समाचार पत्र हमारे दैनंदिन जीवन के अभिन्न अहम हिस्सा बन चुके हैं। हममें से प्रत्येक व्यक्ति के दिन का आरंभ चाय और समाचार पत्र के साथ होता है। ये समाचार पत्र ही हैं जो हमें समाज, देश और दुनिया से जोड़ते हैं। ये न केवल पिछले दिन हुई घटनाओं-दुर्घटनाओं, शैक्षिक-साहित्यिक आयोजनों, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक समारोहों, सामाजिक गोष्ठियों के जीवंत दृश्य समाचार एवं रिपोर्ट के माध्यम से हम तक पहुंचाते हैं बल्कि समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्र से जुड़े विविध विषयों को सहेजे लेखों से मन-मस्तिष्क को तृप्त और संतुष्ट भी करते हैं। इतना ही नहीं ये हमें शब्द-संपदा और विचार से समृद्ध भी करते हैं। विविध संदर्भ समाहित किए हिंदी पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य उस सोच और स्वप्न पर मुहर लगाता है जिसकी कल्पना आज से लगभग 200 वर्ष पूर्व की गई थी।
हिंदी पत्रकारिता का विस्तार और विकास निरंतर फैल रहा है। देश में एक सर्वे के अनुसार हिंदी के समाचार पत्र सर्वाधिक पढ़े जाने वाले समाचार पत्रों की सूची में शीर्ष क्रम में गण्य हैं। समाचार पत्र और पत्रिकाओं ने हिंदी के विकास, संरक्षण और संवर्धन में भी महती भूमिका निभाई है। आज भारत में हिंदी पट्टी के अतिरिक्त अहिंदीभाषी राज्यों एवं विश्व के अनेक देशों से हिंदी के समाचार पत्र प्रमुखता से प्रकाशित हो रहे हैं, और पत्रिकाएं भी। केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों के विभागों, भारतीय राजदूतावास कार्यालयों द्वारा हिंदी पत्रिकाओं के मासिक से अर्धवार्षिक अवधि के अंक प्रकाशित किये जा रहे हैं, जो पाठक की मानसिक क्षुधा को शांत कर रहे हैं। वर्तमान में प्रकाशित हो रहे समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में समाचार के अलावा अन्य सामग्री में पर्याप्त विविधता है।
लेख, कार्टून, व्यंग्य, फीचर, आर्थिकी, वन एवं पर्यावरण, फोटो पत्रकारिता, खेल, विज्ञान, राजनीति, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं प्रौद्योगिकी-तकनीकी, धर्म-संस्कृति, लोक-भाषा बोली, साहित्य की विभिन्न विधागत रचनाएं, महिला एवं बाल साहित्य, कृषि एवं पशुपालन, कला, रंगकर्म एवं सिनेमा पर प्रचुर सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है। अगर समाचार संचार माध्यमों के विस्तार की बात करें तो मुद्रित पत्र-पत्रिकाओं के अलावा ई-पेपर एवं मैगजीन ने भी अपना स्थान सुरक्षित किया है। विभिन्न टीवी चैनलों, यू-ट्यूब चैनलों, वाट्सएप एवं इंस्टाग्राम के माध्यम से समाचार, चित्र एवं वीडियो त्वरित गति से पूरी दुनिया में प्रसारित हो जा रहे हैं। इंटरनेट की सुविधा से लगता है कि जैसे सम्पूर्ण विश्व व्यक्ति की हथेली में सिमट आया है और और एक स्पर्श पर सम्मुख प्रकट हुआ जा रहा है। हिन्दी पत्रकारिता की यह यात्रा सख्त चुनौतियों, बाधाओं से भरी हुई थी। मुझे लगता है कि पाठकों तक पत्रकारिता के विकास यात्रा की झांकी प्रस्तुत करना न केवल समीचीन एवं प्रासंगिक है बल्कि उसको सूचनात्मक दृष्टि से पुष्टि प्रदान करने वाला है।
मानव सभ्यता की विकास यात्रा में, जब वह गिरि-कानन में विचरण कर रहा था, तब भी परस्पर सूचनाओं के प्रसार एवं संप्रेषण हेतु भौगोलिक दृष्टि से कुछ चिह्नांकन किए हैं जो आज भी गुफाओं में चित्रों के रूप में उपलब्ध होते हैं। संवाद सम्प्रेषण का यह उनका अपना तरीका रहा होगा। आगे चलें तो पाते हैं कि 15वीं शताब्दी में छपाई की मशीन बनाई गई और धातुओं के अक्षरों का आविष्कार हुआ। भारत के संदर्भ में बात करें तो विभिन्न शिलालेखों, ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण राज्यादेश और अन्य संदेश प्रजा तक पहुंचाना अभीष्ट रहा, बाद में भोजपत्रों में संदेश और साहित्य अंकित किया जाने लगा। ये पत्रकारिता के अंतर्गत न आते हुए भी संदेश, साहित्य एवं समाचारों को दूसरों तक पहुंचाने के सहज संवाहक बने ही। भारत में पहली प्रिंटिंग मशीन सन् 1674 में आई। वर्ष 1780 में जेम्स ऑगस्ट्स हिकी द्वारा प्रकाशित दो पन्ने का अखबार ‘बंगाल गजट’ ऐसा पहला अखबार कहा जा सकता है जिसमें समाचारों में विविधता और स्वतंत्रता थी।
पर यह अखबार शासकों के विरुद्ध कतिपय समाचार छापने के कारण संपादक को जेल भेज और जुर्माना लगाकर बंद करवा दिया गया। पर समय कहां रुकता है, उसकी नियति सतत गतिशीलता ही है। 30 मई, 1826 ही वह दिन है जब भारत के समाचार प्रकाशन जगत् में भारत के पहले हिंदी समाचार पत्र ‘उदंत मार्तण्ड’ का जन्म हुआ। कानपुर निवासी पेशे से वकील पं. जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से दो रुपए वार्षिक शुल्क का साप्ताहिक पत्र निकाला। पर अर्थाभाव के कारण एक साल बाद ही बंद हो गया। उसके बाद से मंद गति से ही सही पर अखबार निकलते रहे, बंद होते रहे। राष्ट्रीयता-उन्मेष, सामाजिक दायित्व, युगीन प्रवृत्तियों तथा अंग्रेजी शासन के विरोध का स्वर सहेजे वे समाचार पत्र अंग्रेजी शासन की दमन नीति का शिकार भी हुए।
अंग्रेजी शासन द्वारा संपादकों को जेल भेजने, जुर्माना लगाने और प्रेस जब्त करने के अनेकानेक उदाहरण इतिहास के पृष्ठों में अंकित हैं। पर समाचार पत्र के माध्यम से समाज जागरण और राष्ट्रीय एकता-अखंडता का न भाव मरा और न ही लेखनी की स्याही सूखी। संघर्ष एवं बलिदान से देश को स्वतंत्रता मिली और अखबारों को विस्तार का व्यापक फलक। आज हिंदी के हजारों समाचार पत्र और पत्रिकाएं पाठकों तक पहुंच उन्हें सजग, सचेत और समृद्ध कर रहे हैं। समाचार पत्रों का यह परिदृश्य और व्यापकता के साथ लोक चेतना में अपनी सशक्त भूमिका का निर्वहन करें, यही कामना है।