रुति पाण्डेय
आवासीय परिसर, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर (राज.)
हिंदी दिवस: राष्ट्रीय शिक्षा नीति और हमारी जिम्मेदारियाँ
हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। इस दिन 1949 में हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया गया था। यह दिन हमें हिंदी भाषा के सांस्कृतिक महत्व और इसके प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है। हिंदी केवल एक भाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, एकता और पहचान की अभिव्यक्ति है। इसे सशक्त बनाने के लिए शिक्षा प्रणाली का योगदान महत्वपूर्ण है और इस संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) एक बड़ी भूमिका निभाती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उद्देश्य शिक्षा को अधिक समावेशी और बहुभाषी बनाना है। इस नीति के तहत प्राथमिक शिक्षा को मातृभाषा में देने पर जोर दिया गया है, जिससे हिंदी समेत अन्य भारतीय भाषाओं को प्रोत्साहन मिलेगा। यह हिंदी को न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर भी प्रासंगिक बनाएगा। इस नीति के माध्यम से हिंदी भाषी छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा में बेहतर ढंग से जोड़ा जा सकेगा, जिससे उनकी बौद्धिक और सांस्कृतिक पहचान मजबूत होगी।
हिंदी दिवस के अवसर पर हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम हिंदी के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभाएं। हमें दैनिक जीवन में हिंदी का अधिकाधिक उपयोग करना चाहिए, विशेष रूप से डिजिटल और तकनीकी क्षेत्रों में। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हिंदी केवल भाषा न रहकर ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख माध्यम बने। इसके साथ ही, हमें नई पीढ़ी को हिंदी के महत्व से अवगत कराते हुए, उन्हें इस भाषा में सृजनात्मकता के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस प्रकार हिंदी दिवस और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 हमें यह अवसर और जिम्मेदारी देती है कि हम हिंदी को शिक्षा, तकनीक और वैश्विक संवाद का सशक्त माध्यम बनाएं।
सलोनी
एन.सी.आर.टी. अध्येता, (शोधकत्री) इंस्टीट्यूट, दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (डीम्ड यूनिवर्सिटी) दयालबाग, आगरा
हिंदी सबको जोड़ने वाली भाषा है
14 सितंबर को भारतवर्ष को जोड़ने वाली कड़ी हिंदी भाषा के लिए समर्पित यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, सरकारी कार्यालय आदि में हिंदी पखवाड़े का आयोजन कर इस भाषा के गौरव में विभिन्न कार्यक्रम किए जाते हैं। हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करने और उसके प्रति लोगों में जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से आयोजित यह दिन हमें हिंदी के महत्व और इसके प्रति हमारी ज़िम्मेदारी की याद दिलाता है। इस दिन दिए गए हर एक भाषण हमारी राजभाषा हिंदी को सम्मान व बढ़ावा देने, इसे विश्व दरबार में उपस्थापित करने तथा आधिकारिक तौर पर इसे और मर्यादा प्रदान करने के लिए हम वचनबद्ध होते हैं। लेकिन हमारी ज़िम्मेदारी केवल 14 सितंबर या सितंबर के प्रथम पखवाड़े तक ही सीमित नहीं है। जब तक हम इस भाषा की अहमियत को नहीं समझेंगे, अपने वचनों को काम में प्रतिफलित नहीं करेंगे, तब तक चाहे कितने भी धूमधाम से इस दिन को क्यों न माना लें, सब व्यर्थ है। विविधता में एकता वाले हमारे देश भारत में अलग-अलग भाषा-संस्कृति, बोली, अलग वेश-भूषा, रहन-सहन के लोग रहते हैं। हिंदी ही वह माध्यम है, जो इस विभिन्नता को एकता के सूत्र में पिरोती है। लेकिन आज के इस दौर में ख़ासकर नई पीढ़ी के लोग अंग्रेज़ी भाषा को अपने जीवन के हर हिस्से में उतारकर हिंदी तथा अपनी मातृभाषा को भूलने लगे हैं। जिस भाषा ने हमें दुनियाभर में पहचान दिलायी, जो केवल एक भाषा नहीं बल्कि हिंदुस्तानियों के भावों की अभिव्यक्ति है, आज उसी का भविष्य संकटपूर्ण एवं चुनौतियों से भरा जान पड़ता है।
