नदियां हैं तो जल है..जल है तो कल है

-22 सितम्बर विश्व नदी दिवस पर विशेष-

बढ़ते हुए प्रदूषण की वजह से नदियों का जल दुषित प्रदूषित होता जा रहा है

एक पुरानी कहावत है की “नदियां सब कुछ बदल सकती हैं”! गत वर्ष के नदी दिवस का थीम इसी वाक्य को लेकर रखा गया था। भारत नदियों की धरती है। भारत और बांग्लादेश की नदियों को अगर मिलाकर आंकड़े देखें  तो विश्व की सबसे अधिक नदियां यहीं बहती हैं। मान्यता है कि हिमालय की पहाड़ियों से बहने वाली सिंधु नदी से हमारी सभ्यता की शुरुआत हुई है। यह वर्तमान की भयावह और कटु सत्य है कि बढ़ते हुए प्रदूषण की वजह से नदियों का जल दुषित प्रदूषित होता जा रहा है। प्रदूषण की वजह से जलवायु में भी परिवर्तन हुआ है। जलवायु चक्र भी गड़बड़ा गया है, जिसके कारण कई नदियां उथली होती जा रही हैं, सिकुड़ती जा रही हैं। विश्व नदी दिवस पर कई देश सहित लाखों लोग और कई अंतरराष्ट्रीय संगठन, नदियों के बचाव हेतु निरंतर अपना योगदान कर रहे हैं। बचाव के नए-नए साधन विकसित कर रहे हैं।

इस दिन लोग संकल्प लेते हैं कि वे नदियों को  प्रदूषित नहीं करेंगे और उन्हें प्रदूषित होने से हर संभव बचाएंगे। इसी कड़ी में गंगा को प्रदूषण से मुक्त कराने का हमारे केंद्र सरकार ने बीड़ा उठाया है। अब तो गंगा, नर्मदा, यमुना, गोदावरी सहित कई नदियों को प्रदूषण से बचाए जाने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएं बन रही है। और सुचारू रूप से कार्य भी आरंभ हो चुका है। यह  मानव सभ्यता के लिए शुभ संकेत है।

पुराणों में उल्लेख है कि विश्व की प्राचीन सभ्यतायें नदियों के किनारे ही विकसित हुई हैं। नदियां स्वच्छ जल का संवाहक होती हैं। एशिया महाद्वीप का हिमालय पर्वत पुरातन समय से नदियों का उद्गम स्रोत रहा है। गंगा, यमुना, सिंधु, झेलम, चिनाव, रावी, सतलज, गोमती, घाघरा, राप्ती, कोसी, हुबली तथा ब्रहमपुत्र आदि सभी नदियों का उद्गम हिमालय से शुरू होकर हिन्द महासागर में जाकर अपनी गिरती है।    पुराने लोगों द्वारा कहा जाता है, कि सालों पहले भारत की नदियां बारह मासी यानी बारहों माह बहने वाली होती थी, लेकिन अंधाधुंध पेड़ों की कटाई के कारण नदियों ने अपना अस्तिव खो दिया। वर्तमान में हालात यह है कि ग्रीष ऋतु में भारत की सभी नदियों का जल सूख जाता है।

इन नदियों का महत्व हमारे जीवन के लिए कहीं से भी कम नहीं है, क्योंकि यह नदियां बारहमासी रहती हैं। और मानव व जीव जंतुओं को पेयजल व सिंचाई व अन्य आवश्यकताओं के लिए उपलब्ध कराती हैं। इन नदियों के कारण जल भराव व बाढ़ की समस्याओं का भी एक तरह से निदान हो जाता है। नदियां अपने साथ पानी बहा कर सागर की ओर ले जाती हैं। बाढ़ की घटनाएं कम होती हैं। तो वही यह नदियां अन्य मौसम में जल से भरी रहने के कारण सूखे से लड़ने में मदद करती हैं। नदियों के ही वजह से तो भूजल का स्रोत कभी कम नहीं होता और भूजल फिर से भरने लगता है। यही नदियां ही है तो है जिनके वजह से वर्षा भी नियंत्रित रहती है, और सामान्य वर्षा का होना नदियों के वजह से ही नियंत्रित रहता है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव कम होते हैं। मिट्टी का कटाव रुकता है।

जल की गुणवत्ता में सुधार होता है। मिट्टी की गुणवत्ता बेहतर होती है। यह नदियां अपने निर्मल धवल अमृतुल्य जल के साथ जैव विविधता का भी सुरक्षा करती हैं। भारत के कई शहरों में उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थ को नदियों में ही छोड़ दिया जाता है। मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में मौजूद चंबल नदी को ग्रेसिम उद्योग नागदा द्वारा प्रदूषित किया जा रहा है। नदी इस कदर प्रदूषण हो चुकी है कि नदी का पानी पीने योग्य नहीं बचा है। सीपीसीबी की साल 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की जीनदायिनी कही जाने वाली ये नदियां खुद खतरे में हैं। 521 नदियों के पानी की मॉनिटरिंग करने वाले प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश की 198 नदियां ही स्वच्छ हैं। जो छोटी नदियां हैं। जबकि, बड़ी नदियों का पानी भीषण प्रदूषण की चपेट में है। 198 नदियां स्वच्छ पाई गईं हैं। इनमें ज्यादातर दक्षिण-पूर्व भारत की हैं।

महाराष्ट्र में सिर्फ 7 नदियां ही स्वच्छ हैं, जबकि 45 नदियों का पानी प्रदूषित है। नदियों का जीवन अगर बचाना है तो उसका जल निर्बाध बहता रहे, जीवन उसका सुरक्षित रहे तो नदियों को छिछली (उथली) होने से बचाया जाना अति आवश्यक है। वहीं नदियों के किनारों पर सघन वृक्षारोपण किया जाये जिससे किनारों पर कटाव ना हो। नदियों का पानी गन्दा होने से बचायें, मसलन पशुओं को नदी के पानी मे जाने से रोकें। गांव व शहरों का घरेलू अनुपचारित पानी नदी में नही मिलने दे। पानी को यह सोच कर साफ रखने का प्रयास करें कि आगे जो भी गांव या शहर वाले इस पानी को उपयोग में लाने वाले हैं, वो आपके ही भाई बहन या परिवार के लोग हैं। नगरपालिका और ग्राम पंचायत अपने स्तर पर घरेलू पानी (दूषित) को साफ करने वाला सयंत्र लगाने के लिए प्रोत्साहित करें। उद्योगों का अनुपचारित पानी नदी के पानी मे नही मिलने दे। हो सके तो समय समय पर पानी की गुणवत्ता की जांच करवाते रहे। जलकुम्भी की सफाई समय समय पर करवाने का प्रयत्न करते रहें। अंततः हम सभी को यह स्मरण रखना अत्यंत आवश्यक हो गया कि “जल है तो कल है और कल है तभी तो हम, हमारी सभ्यता क़ायम रहेगी।

सुरेश सिंह बैस "शाश्वत"
सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”

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