राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के अंतर्गत नदियों और जल पारिस्थितिकी के संरक्षण को लेकर एक महत्वपूर्ण समीक्षा बैठक का आयोजन हुआ, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री सी. आर. पाटिल ने की। इस बैठक में भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) द्वारा चलाई जा रही परियोजनाओं की विस्तार से समीक्षा की गई। बैठक में मंत्रालय और WII के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित रहे।

जलीय जैव विविधता और समुदाय आधारित संरक्षण को मिली सराहना
श्री पाटिल ने गंगा नदी की जैव विविधता को पुनर्स्थापित करने, नदी की स्वच्छता, स्थानीय क्षमताओं के विकास और समुदायों की भागीदारी जैसे प्रयासों की सराहना की। उन्होंने विशेष रूप से गंगा प्रहरी जैसी पहल की तारीफ की, जिसमें स्थानीय स्वयंसेवकों को संरक्षण अभियानों से जोड़ा गया है। उन्होंने सुझाव दिया कि इन गंगा प्रहरियों के लिए एक राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया जाए ताकि उनके अनुभव साझा किए जा सकें और नेटवर्क को मजबूत किया जा सके।
मगरमच्छ संरक्षण और नई तकनीकों का सुझाव
श्री पाटिल ने नदियों में मगरमच्छों के संरक्षण पर केंद्रित नई योजनाओं को विकसित करने का आह्वान भी किया। इसके साथ ही, उन्होंने सुझाव दिया कि नई तकनीकों जैसे जीपीएस, सोनार, और मोबाइल ऐप के उपयोग से निगरानी को और बेहतर बनाया जाए।
ज्ञान उत्पादों का विमोचन
कार्यक्रम में मंत्री ने ‘हाइड्रोफाइट्स: ग्रीन लंग्स ऑफ गंगा’ (खंड I और II) और स्वच्छ जल के जैविक नमूनों के संग्रह और परिवहन से जुड़ी गाइडलाइनों जैसी वैज्ञानिक रिपोर्टों का भी विमोचन किया। ये दस्तावेज जल संरक्षण की दिशा में वैज्ञानिक सोच और व्यवहारिक पहल की मिसाल हैं।
संरचित संरक्षण योजना: छह-आयामी दृष्टिकोण
बैठक में WII द्वारा विकसित संरचित और बहु-विषयक संरक्षण योजना पर भी चर्चा हुई। इसका उद्देश्य गंगा नदी के लिए एक वैज्ञानिक, समर्पित और समुदाय-केंद्रित संरक्षण मॉडल तैयार करना है। इसके तहत छह मुख्य बिंदुओं पर कार्य किया जा रहा है:
- विज्ञान आधारित संरक्षण नीति
- निगरानी केंद्रों की स्थापना
- जलीय प्रजातियों का पुनर्स्थापन
- संस्थागत क्षमता निर्माण
- बचाव व पुनर्वास केंद्र
- सामुदायिक जागरूकता और भागीदारी
डिजिटल डैशबोर्ड का शुभारंभ
इस अवसर पर www.rivres.in नामक एक डिजिटल डैशबोर्ड का भी उद्घाटन किया गया। यह प्लेटफ़ॉर्म गंगा सहित भारत की प्रमुख नदियों जैसे नर्मदा, गोदावरी, कावेरी, पंबा आदि की पारिस्थितिकी, जैव विविधता और संरक्षण गतिविधियों की जानकारी उपलब्ध कराता है।
हजारों हितधारकों की सक्रिय भागीदारी
इस मॉडल की खास बात सामुदायिक सहभागिता है। इसमें वन अधिकारी, पशु चिकित्सक, शिक्षक, NSS स्वयंसेवक और स्थानीय समुदायों के हजारों लोग शामिल हैं। 130 से अधिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से उन्हें प्रशिक्षित किया गया है। 5000 से अधिक गंगा प्रहरी, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी हैं, जमीनी स्तर पर संरक्षण कार्यों में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
डॉल्फ़िन संरक्षण और इको-टूरिज्म
नदी पारिस्थितिकी के संरक्षण में एक और अनूठी पहल है डॉल्फ़िन परियोजना, जिसका उद्देश्य डॉल्फ़िन और उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा करना है। इसके साथ ही, इको-टूरिज्म और अन्य योजनाओं के माध्यम से स्थानीय आजीविका को भी प्रोत्साहन मिल रहा है।
यह बैठक केवल एक समीक्षा नहीं बल्कि गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण के लिए संकल्प का प्रतीक बनी। श्री पाटिल ने स्पष्ट किया कि जल शक्ति मंत्रालय और भारतीय वन्यजीव संस्थान की साझेदारी आने वाले समय में डेटा-आधारित, समावेशी और निरंतर जल पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण के नए रास्ते खोलेगी।