सर्वोच्च बलिदान के पुण्य प्रतीक दशमेश गुरु गोबिंद सिंह

भारतवर्ष कर्म की भूमि है और धर्म की भी। इस पावन भूमि का कण-कण दैवीय ऊर्जा से अनुप्राणित है तो वहीं आत्मिक चेतना से उद्भाषित भी। यह पुण्य की तेजोमय अवनि है तो त्याग, बलिदान एवं पराक्रम की उदात्त संवाहक भी। त्यागमूर्ति दशमेश गुरु गोविंद सिंह के शौर्य एवं बलिदान की गाथा हर कंठ का अवलम्बन है। सिख गुरु परंपरा के प्रेरक संत योद्धा गुरु गोबिंद सिंह न केवल सिख पंथ के गुरु एवं उपदेशक हैं अपितु एक समर्थ सिपाही, कवि एवं कुशल सैन्य संगठक भी। उनका जीवन धर्म की रक्षा एवं आतताईयों के विरुद्ध सतत संघर्ष एवं विजय की प्रखर गाथा है।

सिख पंथ के नवम गुरु तेग बहादुर अपने परिवार एवं अनुयायियों के साथ समाज जागरण एवं सामाजिक समरसता के लिए प्रवास हेतु पटना पधारे थे। कुछ समय बाद परिवार को छोड़कर आपको बंगाल एवं असम की यात्रा पर जाना पड़ा। पटना में पौष शुक्ल सप्तमी सम्वत 1723 तदनुसार 22 दिसम्बर, 1666 को बालक गोबिंद राय का जन्म माता गूजरी की कोख से हुआ। कालान्तर में यहां राजा रणजीत सिंह ने एक भव्य गुरुद्वारा बनवाया जिसे आज तख्त श्री हरमंदिर साहिब कहते हैं। यहां पर आज भी बालक गोबिंदराय की खड़ाऊं, चार लोहे के तीर, एक कृपाण सुरक्षित रखे हैं। वह कुआं भी विद्यमान है जिससे माता गूजरी जल निकालती थीं तथा उस देहरी को भी बनाये रखा गया है जिसे लांघ कर गुरु तेग बहादुर पहली बार अंदर प्रवेश किये थे। प्रकाश पर्व में यहां भव्य आयोजन होता है।

असम से वापस आने पर बालक गोबिंद राय से पिता की भेंट हुई। वर्ष 1670 में परिवार पंजाब चला आया और 1672 में शिवालिक की पहाड़ियों के निकट चक्क नानकी स्थान पर रहने लगे, जिसे आजकल आनंदपुर साहिब कहा जाता है। यहीं पर बालक गोबिंद राय की पढ़ाई-लिखाई एवं सैन्य शिक्षा प्रारंभ हुई। आपने फारसी, ब्रज, हिंदी एवं संस्कृत भाषा की दक्षता अर्जित की एवं घुड़सवारी, तलवारबाजी एवं तीर चलाना भी सीखा, साथ ही करुणा, समता, ममता, न्याय का आदर्श भी।आनंदपुर साहिब निवास के दौरान ही औरंगजेब की दुष्टता, हिंसा एवं हिंदुओं के जबरिया धर्म परिवर्तन कराए जाने से पीड़ित कश्मीरी पंडितों का एक समूह गुरु तेग बहादुर से मिला और मुगल शासक औरंगजेब की यातना से बचाने एवं हिंदू धर्म की रक्षा हेतु गुहार लगाई। गुरु तेग बहादुर तत्पर हो अपने पांच साथियों के साथ औरंगजेब से मिलने दिल्ली पहुंचे। जहां एक षड्यंत्र के तहत चांदनी चैक में 11 नवम्बर, 1675 को सार्वजनिक रूप से गुरु तेग बहादुर का शीश धड़ से अलग कर दिया गया। उल्लेखनीय है, उसी स्थान पर स्थापित गुरुद्वारा शीशगंज श्रद्धालुओं में त्याग एवं बलिदान का भाव अनवरत भर रहा है। तब 29 मार्च, 1676 को बैसाखी के दिन नौ वर्ष की उम्र में गोबिन्द राय गुरु की गद्दी पर विराजमान हुए। इसी दौरान 21 जून, 1677 को आनंदपुर से दस किमी दूर बसंत गढ में आपका विवाह माता अजीत कौर (बीबी जीतो) के साथ सम्पन्न हुआ।

गुरु गोबिंद राय मुगल शासकों के साम्राज्य विस्तार के लिए एक बड़ा अवरोध थे। इस कारण नादौन और भंगाजी में मुगल सूबेदारों के साथ गुरु गोबिंद राय के साथ भयंकर युद्ध हुआ। मुगल पराजित हुए। गुरु सेना की विजय से सैन्य शक्ति का विस्तार और आत्मविश्वास बढ़ा। इसी दौरान बैसाखी के दिन 1699 में गुरु गोबिंद राय ने मुगलों से धर्म एवं राष्ट्र रक्षा के लिए अपने अनुयायियों से पांच बलिदानी शीश मांगे। इस पर पांच जातियों के व्यक्तियों ने एक-एक कर स्वयं को गुरु चरणों में समर्पित कर दिया। ये पांचों वीर पंज प्यारे नाम से जाने गये। गुरु गोबिंद राय ने अमृत छका पंज प्यारों को पहले खालसा बनाया। तब स्वयं छक छठे खालसा बने। खालसा पंथ की स्थापना कर गुरु गोविंद सिंह नाम धारण कर कहा कि जो व्यक्ति मन, विचार एवं कर्म से शुद्ध है वही खालसा है। खालसा पंथ समानता, आत्मसम्मान, निर्भयता, सहनशीलता और जातीय भेदभाव से मुक्त सामाजिक समरसता के दर्शन पर आधारित है। सभी के लिए पंच ककार यथा केश, कंघा, कच्छा, कड़ा और कृपाण रखना अनिवार्य किया गया।

