राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने आज तेलंगाना के हैदराबाद में लोकमंथन-2024 के उद्घाटन सत्र में भाग लिया।
इस अवसर पर अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने लोकमंथन के आयोजन के लिए सभी हितधारकों की सराहना की। उन्होंने कहा कि यह भारत की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और विरासत में एकता के सूत्र को मजबूत करने का एक सराहनीय प्रयास है। उन्होंने कहा कि सभी नागरिकों को भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को समझना चाहिए और हमारी अमूल्य परंपराओं को मजबूत बनाना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि विविधता हमारी मौलिक एकता को सुंदरता का इंद्रधनुष प्रदान करती है। चाहे हम वनवासी हों, ग्रामीण हों या नगरवासी, हम सभी भारतीय हैं। राष्ट्रीय एकता की इस भावना ने तमाम चुनौतियों के बावजूद हमें एकजुट रखा है। उन्होंने कहा कि सदियों से हमारे समाज को विभाजित और कमजोर करने के प्रयास किए गए हैं। हमारी स्वाभाविक एकता को तोड़ने के लिए कृत्रिम भेद पैदा किए गए हैं लेकिन, भारतीयता की भावना से ओत-प्रोत हमारे नागरिकों ने राष्ट्रीय एकता की मशाल जलाए रखी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारतीय विचारधारा का प्रभाव विश्वभर में दूर-दूर तक फैला हुआ है। भारत की धार्मिक मान्यताएं, कला, संगीत, तकनीक, चिकित्सा पद्धतियां, भाषा और साहित्य की सराहना पूरे विश्व में होती रही है। भारतीय दार्शनिक पद्धतियों ने ही प्राथमिक तौर पर विश्व समुदाय को आदर्श जीवन मूल्यों का उपहार दिया। अपने पूर्वजों की उस गौरवशाली परंपरा को मजबूत करना हमारा दायित्व है।
राष्ट्रपति ने कहा कि सदियों से साम्राज्यवाद और औपनिवेशिक शक्तियों ने न केवल भारत का आर्थिक शोषण किया, बल्कि हमारे सामाजिक ताने-बाने को भी नष्ट करने का प्रयास किया। हमारी समृद्ध बौद्धिक परंपरा को तुच्छ दृष्टि से देखने वाले शासकों ने नागरिकों में सांस्कृतिक हीनता की भावना पैदा की। ऐसी परंपराएं हम पर थोपी गईं, जो हमारी एकता के लिए हानिकारक थीं। सदियों की गुलामी के कारण हमारे नागरिक गुलामी की मानसिकता के शिकार हो गए। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए नागरिकों में ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना जगाना आवश्यक है। उन्हें यह जानकर प्रसन्नता हुई कि लोकमंथन इस भावना का प्रसार कर रहा है।