भू-सुधार की ओर ऐतिहासिक कदम: केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने राज्यों से आधार और भूमि रिकॉर्ड के एकीकरण का किया आग्रह

केंद्रीय ग्रामीण विकास और संचार राज्य मंत्री श्री चंद्रशेखर पेम्मासानी ने भूमि प्रशासन में पारदर्शिता और दक्षता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक बड़ा कदम उठाते हुए राज्यों से अपील की है कि वे भूमि अधिकार अभिलेखों (Record of Rights) को आधार संख्या से एकीकृत करें। यह पहल किसानों, ग्रामीण समुदायों और योजनाओं के लाभार्थियों तक सीधे और सटीक लाभ पहुंचाने में क्रांतिकारी साबित हो सकती है।

श्री पेम्मासानी ने यह आग्रह आंध्र प्रदेश के गुंटूर में आयोजित ‘डिजिटल इंडिया भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम’ (DILRMP) के तहत दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन समारोह में किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि आधार एकीकरण, डिजिटल सर्वेक्षण, कागज रहित कार्यालय, न्यायालय प्रबंधन प्रणाली जैसे सुधार समावेशी, पारदर्शी और आधुनिक भूमि प्रशासनिक ढांचे की नींव रखेंगे।

उन्होंने कहा कि “जब भूमि रिकॉर्ड सटीक होते हैं, तो बैंक ऋण आसानी से मिलते हैं, निवेशकों को भरोसा मिलता है और किसान कृषि योजनाओं का लाभ उठा पाते हैं।”

भूमि विवादों से छुटकारा जरूरी

श्री पेम्मासानी ने चिंता जताई कि देश में भूमि संबंधी विवाद बड़ी संख्या में लटके हुए हैं। निचली अदालतों में 66% से अधिक दीवानी मामले भूमि से जुड़े हैं, वहीं उच्चतम न्यायालय में भी एक चौथाई विवाद भूमि से संबंधित हैं। उन्होंने इसे विकास में बड़ी बाधा बताया और कहा कि “भूमि सिर्फ एक संपत्ति नहीं, बल्कि पहचान, सम्मान और सुरक्षा का प्रतीक है।”

100 साल पुराने सर्वेक्षण अब अप्रासंगिक

मंत्री ने बताया कि भारत में आखिरी व्यापक भूमि सर्वेक्षण करीब 100 साल पहले पारंपरिक तरीकों से किए गए थे, जो आज की ज़रूरतों के अनुरूप नहीं हैं। पूर्वोत्तर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में तो कई जगह भू-कर सर्वेक्षण कभी हुए ही नहीं। वर्तमान में मौजूद रिकॉर्ड पुराने, गलत और विरोधाभासी हैं, जिससे विवाद और विकास में बाधा दोनों उत्पन्न होते हैं।

केंद्र की नई योजना: आधुनिक तकनीक से भूमि सर्वेक्षण

केंद्र सरकार अब एक तकनीक-आधारित कार्यक्रम शुरू कर रही है जिसमें ड्रोन, विमान, जीआईएस, एआई और हाई-प्रिसीजन उपकरणों की मदद से हवाई सर्वेक्षण किया जाएगा। यह पारंपरिक तरीकों की तुलना में सिर्फ 10% खर्च में होगा।

कार्यक्रम को पांच चरणों में लागू किया जाएगा, जिसकी शुरुआत 3 लाख वर्ग किलोमीटर ग्रामीण कृषि भूमि से होगी। पहले चरण में 3,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है और इसे दो वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।

‘नक्शा’ – शहरी क्षेत्रों के लिए नई पहल

श्री पेम्मासानी ने बताया कि शहरी भूमि विवादों की गंभीरता को देखते हुए केंद्र सरकार एक और पहल ‘नक्शा’ भी शुरू कर रही है, जिसमें फिलहाल 150 से अधिक शहरी स्थानीय निकायों को शामिल किया गया है। उन्होंने बताया कि सही और अद्यतन शहरी भू-अभिलेखों से शहरी नियोजन, किफायती आवास और नगरपालिका राजस्व में सुधार होगा।

भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण: न्याय और जवाबदेही की ओर

मंत्री ने कहा कि केंद्र राज्यों को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन सिस्टम और राजस्व न्यायालय मामला प्रबंधन प्रणाली (RCCMS) को लागू करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। इससे भूमि से जुड़े मामलों का पता लगाना, प्रबंधन करना और जवाबदेही तय करना आसान होगा।

कमजोर वर्गों के लिए भूमि अधिकार

उन्होंने कहा कि छोटे किसान, आदिवासी और ग्रामीण महिलाएं ऐसे वर्ग हैं जिनके लिए स्पष्ट भूमि अधिकार जीवन रक्षा कवच की तरह हैं। सही सर्वेक्षण इन्हें शोषण से बचाते हैं और अधिकारों को मजबूती देते हैं।

समापन संदेश: भू-विवाद से भू-विश्वास की ओर

अपने समापन संबोधन में मंत्री ने कहा, “अब समय आ गया है कि भारत भू-विवाद से भू-विश्वास की ओर कदम बढ़ाए। हमें ऐसा राष्ट्र बनाना है जहां भूमि विकास का आधार बने, विवाद का नहीं।”

इस अवसर पर आंध्र प्रदेश सरकार के मंत्री श्री अनगनी सत्य प्रसाद, भूमि प्रशासन की मुख्य आयुक्त सुश्री जी. जया लक्ष्मी, सचिव श्री मनोज जोशी, भूमि संसाधन विभाग के संयुक्त सचिव श्री कुणाल सत्यार्थी और अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं विशेषज्ञ मौजूद रहे।

यह कार्यशाला भूमि सुधारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकती है, बशर्ते राज्य सरकारें केंद्र के साथ सक्रिय सहयोग करें और इस परिवर्तन को जमीनी स्तर तक पहुंचाएं।

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