-30 जनवरी कुष्ठ रोग निवारण, गांधी पुण्य दिवस पर विशेष-
कुष्ठ रोग प्रागैतिहासिक काल से होने वाला रोग है। पूर्व में इस रोग के बारे में चिकित्सकीय और वैज्ञानिक जानकारी नहीं होने के कारण कुष्ठ रोगियों को कई तरह के सामाजिक और चिकित्सकीय भ्रांतियों का शिकार होना पड़ता था। दशकों वर्ष पूर्व जब कुष्ठरोग की दवा उपलब्ध नहीं थी, कुष्ठ रोगियों के लिये एक ही उपचार था, वो ये था कि उनको समाज से अलग रख उन्हें दूर जगहों में जहां से वे लोगों में न मिल सकें। ऐसे स्थानों में रखा जाता था।
कुष्ठ रोगियों से अन्य लोग भी भयभीत रहा करते थे, उनके सामाजिक व पारिवारिक रिश्ते टूट जाते, जो कुष्ठ रोग की मिथ्या भ्रांतियों के कारण बहुत दिनों तक व्याप्त रहा। पर -धीरे लोगों के विचारों के परिवर्तन आया।
कुष्ठ रोग भी अन्य सामान्य रोगों की तरह एक रोग है जो माइक्रोबैक्टेरियम लेप्रोसी नामक किटाणु से होता है, और समय पर नियमित उपचार से बिलकुल ठीक हो जाता है। कुष्ठ रोग क्षय की अपेक्षा कम संक्रामक हैं। इसका उपचार भी अन्य रोगों की तरह समाज में रहकर सरकारी चिकित्सालयों में मुफ्त किया जाता है। नार्वे निवासी डॉ. गेरहार्ड आमर हेन्सन को सन् 1873 में कुष्ठरोग पैदा करने वाले जीवाणु माइक्रो बैक्टिरिलियम लेप्रोसी को खोजने में सफलता मिली थी। डॉ हैन्सन के शब्दों में लेप्रोसी जिसका मतलब है एल लेसमेनिवासिस, ई- ऐक्सोलोविट, पी पीट्रिलासिस, आर रेकाब्रोमासिस, ओ ओडिमा,एस सिफिलिस और वाय यास इत्यादि चर्मरोग जैसी बीमारी के समान कुष्ठ रोग भी एक बीमारी होती है।
विश्व भर में फैले कुष्ठ रोग को भिन्न भिन्न देशों में अलग अलग नामों से जाना जाता है, जैसे फ्रांसीसी लिए, जापानी माफुंगा राई ,जर्मनी ओटसज, रुसी प्रोकाजा, अरबी जुधाम कहते हैं। प्राचीनकाल में भारत वर्ष के ऋषि चरक ने इसका वर्णन और उपचार वेदों में किया है। चूंकि नई औषधियों में कुष्ठ रोग पर काबू पा लिया गया है। सन् 1990 के दशक में चिकित्सा विज्ञान ने कुष्ठ रोग के लिए प्रभावशाली बहु औषधि उपचार की खोज कर ली।
इस उपचार से रोगी छह माह से लेकर दो वर्ष के भीतर पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है। 1950 में इनके उपचार के लिये डीडीएस नामक औषधि की खोज हुई थी जो मात्र एक ही औषधि थी। तथा उपचार लंबे समय तक चलता था। अतः चिकित्सा विज्ञान ने अब बहुऔषधि उपचार की खोजकर, राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन की दिशा में अधिक सफलता प्राप्त कर ली है। बहुऔषधि उपचार योजना में तीन औषधियों का समावेश है। रिफाम्पसीन, कलाफाजीमिन तथा डेपसोन।