सूबेदारों एवं नवाबों की संयुक्त शक्ति के साथ मुगल सेना ने वर्ष 1704 में आनंदपुर साहिब में घेरा डाला। पर खालसा सेना के शौर्य के आगे उसके मंसूबे धराशाई हो गए। तब मुगल सेनापति ने छल करते हुए 21 दिसम्बर, 1704 को कुरान की कसम खाकर एक चिट्ठी गुरु गोबिंद सिंह को भेजी कि किला खाली कर कहीं सुरक्षित जाने पर मुगल सेना आक्रमण नहीं करेगी। किंतु धोखे से आक्रमण कर दिया। इस अप्रत्याशित हमले में गुरु गोबिंद सिंह का परिवार बिछड़ कर सरहिंद की ओर पहुंच गया और गुरु गोविंद सिंह दो पुत्रों एवं 40 साथियों के साथ चमकौर की ओर निकल गये। सरहिंद के नवाब वाजित खान ने गुरु परिवार को पकड़ जोरावर सिंह 8 वर्ष एवं फतेह सिंह 6 वर्ष को इस्लाम स्वीकार करने का आदेश दिया।

पर वीर बालकों के मना कर देने पर क्रूर नवाब ने दोनों बालकों को 27 दिसम्बर, 1704 को दीवार में जिंदा चुनवा दिया। उधर गुरु गोबिंद सिंह को भी लाखों की मुगल सेना ने चमकौर की कच्ची गढ़ी में घेर लिया। दोनों पुत्र जुझार सिंह एवं अजीत सिंह बलिदान हो गए। पंज प्यारों के आज्ञा अनुसार गुरु गोविंद सिंह बचे साथियों के साथ जंगल की ओर निकल गए। पत्नी द्वारा पुत्रों के बारे में पूछने पर सिख सैनिकों की ओर संकेत कर कहा कि इन पुतरन के शीश पर, वार दिए सुत चार। चार मुए तो क्या हुआ, ये जीवित कई हजार। गुरु गोबिंद सिंह ने 14 युद्ध लड़े और विजय श्री का वरण किया।

गुरु गोबिंद सिंह महाराज नांदेड़, महाराष्ट्र में रहकर अनुयायियों का मार्गदर्शन एवं प्रवचन करते रहे। वेश बदलकर आये दो पठानों ने एक दिन मौका पाकर गुरु गोबिंद सिंह पर प्रहार कर घायल कर दिया। अंतिम समय निकट जानकर गुरु ने अनुयायियों को एकत्र कर कहा कि अब कोई देहधारी गुरु नहीं होगा। गुरु ग्रंथ साहिब ही गुरु के रूप में मार्गदर्शन करेंगे। यह कहकर नारियल एवं पांच पैसे गुरु ग्रंथ साहिब को अर्पित कर शीश नवाया। 7 अक्टूबर, 1708 को इस अप्रतिम संत योद्धा ने मां भारती के अंक में स्वयं को समर्पित कर दिया। गुरु गोबिंद सिंह के विचार जोत बन सदैव मार्गदर्शन करते रहेंगे।

प्रमोद दीक्षित मलय शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
प्रमोद दीक्षित मलय
शिक्षक, बाँदा (उ.प्र.)
आपका सहयोग ही हमारी शक्ति है! AVK News Services, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाचार प्लेटफॉर्म है, जो आपको सरकार, समाज, स्वास्थ्य, तकनीक और जनहित से जुड़ी अहम खबरें सही समय पर, सटीक और भरोसेमंद रूप में पहुँचाता है। हमारा लक्ष्य है – जनता तक सच्ची जानकारी पहुँचाना, बिना किसी दबाव या प्रभाव के। लेकिन इस मिशन को जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की आवश्यकता है। यदि आपको हमारे द्वारा दी जाने वाली खबरें उपयोगी और जनहितकारी लगती हैं, तो कृपया हमें आर्थिक सहयोग देकर हमारे कार्य को मजबूती दें। आपका छोटा सा योगदान भी बड़ी बदलाव की नींव बन सकता है।
Book Showcase

Best Selling Books

The Psychology of Money

By Morgan Housel

₹262

Book 2 Cover

Operation SINDOOR: The Untold Story of India's Deep Strikes Inside Pakistan

By Lt Gen KJS 'Tiny' Dhillon

₹389

Atomic Habits: The life-changing million copy bestseller

By James Clear

₹497

Never Logged Out: How the Internet Created India’s Gen Z

By Ria Chopra

₹418

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »