अब रिश्तों की बागडोर औरतों के हाथ में

गया वह जमाना जब पुरूष नारियों को अपने पैर की धूल समझा करते थ,े क्योंकि अब तो स्थिति ही विपरीत है। जमाने में बदलाव के साथ ही अब औरतों ने धीरे-धीरे सब कुछ नियंत्रित करना सीख लिया है। सरकार ने कुछ ऐसे कानून बनाए हैं जिससे कि आदमियों को औरतों से कुछ भी कहने से पहले कम से कम दस बार सोचना पड़ेगा। जिससे अब नारी और पुरूष के रिश्ते पर भी गहरा प्रभाव पड़ रहा है। अब नारियों ने पुरूषों को अपनी ताकत दिखाना शुरू कर दिया है जिसके आगे बेचारे पुरूष बेबस व लाचार हो चुके हैं। अब किसी भी रिश्ते में उसकी डोर नारी पर ही केंद्रित होती दिख रही है। वैसे भी यही सही समय है जब औरतों को अपना पुराना चोला हटाकर इस बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। विशेषज्ञों का मानना है कि ये कानून अन्यायी नहीं हैं। औरतों के लिए इसकी बेहद आवश्यकता थी, क्योंकि हमारे देश में औरतों के खिलाफ प्रताडनाएं एक ऐसी जटिल समस्या है, जो सदियों से चली आ रही है। विशेषज्ञों का कहना हैं कि आज ये कानून औरतों के पक्ष में बनें हैं जबकि सदियों से औरतें न जाने कौन-कौन से जुल्म सह रही हैं। पिंकी बदला हुआ नाम जो कि एक वकील हैं कहती हैं कि आदमियों के लिए इस तरह के कानून बनाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि अन्याय तो सदा से औरतों के खिलाफ ही होता रहा है।
परंतु इन कानूनों से पुरूषों के लिए खतरे की घंटी बज गई है। पुरूषों के लिए डरने का समय आ गया है। वर्तमान स्थिति में या तो पतियों को एक तरफ कर दिया जाता है या फिर अपनी पत्नी द्वारा या गर्लफ्रैंड द्वारा अपराधी करार दे दिया जाता है। हमारे संविधान में डिग्रिटी ऑफ वूमैन तो उल्लेखित है मगर डिग्रिटी ऑफ मैन का कहीं नामो निशान तक नहीं है। कहां जाएगा एक पुरूष अपनी क्षतिपूर्ति के लिए?पुरूषों के लिए एक बड़ी चिंता की बात यह भी है कि अब ये कानून जानबूझकर भी उसके खिलाफ इस्तेमाल किए जा रहे हैं। नए नए शादी-शुदा समय दीपक के अनुसार, यदि आपने गुस्से में भी अपनी पत्नी को कुछ कह दिया तो आपको सीधा जेल की तरफ रूख करना पड़ सकता है। और वह शादी के दौरान लाए हुए सामान या दहेज से ज्यादा सामान का दावा कर सकती है। औरतें विवाह को मानसिक और शारीरिक प्रताडना का केस भी अब आसानी से बना सकती हैं।

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जबकि दूसरी ओर कई पुरूषों का यह मानना है कि औरतें इस कानून की हकदार हैं। वे बहुत लंबे समय तक यातनाएं झेल चुकी हैं। न जाने पुरूषों को ऐसा क्यों लग रहा है कि इस तरह के कानून से वे पिछड़ जाएंगे। यही उच्च समय है जब औरतों को भी आदमियों के बराबर का स्थान मिलना चाहिए। भारत में हमेशा पुरूषवर्गीय स्थान व समाज रहा है जहां पुरूष जो चाहे वो करके आसानी से बच जाता है। किंतु इन कानूनों से व औरत को मिल रही प्राथमिकताओं से नर व नारी के रिश्ते का संतुलन अवश्य ही बदल रहा है। इन कानूनों ने औरतों को अपने अधिकारों के लिए पहले से अधिक सजग बना दिया है। रिश्तों में बदलाव होना स्वाभाविक ही है। जहां पहले पुरूषों को ही परिवार की रीढ़ की हड्डी माना जाता था तथा औरतों को छोटा समझा जाता था वहीं आज औरतें पुरूषों से अधिक ताकतवर बन गई हैं। एक तलाकशुदा औरत यदि दुबारा विवाह करना चाहे तो भी वह अपने बच्चे की कस्टडी अपने अधिकार में ले सकती है। इस फैसले ने औरतों को और अधिक बलशाली बना दिया है। जहां पहले ममता में बहकर औरतें अपने फैसले लेने में कमजोर पड़ जाती थीं मगर अब उन्हें दुखी होने की या हताश होने की आवश्यकता नहीं है। अब वे आसानी से किसी भी रिश्ते से छुटकारा पा सकती हैं। आज औरतें यह जान चुकी हैं कि वे कहां खड़ी हैं या उन्हें कहां जाना है?क्या-क्या अधिकार हैं उसके?अब औरत को एक प्रेमरहित या किसी भी शोषण के आगे अपने घुटने टेकने की कोइ जरूरत नहीं है क्योंकि आज उसके आगे कई रास्ते खुल गए हैं जिनका चुनाव वह खुद कर सकती है। इन प्राथमिकताओं ने औरत के वजूद को और मजबूत कर दिया है। अब औरतें वह सब कुछ कर सकती हैं जिसके लिए वह पहले मजबूर हुआ करती थीं।

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