इस विशेष उपचार पद्धति से कुष्ठरोगी छह माह से दो वर्ष के भीतर पूर्ण ठीक हो जाता है तथा रोगी में विकृति निर्माण होने एवं समाज में संक्रमण फैलने के अवसर नहीं रहते। वर्तमान में संपूर्ण विश्व में कुष्ठ रोग के उपचार के लिए सल्फोन बाडेपसोन का प्रयोग किया जाता है। यह प्रभावशाली एवं सस्ती औषधि है। लंबे समय तक नियमित धैर्य पूर्वक सेवन ना कर पाने के कारण रोगी इससे लाभान्वित कम ही होते हैं। अब रिफाम्पसीन एवं क्लाफारजेमिन या प्राधिबोनोमाईड डेपसोन का मिश्रण के बहू औषधि उपचार पद्धति से रोगियों को शीघ्र ही कुष्ठ के जीवाणु से मुक्त किया जाता है। अब कुष्ठ रोग के कारण होने वाली विकलांगता और हाथ पैर की उंगली के टेढ़ेपन को शल्य चिकित्सा द्वारा ठीक किया जा सकता है।
कुष्ठ रोग मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। एक संक्रामक दूसरा असंक्रामक, संक्रामक रोगी का मुख्य लक्षण त्वचा में लाल रंग के दानेदार चमकीले चकते तथा त्वचा का मोटी होना, चेहरे, दोनों कान तथा संपूर्ण शरीर में गठानें उभरने व सूजन होने से संक्रामक कुष्ठ रोग को पहचाना जाता है। रोग के अधिक विकसित होने पर भौहें मोटी होना एवं भौहें सहित शरीर के बाल झड़ना, नाक का बैठना, कुरुप होना आदि संक्रामक प्रकार का कुष्ठ होने की पुष्टि करता है। संक्रामक प्रकार के कुष्ठ रोगी से लंबे समय तक संपर्क, घनिष्ठ शारीरिक संसर्ग, मच्छर, मक्खी, खटमल आदि अनेको माध्यम से स्वस्थ व्यक्ति में इस रोग के जीवाणु का प्रवेश हो सकता है।
नई औषधि और स्वास्थ्य शिक्षा के प्रचार प्रसार द्वारा बुद्धिजीवी और शिक्षित समाज, कुष्ठ रोग की वास्तविकताओं को समझकर भ्रांत धारणाओं को अमान्य कर रोगियों को सामाजिक मान्यता देने लगा है। और अब कुष्ठरोगी समाज में रहकर ही उपचार कराने लगे हैं। हालांकि कुष्ठ रोग का प्रभाव लगभग समाप्त हो चला है।
ग्रामीण तथा शहरी क्षेत्रों में विविध माध्यमों से स्वास्थ्य शिक्षा, कुष्ठ के प्रचार प्रसार का कार्य नियमित रूप से किया जा रहा है। ताकि समाज से कुष्ठरोग के प्रति व्याप्त भय दूर हो सके। और कोई भी व्यक्ति बिना किसी भय के कुष्ठ रोग के निदान एवं उपचार के लिये स्वेच्छा से आगे आ सके। इस परिप्रेक्ष्य में महात्मा गाँधी की जयंती एवं पुण्यतिथि के अवसर पर जनजागरण की दिशा में जन सहयोग एवं सामाजिक संगठनों के सहयोग से देश में संबंधित फिल्म प्रदर्शन टीवी मोबाइल में प्रचार प्रसार, प्रदर्शनी एवं चर्मरोग निदान शिविरों का भी आयोजन किया जाता है।
प्रतिवर्ष तीस जनवरी राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के बलिदान दिवस को कुष्ठ निवारण दिवस के रुप में मनाया जाता है। महात्मा गांधी ने कुष्ठ रोगियों की सच्ची सेवा की थी। गांधीजी ने विश्वास व्यक्त किया था कि सरल और सुनियोजित साधनों द्वारा जिनमें दयाभाव तथा वैज्ञानिक उपचार शामिल है, हम कुष्ठ रोग को अपने देश में ही नहीं, सारे संसार से उन्मूलन कर सकते हैं। हर कुष्ठ – रोगियों को दवा, सहानुभूति एवं पूनर्वासति की आवश्यकता है, और हर कुष्ठ रोगी व्यक्ति को इलाज करवाकर कईवर्ष पूर्व महात्मा गाँधी ने जो कुष्ठ मुक्त भारतका सपना देखा था उनके सपनों को साकार करना है। इस मायने में यह सुखद है की करीब करीब अब मंजिल साफ दिखने लगी है।