व्यावहारिक तौर पर सर्वव्यापी इस भाषा के संरक्षण का दायित्व देश के प्रत्येक नागरिकों को वहन करना होगा। संपर्क भाषा के रूप में इसका प्रयोग अधिक से अधिक करते हुए, कार्यालय आदि में भी इसकी प्राथमिकता को सर्वोपरि रखते हुए हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि इसके प्रचार-प्रसार में हम सहभागी बनें। भाषा की समृद्धि तभी संभव है, जब सम्मान और गौरव के साथ यह आगामी पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहे। अतः सांस्कृतिक ज़िम्मेदारी के रूप में अपने फ़र्ज़ को निभाते हुए हमें हिंदी को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बनाकर ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग में लाने की ज़रूरत है।
कीर्ति उपाध्याय
शोधार्थी, हिंदी विभाग, त्रिपुरा विश्वविद्यालय, त्रिपुरा
हिंदी बोलने में हो गर्व का अनुभव
क्या हिंदी कभी हमारी राष्ट्र भाषा बन पाएगी ? हिंदी जो कि हमारी मातृभाषा है, जिसे भारत में राजभाषा की मान्यता प्राप्त है। विश्व के कई देशों में हिंदी अत्यधिक मान-सम्मान के साथ अपना प्रभुत्व बना रही है, परंतु यह अत्यंत दुःख की बात है कि अपने ही देश भारत में लोग हिंदी को अपनाने में झिझकते हैं। लोग अपने बच्चों को हिंदी की जगह अंग्रेजी माध्यम में पढ़ा रहे हैं। हिंदी माध्यम से पढ़ने वाले बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं, क्योंकि भारत में डॉक्टर, इंजीनियरिंग आदि की पढ़ाई अधिकतर अंग्रेजी में ही होती है।
अपने ही देश में हिंदी द्वितीय स्थान पर आ गई है। भारतीय समाज हिंदी के प्रति कुंठित हो गया है। जहाँ लोग हिंदी बोलने में शर्म का अनुभव करते हैं, वहीं अंग्रेजी के चंद शब्द बोलकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। बड़े-बड़े कार्यालयों, कंपनियों तथा विश्वविद्यालयों में हिंदी बोलने वाले को तुच्छ समझा जाता है। रोजगार में भी उन्हें ही प्रथमिकता दी जाती है, जो अंग्रेजी पढ़े-लिखे हों। विश्व के सभी देश अपनी मातृभाषा को अपनाकर अपना विकास कर रहे हैं, पर भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां मातृभाषा इतनी क्षीण अवस्था में है। भारत तो अंग्रेजों से आजाद हो गया पर भारतीयों का मस्तिष्क अभी भी अंग्रेजी का गुलाम है, जो कि हमारे बच्चों के मस्तिष्क को क्षीण कर रही है़।
इस कारण उनका संपूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है। वह हमारी संस्कृति गीता, वेद, वेदांत जैसे महान ज्ञानमयी जीवन की सच्ची शिक्षा से वंचित होते जा रहे हैं। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हमें अपने बच्चों को हिंदी पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करना चाहिए, ताकि उनका उचित विकास हो सके। उच्च शिक्षा (डॉक्टर, इंजीनियरिंग आदि) का माध्यम हिंदी हो, इस पर कार्य करना चाहिए। सरकारी कार्यालयों तथा बड़ी-बड़ी कंपनियों में हिंदी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हम भूल गए हैं कि हिंदी का इतिहास कितना विशाल और समृद्ध है। तुलसी, कबीर, सूर, विवेकानन्द जैसे महापुरुषों ने हिंदी को अपनाया था। हमें भी हिंदी को सम्मान देना चाहिए, जिसकी वह हकदार है, तभी हम हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की सपने को साकार कर पाएंगे।
मंजु कुमारी मिश्रा
होजाई, असम