भारत जल सप्ताह 2024 के अवसर पर ग्रामीण पेयजल तक सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने पर पैनल चर्चा का आयोजन किया गया

भारत जल सप्ताह 2024 के भाग के रूप में आज ‘ग्रामीण क्षेत्रों में पीने के पानी की सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करना’ विषय पर एक महत्वपूर्ण पैनल चर्चा आयोजित की गई। इस सत्र में जल क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों और विशेषज्ञों को एक मंच पर साथ लाया गया। इसकी अध्यक्षता अतिरिक्त सचिव (आवास और शहरी कार्य मंत्रालय), श्रीमती डी. थारा, ने की और सह-अध्यक्षता राष्ट्रीय जल जीवन मिशन (जेजेएम) के अतिरिक्त सचिव और मिशन निदेशक, डॉ. चंद्र भूषण कुमार ने की।

श्रीमती डी. थारा ने अपनी प्रारंभिक टिप्पणी में ग्रामीण और शहरी जल प्रशासन में एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सीमा के अंदर काम करने से दीर्घकालिक परिणाम प्राप्त करने में बाधा आ सकती है। उन्होंने ग्रामीण जल प्रबंधन में नागरिक सक्रियता के महत्व पर भी बल दिया और ग्रामीण समुदायों को उनकी पानी की आवश्यकताओं को पूरा करने और स्थानीय समाधान चलाने में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया।

डॉ. चंद्र भूषण कुमार ने एक विस्तृत प्रस्तुति दी, जिसकी शुरुआत 1972 की फिल्म, दो बूंद पानी की एक विचारों से ओत प्रोत क्लिप से हुई, जिसमें उन ग्रामीण महिलाओं के संघर्षों का मार्मिक चित्रण किया गया था, जिन्हें पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी। इसके बाद उन्होंने वैश्विक और राष्ट्रीय जल प्रबंधन की एक व्यावहारिक ऐतिहासिक यात्रा की पेशकश की, जिससे जल जीवन मिशन (जेजेएम) का शुभारंभ हुआ। उनकी प्रस्तुति ने जल जीवन मिशन (जेजेएम) के प्रभाव के अभूतपूर्व पैमाने को प्रदर्शित किया, विशेष रूप से ग्रामीण आबादी के जीवन की गुणवत्ता, स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार लाना शामिल है। 

डॉ. कुमार ने मिशन की उपलब्धियों, जैसे कवरेज विस्तार, समय की बचत और स्वास्थ्य लाभ पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने विशेष रूप से, भूजल और सतही जल पर निर्भरता को संतुलित करने में हुई प्रगति पर प्रकाश डाला। इसके अलावा उन्होंने पिछले 85 प्रतिशत भूजल और 15 प्रतिशत सतही जल निर्भरता से आज अधिक टिकाऊ 52 प्रतिशत:48 प्रतिशत अनुपात में बदलाव पर ध्यान दिया। डॉ. कुमार ने जल स्रोत स्थिरता, संस्थागत और वित्तीय स्थिरता और योजनाओं की दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिए चल रहे संचालन और रखरखाव (ओ एंड एम) उपायों के महत्व पर बल दिया।

सचिव (उत्तर प्रदेश सरकार) डॉ. राज शेखर ने जल जीवन मिशन के अंतर्गत 85 प्रतिशत कवरेज की राज्य की उल्लेखनीय उपलब्धि पर विचार साझा किए। उन्होंने शिकायत निवारण प्रणाली, पर्यवेक्षी नियंत्रण और डाटा अधिग्रहण (एससीएडीए) और निगरानी के लिए स्वचालन प्रणाली के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में कार्यान्वित की जा रही सौर ऊर्जा संचालित पेयजल योजनाओं पर चर्चा की। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में निर्बाध जल आपूर्ति सुनिश्चित करने में राज्य की सर्वोत्तम प्रथाओं के बारे में भी बात की। 

कर्नाटक के ग्रामीण जल आपूर्ति और स्वच्छता विभाग के निदेशक, श्री नागेंद्र प्रसाद के. ने भूजल पर निर्भरता, पानी की उपलब्धता और गुणवत्ता में मौसमी बदलाव और बहु-ग्राम योजनाओं (एमवीएस) के संचालन की लागत को कम करने के लिए राज्य द्वारा अपनाई जा रही स्थिरता रणनीतियों पर ध्यान दिलाया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने चर्चा की कि जल आपूर्ति योजनाओं की वित्तीय स्थिरता प्राप्त करने के लिए उपयोगकर्ता शुल्क, धन के अभिसरण पर ध्यान दिया जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि कर्नाटक ने समुदाय-आधारित दृष्टिकोण अपनाया है, प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया है और जल संसाधनों की वित्तीय और परिचालन स्थिरता पर ध्यान केंद्रित किया है।

पैनलचर्चाकेमुख्यनिष्कर्ष:

  • ग्रामीण पेयजल तक सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने के लिए ग्रामीण और शहरी ढांचे के बीच सहयोगात्मक शासन की आवश्यकता है।
  • सतत जल संसाधन प्रबंधन के लिए सक्रिय सामुदायिक भागीदारी और स्थानीय स्वामित्व आवश्यक है।
  • भूजल से सतही जल स्रोतों की ओर बदलाव टिकाऊ जल प्रथाओं में एक महत्वपूर्ण सुधार का प्रतीक है।
  • उत्तर प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्य जल जीवन मिशन (जेजेएम) योजनाओं की दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिए नवाचार और सामुदायिक भागीदारी का लाभ उठा रहे हैं।

सत्र का समापन जल प्रबंधन प्रणालियों को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयासों के महत्व पर ध्यान केंद्रित करते हुए किया गया, साथ ही ग्रामीण समुदायों को भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल संरक्षक बनने के लिए सशक्त बनाया गया।

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