हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। यह दिन भारतीय संस्कृति और धर्म में विशेष महत्व रखता है क्योंकि इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। ब्रह्म पुराण के अनुसार, इसी दिन से सृष्टि का संचालन प्रारंभ हुआ, इसलिए इसे नव संवत्सर का प्रारंभ माना जाता है। इस दिन को भारतीय पंचांग के अनुसार नववर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।

भारत में अनेक संस्कृतियों और परंपराओं के अनुसार नववर्ष अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है, लेकिन हिंदू नववर्ष विशेष रूप से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही मनाया जाता है। इस दिन से नवरात्रि का भी शुभारंभ होता है, जिसमें शक्ति और भक्ति का विशेष महत्व होता है।
विक्रम संवत और नव संवत्सर की परंपरा
नव संवत्सर मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। उज्जैन के महान सम्राट विक्रमादित्य ने इस संवत्सर की शुरुआत की थी, जिसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है। विक्रम संवत, ग्रेगोरियन कैलेंडर से 57 वर्ष आगे चलता है। उदाहरण के लिए, 2025 में 2082 विक्रम संवत प्रारंभ होगा। इस संवत्सर की गणना सूर्य, चंद्रमा और नक्षत्रों की गति के आधार पर की जाती है।
सम्राट विक्रमादित्य के काल में प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराहमिहिर ने विक्रम संवत को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस संवत्सर का आधार प्राकृतिक घटनाओं और खगोलीय गणनाओं पर आधारित है, जिससे इसका वैज्ञानिक महत्व भी सिद्ध होता है।
हिंदू कैलेंडर और इसके बारह माह
हिंदू पंचांग में 12 महीने होते हैं, जिनमें चैत्र से फाल्गुन तक के महीने शामिल होते हैं:
चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन इन महीनों की गणना चंद्रमा की गति के आधार पर होती है, जिससे यह संवत्सर ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्वपूर्ण बनता है।
भारत में विभिन्न प्रकार से नववर्ष का उत्सव
भारत के विभिन्न हिस्सों में हिंदू नववर्ष को अलग-अलग नामों से और अलग-अलग तिथियों पर मनाया जाता है।
- मेष संक्रांति / वैशाख संक्रांति / बैसाखी – तमिलनाडु, केरल, बंगाल, और नेपाल में मनाया जाता है।
- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा / वर्ष प्रतिपदा – महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में उगाड़ी, कश्मीर में नवरेह और सिंधियों में चेटी चंड के रूप में मनाया जाता है।
- बलि प्रतिपदा (कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा) – यह दीपावली के अगले दिन मनाया जाता है, खासतौर पर व्यापारियों के लिए नया वर्ष होता है। गुजरात और राजस्थान में यह दिन विशेष रूप से नववर्ष के रूप में मनाया जाता है।
प्रत्येक क्षेत्र में इसे अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है, लेकिन सभी का मूल उद्देश्य एक ही होता है—नए वर्ष की शुरुआत का स्वागत करना और जीवन में सकारात्मकता का संचार करना।
धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
- सृष्टि की रचना: ब्रह्माजी ने इसी दिन सृष्टि की रचना की थी।
- सम्राट विक्रमादित्य: उन्होंने इसी दिन राज्य स्थापित किया और विक्रम संवत की शुरुआत की।
- भगवान राम का राज्याभिषेक: श्रीराम के राज्याभिषेक का दिन भी यही है।
- नवरात्रि का प्रारंभ: शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्रि का पहला दिन यही होता है।
- आर्य समाज की स्थापना: स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी।
- गुरु अंगद देव जी का जन्म: सिखों के द्वितीय गुरु श्री अंगद देव जी का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
- महर्षि गौतम और संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जयंती: यह दिन महान विभूतियों की जयंती के रूप में भी महत्वपूर्ण है।
इस दिन को शक्ति और ऊर्जा का स्रोत माना जाता है। यह नववर्ष प्रकृति से जुड़ा हुआ है, जिसमें वसंत ऋतु का आगमन होता है, फूल खिलते हैं और फसलें पकने लगती हैं। यह समय किसानों के लिए भी खुशी का होता है क्योंकि उनकी मेहनत का फल उन्हें मिलने लगता है।
हिंदू नववर्ष को और भी हर्षोल्लास से मनाने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:
- शुभकामनाएँ दें: अपने मित्रों, परिवारजनों और परिचितों को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।
- धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लें: विभिन्न मंदिरों और संगठनों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में सम्मिलित हों।
- घर और प्रतिष्ठानों की सजावट करें: घरों के द्वार आम के पत्तों से सजाएँ, रंगोली बनाएँ और दीप जलाएँ।
- ध्वजा (झंडा) फहराएँ: भगवा ध्वज फहराएँ और हिंदू संस्कृति का गौरव बढ़ाएँ।
- नववर्ष पत्रक वितरण करें: नववर्ष के महत्व पर आधारित पत्रक बाँटें और लोगों को जागरूक करें।
- सामाजिक कार्यों में भाग लें: इस शुभ अवसर पर सेवा कार्य करें, जैसे अन्नदान, वस्त्रदान और अन्य सामाजिक कार्य।
इस दिन विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जिसमें नवग्रह पूजन, हवन, मंदिरों में विशेष आरती और सामाजिक समाराहों का आयोजन किया जाता है। कई स्थानों पर शोभायात्राएँ भी निकाली जाती हैं, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं और इसे हर्षोल्लास से मनाते हैं।
हिंदू नववर्ष केवल एक तिथि नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, इतिहास और परंपरा का प्रतीक है। यह दिन हमें अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को संजोने और आगे बढ़ाने का संदेश देता है। यह नववर्ष हमें सिखाता है कि हमें अपने जीवन में नए संकल्प लेने चाहिए, अच्छाई की ओर बढ़ना चाहिए और समाज व देश के विकास में योगदान देना चाहिए। इस दिन को हम सभी को हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए और इसे अपने धर्म और संस्कृति के गौरवशाली इतिहास से जोड़कर देखना चाहिए। हिंदू नववर्ष का यह पावन दिन हमें आत्मचिंतन, नवचेतना और नवसंकल्प की प्रेरणा देता है। आइए, हम सभी इस नववर्ष का स्वागत हर्षोल्लास से करें और इसे अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का अवसर बनाएँ।