रामकृष्ण मिशन ने भारत के नव जागरण में बड़ा योग दिया है
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक और विश्व वंदनीय स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने भारतीय समाज के पुनरोद्वार के लिये अविस्मरणीय कार्य किये हैं। हालांकि परमहंस का कार्यक्षेत्र बंगाल तक ही सीमित रहा, चूंकि उनके शिष्य, भक्त और अनुयायियों ने प्रेरणा पाकर उनके आदेशानुसार पूरे भारत सहित विश्व के अन्य भागों में भी भ्रमण कर उनके समाज हित के विचारों का प्रसार किया। फलतः इसका प्रभाव चहुँ ओर बड़ा व्यापक रूप से सामने आया और तो और रामकृष्ण के प्रिय शिष्य विवेकानंद ने सुदूर सात समुंदर पार अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में जो ओजपूर्ण और मानव मन को झकझोर देने वाले विचारों का जो सिंहनाद किया। उसकी गूंज से सारा विश्व स्तब्ध रह गया। आज भी उसी गूंज से सारा विश्व मोहित है और इस गूँज से ही अपने को परिष्कृत करने का मार्ग भी ढूँढ रहा है।
रामकृष्ण मिशन उस संस्था का नाम है, जो रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं के प्रसाराव स्थापित की गई थी। रामकृष्ण परमहंस का जन्म 1834 ई. को हुआ था और उनका देहावसान सन् 1886 में हुआ। उन्होंने किसी नवे समाज वा संस्था की स्थापना नहीं की। उनके अध्यात्मवाद, सरल जीवन और उच्च आदर्श से तत्कालीन शिक्षित वर्ग पर्याप्त प्रभावित हुआ। उनके परम शिष्य विवेकानंद (नरेन्द्रनाथ दत्त) अत्यंत मेधावी थे और उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के अध्यात्मवाद को आत्मसात कर उसे देश और विदेशों में भी प्रसारित प्रवाहित किया। 1893 ई. में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में उन्होंने भारतीय अध्यात्मवाद पर अत्यंत मार्मिक भाषण दिया। अध्यात्मवाद का यह सुंदर और सूक्ष्म विवेचन सुनकर पाश्चात्य देशों की जनता उनसे बहुत प्रभावित हुई। शायद यह जानकर आपको आश्चर्य मिश्रित खुशी होगी की विश्व में सर्वप्रथम सार्वजनिक रूप से अपने संबोधन में आम जनता के बीच अपने संभाषण की शुरुआत मैं विशाल जनसमूह को “मेरे प्यारे भाइयों एवं बहनों” का संबोधन हमारे विवेकानंद ने ही दिया था! ऐसे संबोधन में इतना जादू था कि यह विश्व भर में सर्वप्रिय संबोधन बन गया! स्वामी विवेकानंद ने तीन वर्ष अमेरिका में रहकर रामकृष्ण की शिक्षा का प्रसार किया। इन शिक्षाओं के प्रसार के उद्देश्य से रामकृष्ण मिशन नामक संस्था की स्थापना रामकृष्ण परमहंस ने की थी।
रामकृष्ण विविध धर्मो की आधारभूत एकता पर विश्वास करते वे और उनका मत था कि मनुष्य को अध्यात्मवाद का पालन कर ब्रम्ह में विलीन हो जाना चाहिये, ईश्वर अगर और अजेय हैं, उसकी उपासना सगुण और निर्गुण दोनों प्रकार से की जा सकती हैं। तथा विश्व के सारे धर्म एक ही लक्ष्य को प्राप्त करने के भिन्न- भिन्न साधन हैं। रामकृष्ण की अध्या शिक्षा ने हिन्दू जनता को पर्याप्त प्रभावित किया। रामकृष्ण मिशन अध्यात्म शिक्षा के प्रसार के अतिरिक्त अशिक्षित तथा दलितों के उन्नयन एवं उपेक्षित तथा रोग पीड़ित जनों की सेवा का कार्य भी करता है। स्वामी विवेकानंद जहाँ भारतीय अध्यात्मदर्शन पर प्रकाश डालते थे, वहाँ वे भारत की दशा की ओर अन्य देशों का ध्यान आकृष्ट करते थे। रामकृष्ण मिशन ने भारत के नव जागरण में बड़ा योग दिया है।
रामकृष्ण मिशन के अनुयायी ब्रम्ह समाज के संपूर्ण कार्यक्रम तथा उसकी विचारधारा को पूर्णतः स्वीकार नहीं करते परंतु उनमें कोई कट्टरता भी नहीं है। वे उदार मार्ग को मानकर चलते हैं। रामकृष्ण • मिशन के अनुयायी दो प्रकार के हैं – एक जो विवाह नहीं करते तथा परमात्मा व मनुष्य जाति की सेवा तथा उसके कल्याण के लिये अपना संपूर्ण जीवन लगा देते हैं। और दूसरे विवाह करके गृहस्थ की भाँति रहते हैं, परंतु वे भी मिशन के आदर्शो तथा उसकी शिक्षाओं के अनुसार अपना जीवन
व्यतीत करते हैं। उन्होंने भी पुर्नजागरण में बड़ी सहायता की है।
रामकृष्ण मिशन के
निम्नलिखित सिद्धांत हैं:-
(1) ईश्वर अजन्मा है।
(2) आत्मा ईश्वर का अंत मात्र होती है।
(3) ईश्वर अजन्मा है।
(4) ईश्वर की प्राप्ति प्रतिभा
द्वारा की जा सकती हैं।
(5) भारतीय संस्कृति सभी संस्कृतियों से उच्च एवं श्रेष्ठ है।
(6) प्रत्येक हिंदू का वह कर्तव्य हैं कि वह अपने धर्म की रक्षा करें तथा उसमें उत्पन्न दोषों से मुक्त करावें।
रामकृष्ण मिशन की शाखाएँ आज भी विश्व के अनेक स्थानों में कार्यरत है। इन शाखाओं का कार्य अपने धर्म का प्रचार करना, जनता की सेवा करना और रोग ग्रसित लोगों की चिकित्सा करना है। अनेक स्थानों में इस मिशन के औषधालय, अनाथालय तथा विद्यालय है। वह संस्था समाज सेवा के क्षेत्र में अभी भी महत्वपूर्ण जिम्मेवारी का निर्वाह कर रही हैं।
–सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”